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Thursday, September 17, 2009

संडे की पाठशाला

 

 

ऑफिस में काम करते व़क्त राजन बड़ा उदास दिख रहा था। आख़िर उसके एक सहकर्मी मोहन ने पूछ ही लिया। राजन ने बड़े धीमे-धीमे कहना शुरू किया, 'क्या बताऊं यार..मेरी जिंदगी तो नर्क बन गई है। घर में एक पल को भी चैन नही रहता। 'अपनी बीवी के साथ मेरी बिल्कुल नहीं बनती। हरदम खटपट होती रहती है। हम तो बच्चों की वजह से साथ हैं, वरना कब के अलग हो गए होते।' मोहन ने कहा, 'मामला तो गंभीर लगता है। मेरे साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही था, पर अब मेरा जीवन ख़ुशहाल है। तुम ऐसा करो, आज शाम को ऑफिस के बाद मेरे साथ चलना। फिर देखना कि मेरी ख़ुशहाली का राज़ क्या है।' शाम को ऑफिस से दोनों साथ ही निकले। घर पहुंचकर मोहन ने दरवाज़े पर ही अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया और उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ करते हुए बताने लगा कि आज ऑफिस में उसकी बहुत याद आई। यह सुनकर पत्नी की ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा। मियां-बीवी, दोनों चेहरे दमकने लगे। राजन और मोहन टीवी देखते हुए बातें करने लगे और मोहन की पत्नी रसोई में नाश्ता बनाने लगी। नाश्ता करते व़क्त मोहन ने फिर पत्नी की तारीफ़ की। उसने कहा कि उसकी उंगलियों में जादू है। और यह भी कि उसे जीवनसाथी के रूप में पाकर उसका जीवन धन्य हो गया। राजन पर इस सबका बड़ा असर पड़ा और उसने भी तारीफ़ और प्रेम-प्रदर्शन के ये उपाय घर में आज़माने का निर्णय कर लिया। घर पहुंचकर उसने कॉलबेल बजाई। उसकी पत्नी ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, उसने उसे बांहों में लिया और चुंबनों की झड़ी लगा दी। इसके साथ ही उसने तीन-चार बार 'आई लव यू' भी बोल दिया और उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ भी कर डाली। उसकी पत्नी कुछ देर के लिए तो अवाक रह गई, फिर सिर पकड़ कर रोने लगी। राजन हैरान। उसे तो उसके ख़ुश होने की उम्मीद थी। उसने रोने का कारण पूछा। पत्नी सुबकते हुए कहने लगी, 'आज मेरे जीवन का सबसे ख़राब दिन है। सुबह साइकिल चलाते समय राजू के टखने में मोच आ गई। दोपहर को जब मैं लेटी हुई थी, नल का वाशर खराब हो जाने के कारण पूरे घर में पानी भर गया। और..और अब तुम शराब पीकर आ गए हो और पता नहीं क्या बक-झक कर रहे हो!'


सब़क ज़िंदगी का..1.एकदम से न बदलें। किसी का रातोरात बदल जाना संदेह पैदा करता है।2.ज़रूरी नहीं कि एक ही उपाय सबके लिए कारगर हो।

 

 

 

   

 

 

दूरदर्शन ने पूरे किए स्वर्णिम 50 साल

बुनियाद, हमलोग, फौजी -- बूगीवूगी,देख भाई देख,युग -- क्योंकि सास भी कभी बहु थी, कहानी घर घर की, कौन बनेगा करोड़पति और अब..सच का सामना, इस जंगल से मुझे... आज दूरदर्शन को शुरू हुए पूरे 50 साल हो चुके हैं। 15 सितंबर को दूरदर्शन ने 50 साल पूरे किए बुनियाद, हमलोग, फौजी जैसे सीरियल से शुरू हुआ दूरदर्शन रेडियो के बाद दूसरा ऐसा माध्यम था जिससे लोगों को जुड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा।

विशेष. कल यानि 15 सितम्बर को दूरदर्शन ने अपने पचास साल पूरे किए। ठीक इसी दिन 15 सितम्बर 1959 को दिल्ली से दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी। उस समय इसकी पहुंच सिर्फ दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों तक ही सीमित थी। धीरे-धीरे दूरदर्शन का विस्तार हुआ और यह देश के अन्य हिस्सों में उपलब्ध होने लग गया।

80 के दशक में देश में कलर टेलीविजन की शुरुआत हुई। इसके बाद बड़े पैमाने पर ट्रांसमीटर स्थापित किए गए। इससे देश के दूर-दराज इलाकों में टीवी की पैठ बनी। 1982 में एसियाड खेलों के रंगीन प्रसारण से दूरदर्शन को और लोकप्रिय बनाया।

