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Friday, July 31, 2009

वह तोड़ती पत्‍थर

 

वह तोड़ती पत्थर;
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।

कोई छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन प्रिय,कर्म-रत मन,
गुरू हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:
सामने तरू-मालिका अट्टालिका, प्राकार।

चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रुप;
उठी झुलसाती हुई लू,
रूई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगी छा गई,
प्राय: हुई दुपहर:
वह तोड़ती पत्थर।

देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह कॉंपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
'
मैं तोड़ती पत्थर।'

 

निराला की एक कविता साभार 

   

 

 

"तेरी चाहत में..."

 

तेरी चाहत में हद से गुजर जाऊंगा एक दिन,
प्यार होता है क्या ये दिखाऊंगा एक दिन,

तेरी संगदिली को सहते-सहते,
मैं अपनी जान से जाऊंगा एक दिन,

अपनी चाहते सारी तुझपे वार के,
प्यार करना तुझे भी सिखाऊंगा एक दिन,

जी ना पाएगी तु भी हो के जुदा मुझसे,
ऐसा प्यार तुझ से कर जाऊंगा एक दिन,

अंधेरो में ढूंढ़ती रह जाएगी मुझको,
ऐसी बेरूखी दिखलाऊंगा एक दिन,

खो कर मुझ को बहुत पछताएगी सनम तु,
वफा ऐसी तुझ से कर जाऊंगा एक दिन,

ऐसी दिवानगी से चाहूंगा तुझको,
भूल जाओगी तुम भी सारा जहान एक दिन,

जान तेरी भी लबों पर जाएगी,

बन के खाक जब मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा एक दिन।

 

 

 

 

   

 

 

।।बीते लम्हे हमे याद आते हैं।।

 

बीते हुऐ पल की याद हमे सताती है

क्यो कि कुछ अच्छे तो कुछ बुरे

वक्त की आगोश मे लिए मुस्कुराती है।।

 

बीते हुऐ पल कभी लौट के नही आते

बीताये हुये पल कभी भुलाये नही जाते

ये पल और ये लम्हे हि, साथी है मेरे

क्यों कि ये वे पल है, जो कभी भुलाये नही जाते।।

 

गुजरे हुऐ पल हमे याद आते है

कुछ लम्हो से आँखो मे आशु जाते है

बीता हुआ पल बीत के भी हमारे साथ है

इस सुनि जिन्दगी की एक वही तो आश है ।।

 

कौन कहता है कि दुर है हमसे वे पल

हम अब भी उस पल के सहारे जिया करते है।

क्या हुआ जो चला गया वह पल

हम अब भी उस पल को यादो मे संजोया करते है।।

 

।।बीते हुऐ पल की याद हमे सताती है।।