Pages

Tuesday, July 7, 2009

गुरु पूर्णिमा के मायने ..

आज गुरु पूर्णिमा है भारत के प्राचीन इतिहास से आज तक गुरु को नमन करने का एक खास दिन। आज जब सारे रिश्ते समाप्त से होते जा रहे हैं तो इस रिश्ते में भी कितनी गर्माहट बनी रहेगी यह कह पाना बहुत ही मुश्किल है ? ऐसा नहीं है की आज के समय में अच्छी परम्परा निभाने वाले शिक्षक नहीं रहे पर समय की मार ने गुरु शिष्य के बीच में भी ऐसी दीवार खड़ी कर दी है जो चाह कर भी नहीं हटाई जा सकती है। विश्वास का संकट होता जा रहा है ? एक समय था जब गुरुजन अभावों को झेलते हुए अपना जीवन काट दिया करते थे पर आज उनको भी सम्मानजनक आर्थिक स्थिति मिल चुकी है । शिष्यों में भी अब वह बात नहीं रही पहले जो समर्पण हुआ करता था वह आज नहीं बचा हुआ है। पहले घरों पर पढ़ने का चलन ना के बराबर ही होता था पर आज के समय अगर बच्चे घर पर किसी से नहीं पढ़ रहे हैं तो उनका पास होना भी मुश्किल सा लगता है । ऐसा सबके साथ तो नहीं पर काफी हद तक इस तरह की छवि बनती जा रही है। कहीं इस सबके पीछे माता-पिता की वो चाह भी छिपी होती है कि हमें अगर अच्छा माहौल नही मिला तो क्या हम अपने बच्चों को वह सब कुछ दे सकें। इन सारी परिस्थियों को संत तुलसी दास ने बहुत पहले ही भांप लिया था उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था,"हरयि शिष्य धन सोक ना हरई । रौरव नरक कोटि मंह परई ॥" जो गुरु शिष्य का केवल धन चाहता है उसके कष्टों को नहीं कम करना चाहता वह घोर नरक का भागी दार होता है। अच्छा हो कि पहले जैसा माहौल बनाया जाए इसके लिए केवल गुरु/शिष्य को ही दोषी नहीं कहा जा सकता है हमें अपने घरों से प्रारम्भ करना होगा तभी कुछ संस्कार समाज में फिर से दिखाई देंगें। सारे समाज का माहौल ही कुछ ऐसा हो चला है कि पवित्र समझे जाने वाले रिश्ते भी पता नहीं किस आंच में जले जा रहे हैं।

No comments:

Post a Comment