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Monday, June 8, 2009

जीवन नहीं मरा करता है।



छिप-छिप अश्रु बहाने वालों,
मोती व्यर्थ लुटाने
वालों कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है नयन सेज पर,
सोई हुई आँख का पानीऔर टूटना है
उसका ज्यों, जागे कच्ची नींद जवानी।
गीली उमर बनाने वालों,
डूबे बिना नहाने
वालोंकुछ पानी के बह जाने से,
सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गई तो क्या है,
खुद ही हल हो गई समस्‍या
आँसू गर नीलाम हुए तो,
समझो पूरी हुई तपस्या।
रूठे दिवस मनाने वालों,
फ़टी कमीज़ सिलाने
वालोंकुछ दीपों के बुझ जाने से,
आँगन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटीं,
शिकन न आई पर पनघट
परलाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर।
तम की उमर बढ़ाने वालों,
लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर,
उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गंध फ़ूल
कीतूफ़ानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बंद न हुई धूल की।
नफ़रत गले लगाने वालों,
सब पर धूल उड़ाने वालों,
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से,
दर्पण नहीं मरा करता है।

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