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Tuesday, March 8, 2011

अब गाँव में मेरे यार पुराने कैसे हैं।

पनघट, दरिया कैसे हैं, वो खेत, वो दाने कैसे हैं
रब जाने अब गाँव में मेरे यार पुराने कैसे हैं।

जिसको छूकर सब हमजोली झूठी क़समें खाते थे
अब वो पीपल कैसा है, वो लोग स्याने कैसे हैं।

छिप-छिपकर तकते थे जिसको अब वो दुल्हन कैसी है
सास, ससुर, भौजी, नंदों के मीठे ताने कैसे हैं।

पहली-पहली बारिश में हर आँगन महका करता था
छज्जों का टप-टप करना, वो दौर सुहाने कैसे हैं।

रोज़ सुबह इक परदेशी का संदेशा ले आती थी
उस कोयल की चोंच मढ़ाने के अफ़साने कैसे हैं।

दिन भर जलकर और जलाकर सूरज का वो ढल जाना
शाम की ठंडी तासींरे, चौपाल के गाने कैसे हैं।

परबत वाले मंदिर पे क्या अब भी मेला भरता है
घर से बाहर फिरने के सद शोख़ बहाने कैसे हैं।

हम तो यारों शहर में आकर सारे रंग उड़ा बैठे
पत्थर के इस जंगल में हम ख़ुद न जाने, कैसे हैं।
 
साभार : ग़ज़ल ( दिनेश ठाकुर )
 

Friday, March 4, 2011

"मध्य प्रदेश काग्रेस को अपनी आवश्यकता महसूस करा गये अर्जुन सिंह"

"राजनीती के चाणक्य कहे जाने वाले श्री अर्जुन सिंह के देवासन पर एक याद गार:    "
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
सुनो, जागो, उठो, देखो कि बरसों बाद मौका है
अभी तुमको गिराने हैं कई सरदार चुटकी में


 









अवसर था इंदिरा गाधी राष्ट्रीय जनजातीय वि.वि.अमरकंटक, के शिलान्यास का.श्री अर्जुन सिंह ने सभा को संबोधित करते हुए कहा ''आमतौर मे विश्व वि. की स्थापना बड़े शहरों के आसपास किया जाना स्वाभाविक है। परन्तु हमने यह सब जानते हुए भी इंदिरा गाधी राष्ट्रीयजनजाति वि.वि.की स्थापना जनजातीय क्षेत्र मे करने का निर्णय लिया। इस सोचे समझे निर्णय के पीछे न केवल विकास की दौड मे पिछडे हुए लोगो को उच्च शिक्षा से जोड़ने का ध्येय रहा है ,न केवल इस क्षेत्र के युवा वर्ग के लिए उच्चतम स्तरीय शिक्षा एवं शोध के दरवाजे खोलने की चाह रही है, बल्कि साथ ही यह सुसंगत तर्क भी रहा है की यदि विश्वविद्घालयो का उद्देश्य उपलब्ध ज्ञान और विज्ञान की संभावना को बढाना और नए ज्ञान की खोज करना है , तो इसके लिए आवश्यक बौद्धिक क्षमता का उपयोग स्थानीय जनजाति के विकास से संबंधित विषय-जनजातीय भाषा , संस्कृति , कला ऐतिहासिक विरासत और नैसर्गिक सम्पदा मे शोध, खोज और उच्च अध्यन के लिए किया जाना अनिवार्य है''। कार्यक्रम काफी सफ़ल रहा. श्री अर्जुन सिंह की गरमामयी उपस्थित ने समारोह को भव्य बना दिया था।
लोकप्रिय नेता
इस समारोह मे भारी सख्या मे लोगो की उपस्थित, श्री अर्जुन सिंह की लोकप्रियता को दर्शा गया। छत्तीसगढ़ के करीबी जिलो,मंडला ,डिडॊरी,शहडोल, अनूपपुर , उमरिया ,सतना, रीवा,सीधी आदि जिलो से जनजातीय व अन्य समुदाय के लोगो की उपस्थिति ही इस बात का प्रतीक हॆ। भारतीय़ जनता पार्टी के स्थानीय़ सांसद, मंत्री के साथ साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ काग्रेस के कद्दावर नेता समारोह मे उपस्थित थे।
कुनबो मे बटी काग्रेस के नजारे भी देखने को मिले
पचॊरी व अजय सिंह के बीच दूरी भी समारोह के बाद देखने को मिली. समारोह के सफलता से उत्पन्य खिन्नता पचॊरी के चेहरे मे साफ नजर आ रही थी . अजय जहा जनता से घिरे नजर आये वही पचॊरी संगठन के चन्द नेताओं के साथ ही दिखे। पचॊरी अभी जनता के बीच उतने जाने पहचाने नही हॆ जितना अजय। अर्जुन सिंह के वापसी के समय पचॊरी समर्थक नेताओं खासकर पार्टी के शहडोल जिलाध्यक्ष राकेश कटारे की अनुपस्थिति चर्चा का विषय रही।
अर्जुन सिंह का परिचय

आधुनिक भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता के ध्वजवाहक और नेहरू गांधी परिवार के प्रति असंदिग्ध आस्था रखने वाले अजरुन सिंह को सामाजिक चेतना के प्रेरणास्रोत के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की अर्धशती में सैकड़ों उतार चढ़ाव देखे.

सोशलिस्ट पार्टी से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने वाले अजरुन सिंह ने केवल 12 बरस की उम्र में महात्मा गांधी के ''भारत छोड़ो'' आंदोलन में भाग लेकर अपने इरादों की झलक दिखा दी और उसके बाद आने वाले हर बरस में मजबूत कदमों से आगे बढ़ते हुए देश की राजनीति में एक दबंग और मजबूत नेता के रूप में उभरे.

यह अजब संयोग है कि आजाद भारत के राजनीतिक पटल पर कई तरह से अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने वाले और 80 के दशक में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे अजरुन सिंह को आज ही कांग्रेस कार्यसमिति से हटाकर स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया था.

मध्यप्रदेश के सीधी जिले के चुरहट गांव में राव शिवबहादुर सिंह के यहां पांच नवंबर 1930 को जन्मे अजरुन सिंह इस राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे तथा उनका यह कार्यकाल एक दबंग प्रशासक के कार्यकाल के रूप में जाना जाता था.

बीए एलएलबी तक शिक्षा प्राप्त सिंह की विशेष रूचि पठन-पाठन, शिकार और यात्रा की रही, जबकि सार्वजनिक जीवन में उनका गहरा झुकाव अपने छात्र जीवन से ही रहा. सन 1953 में वह रीवा दरबार कालेज की छात्र यूनियन के अध्यक्ष बने.

पंजाब समस्या के समाधान का आधार राजीव - लोंगोवाल समझौते की इबारत लिखने वाले अजरुन सिंह ने 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा के चुनाव में विजय हासिल की, लेकिन उसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से एक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और उन्होंने कांग्रेस के साथ दोस्ती की जो गांठ उस दिन बांधी उसे मरते दम पर ढीला नहीं होने दिया.