इसी दौरान भारत का पहला धारावाहिक हम लोग शुरू हुआ और ये जल्दी ही सबसे ज्यादा देखा जाने वाला सीरियल बन गया। इस सीरियल का सबसे अहम हिस्सा अशोक कुमार का सीरियल के अंत में आकर जो बातें बताते थे उसे लोग बड़े ध्यान से सुनते थे। इसके बाद आया बुनियाद सीरियल,यह सीरियल भारत और पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित परिवारों के बनते बिगड़ते संबंधों पर आधारित थी। उस समय के ये भी सबसे ज्यादा देखे जाने वाली धारावाहिक थी। इसमें मुख्य भूमिका आलोक नाथ(मास्टर जी), अनीता कंवर (लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ आदि ने निभाई थी।

मालगुडी डेज़,ये जो है जिन्दगी, रजनी, ही मैन,वाहः जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज,व्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख आदि कुछ ऐसे सीरियल्स रहे हैं, जिसे उस दौर के हम और आपमें से कई ऐसे होंगे जिन्हें इन सीरियलों का बेसब्री से इन्तज़ार रहता था।

रविवार को तो हम सुबह से ही मैन से शुरू करते हुए रजनी, वाह जनाब देखना शुरू करते थे तो दोपहर में ही कुछ समय के लिए टीवी से अलग हटते थे फिर शाम में हर रविवार को दिखाई जाने वाली फिल्म देखने बैठ जाते थे तो फिर रात में 8.45 पर समाचार,(दूरदर्शन का चेहरा सलमा सुल्तान) देखकर ही टीवी देखना छोड़ते थे, फिर खाना खाकर सो जाया करते थे। उस समय के संडे का मतलब होता था आजकल के टोटल फंडे होता था। हमारा मकसद यहां आपको दूरदर्शन के यादगार सफ़र में ले जाकर आपको उन यादों से रूबरू कराना है। यादों में लौटना किसे नहीं अच्छा लगता है तो चलिए लौटते हैं दूरदर्शन की पुरानी दुनिया में।

हम लोग में अशोक कुमार और विनोद नागपाल जैसे मंजे हुए कलाकारों ने टीवी के माध्यम से लोगों के ड्राइंग रूम में पहुंच बढ़ाई। वहीं फौजी ही वह सीरियल था जिससे बॉलीवुड के मिला अपना किंग खान।

सीधे साधे भारतीय परिवेश का आइना रहा दूरदर्शन पहले समाज के अनुसार चलता था लेकिन जैसे जैसे समय बदला और दूरदर्शन भी बदलने लगा। छोटे पर्दे पर दूरदर्शन को टक्कर देने निजी चैनलों की एंट्री हुई। उसके बाद आजतक जो बदलाव छोटे पर्दे पर हुआ है उसका अंदाज लगाना मुश्किल था। छोटे पर्दे ने समाज के अनुरूप खुद बदला ही नहीं बल्कि समाज को बदलने को भी मजबूर किया।

नई प्रतिभाओं को सामने लाने, बढ़ते टेलीविजन के क्रेज को भुनाने और खुद को फैमस बनाने के लिए रियालिटी शो आए। लेकिन जो रियालिटी शो बूगी वूगी के समय शुरू हुए थे वह केवल नाच गाने को लेकर हुआ करते थे। फिर वह अन्नू कपूर का मेरी आवाज सुनो हो या फिर बूगी वूगी डांस शो। कॉमेडी की बात करें तो हम पांच जैसे सीरियल अभी अभी एंट्री ले चुके थे।

डांस के बाद आया जमाना सास बहु वाले सीरियल्स का। यही मौका था जब कुछ दिनों पहले तक टीवी की महारानी कही जाने वाली एकता कपूर ने अपने पैर पसारने शुरू किए थे। इससे पहले उनके प्रोडक्शन हाउस ने हम पांच कॉमेडी शो दिया था। सास बहू घरेलू झगड़ो से शुरू हुआ इस तरह का सिलसिला। इसी दौरान बॉलीवुड शहंशाह अमिताभ बच्चन ने खुद को असफलता और घाटे से उबारने के लिए टीवी का दामन थामा और उनका शो कौन बनेगा करोड़पति रियालिटी शो की नई इबारत लिखता गया।

सास बहू झगड़ो के बाद बच्चों के प्रमुख किरदार वाले टेलीविजन शो का जमाना आया और हमारी आनंदी यानी बालिका वधु, उतरन, अंतरा जैसे शो बने छोटे परदे की धड़कन। यही समय था जब रियालिटी शो ने अपना रंग बदला और वह कुछ ज्यादा ही रियल हो गए। अब समय गया था कि खुलकर सच का सामना किया जाए, भले ही फिर टीवी पर अपने सेक्स संबंधो की बात हो या कैमरे के सामने बिकनी में जंगल में नहाना। सच का सामना, खतरों के खिलाड़ी, बिगबॉस और इस जंगल से मुझे बचाओं सीरियल ने छोटे परदे को विवादों में तो खड़ा किया ही लेकिन यह एहसास दिला दिया की अब छोटा पर्दा उम्र में बड़ा हो चुका है।

Thanks & Regards!

Vivek Anjan Shrivastava