अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
सपना तब तक ही सुंदर है। जब तक आँखों के अंदर है।
खुशियों को सहेज कर रखना उनके खो जाने का डर है।
बुरे वक़्त में दुःख ही है, जो साथ निभाने को तत्पर है।
रिश्तों का बनना आसां है रिश्तों का बचना दुष्कर है।
इंसानों की मुश्किल ये है उनके भीतर हमलावर है।
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नहीं नहीं श्रीमान .आप भी बहुत अच्छा लिखते है , में तो बस यु ही .आप सबका प्यार बना रहे यही काफी है
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नहीं नहीं श्रीमान .आप भी बहुत अच्छा लिखते है , में तो बस यु ही .आप सबका प्यार बना रहे यही काफी है
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