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Monday, July 20, 2009

जिस पर पैनी धार नहीं है

जिस पर पैनी धार नहीं है
वह
मेरी तलवार नहीं है

जिसको मेरी नहीं ज़रूरत
वह
मेरा संसार नहीं है

पड़ा जूझना हर पल मुझको
समझौता
स्वीकार नहीं है

दुश्मन आखिर दुश्मन ही है
माना
, वह खूँखार नहीं है

जैसे, बिन पानी के बादल
रिश्ते
हैं, पर प्यार नहीं हैं

दुर्लभ हैं घर ऐसे, जिनके
आँगन
में दीवार नहीं है

जीना तो लाजिम है, लेकिन
जीने
का अधिकार नहीं है

ब्रजकिशोर वर्मा 'शैदी'

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