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Wednesday, August 29, 2012

मकबूल भेजती थी

किताबो  में  गुलाब  के  फूल  भेजती  थी ,
इशारो  से  क़यामत  के  शूल  भेजती  थी ,
हम  मिल  न  सके,  किनारों  की  तरह ,
वो  मुझे  प्यार  के  मकबूल  भेजती  थी 



Monday, August 13, 2012

बहुत मग़रूर हैं


चाहते जीना नहीं पर जीने को मजबूर हैं 
ज़िन्दगी से दूर हैं और मौत से भी दूर हैं 

दूर से उनके दो नैना जाम अमृत के लगे
पास जा देखा तो पाया ज़हर से भरपूर हैं 

जन्म पर दावत सही, है मौत पर दावत मगर
कैसे-कैसे वाह री दुनिया तेरे दस्तूर हैं 

ठीक हो जाते कभी के हमने चाहा ही नहीं 
जान से प्यारे हमें उनके दिए नासूर हैं 

भूखे बच्चों की तड़प, चिथड़ों में बीवी का बदन
ज़िन्दगी हमको तेरे सारे सितम मंज़ूर हैं 

लड़खड़ाने पर हमारे तंज़ मत करिए जनाब
हौसला हारे नहीं हैं हम थकन से चूर हैं 

व्यस्तताओं की वजह से हम न जा पाते कहीं
लोग कहते हैं 'अकेला' जी बहुत मग़रूर हैं 


साभार : वीरेंदर खरे "अकेला" 

Thursday, August 2, 2012

जब 'एंग्री यंग मैन' ने बॉलीवुड को बनाया वन-मैन इंडस्ट्री

एंग्री यंग मैन' से लेकर 'शहंशाह ऑफ बॉलीवुड' तक अमिताभ ने काफी लंबा सफर तय किया है। अमूमन देखा गया है कि वक्त के साथ लोगों की पॉपुलरिटी घटती है और छवि धूमिल होने लगती है। पर यह उनकी शख्सीयत ही है कि अभी भी उनका क्रेज जाता नहीं। अमिताभ बच्चन एक ब्रांड हैं, जिससे बॉलीवुड की पहचान जुड़ी है। प्रोड्यूसर्स उन्हें अपनी फिल्म में लेने को तरसते हैं, तो स्क्रिप्ट राइटर्स उनकी पर्सनालिटी को सूट करने वाली बेहतरीन स्क्रिप्ट लिखने के सपने देखते हैं। बिग बी की कड़क पर्सनालिटी के पीछे एक संवेदनशील कलाकार का दिल धड़कता है, जिसके लिए सेल्यूलॉइड अभिव्यक्ति से ज्यादा अस्तित्व का माध्यम है।


क्या आप जानते हैं कि जब अमिताभ का जन्म हुआ तो इनके पिता हरिवंश राय बच्चन ने इनका नाम 'इन्कलाब' रखा था? नैनीताल के शेरवुड स्कूल में पढ़ाई के दौरान उनका रुझान एक्टिंग की ओर हुआ। दिल्ली में कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने कोलकाता का रुख किया। हालांकि, यहां उनका मन नहीं लगा। एक दिन उन्होंने ठान लिया कि वे वही करेंगे जो उनके दिल ने हमेशा चाहा था। और इस तरह उन्होंने वहां की शिपिंग कंपनी की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ मुंबई का रुख किया। सपनों के शहर मुंबई में दुबले-पतले और लंबी कद-काठी के अमित जब मुंबई पहुंचे तो इस शहर ने उनका स्वागत खुली बाहों से नहीं किया था। यह एक निर्दयी जगह थी, जहां हजारों लोग स्टार बनने के सपने लिए आते थे पर वे स्टूडियो फ्लोर तक पहुंचने से पहले ही टूट जाते थे। शुरुआत में अमिताभ को जैसा रेस्पॉन्स मिला उससे उन्हें लगा कि उन्हें वापस उसी जगह जाना होगा जहां उन्हें कोई जानता नहीं था और वही काम करना होगा जिसमें जरा भी रुचि नहीं थी। 6 फुट 3 इंच की हाइट का अभिनेता होना हिंदी सिनेमा के लिए आम बात नहीं थी। कुछ प्रोड्यूसर्स ने तो उनकी रंगत के कारण भी उन्हें ठुकरा दिया था।


फिर अमिताभ ने सोचा कि अपनी आवाज का फायदा उठाया जाए, पर यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया। हर तरफ से उपेक्षित होने के कारण उन्होंने हार मान ली और वापसी की तैयारी करने लगे। तभी उनके पास फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' का ऑफर आया। फिल्म तो पिट गई, पर अमिताभ की अभिनय कला को पहचान मिल गई। पहली ही फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट न्यूकमर का नेशनल अवार्ड मिला। पर किस्मत ने अब भी उनकी राह में कई रोड़े खड़े किए। उम्दा परफॉर्मेन्स के बावजूद अमिताभ को न के बराबर सफलता मिल रही थी। एक के बाद एक उन्होंने कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए। कुछ फिल्मों के लिए उन्होंने वॉइस-ओवर भी किया। यह जंग जारी ही थी कि अमिताभ के हिस्से में 'आनंद' आ गई। ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार के होने के बावजूद अमिताभ के काम को पसंद किया गया। इसके लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। फिल्म सुपरहिट रही। पर अब भी उनकी पहचान एक ऐसे अभिनेता के रूप में थी जो काफी लंबा है पर ठीक-ठाक एक्टिंग कर लेता है। उनकी 13वीं फिल्म 'जंजीर' से उन्हें वह मिला जिसका उन्होंने सपना देखा था।



'जंजीर' से हुई नई सुबह


'जंजीर' ने बिग बी की दुनिया ही बदल दी। सक्सेस के अलावा उनकी जीवनसाथी जया भादुड़ी से भी इसी फिल्म के दौरान उनकी मुलाकात हुई। प्रकाश मेहरा की इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा के इतिहास में शायद पहली बार एंटी-हीरो जैसे कैरेक्टर को इंट्रोड्यूस किया। इसी फिल्म ने उन्हें 'एंग्री यंग मैन' की इमेज भी दी। 1970 की शुरुआत तक वे सक्सेसफुल तो हो गए थे पर स्टारडम का आना अभी बाकी था। इस दशक के दौरान आईं अमित की दो फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुईं- 'दीवार' और 'शोले'। 'शोले' में उन्होंने जय का किरदार निभाया। फिल्म में जय तो मर गया पर एक नए अमिताभ का जन्म हो गया। इसके बाद 'दीवार' को मिली अप्रत्याशित सफलता ने बॉलीवुड को 'वन-मैन इंडस्ट्री' के नाम से फेमस कर दिया। इस समय तक हर प्रोड्यूसर समझ गया था कि अगर उनकी फिल्म में अमिताभ रहेंगे तो फिल्म का हिट होना तय है। एक जमाने में साइड रोल करने वाले अमित अब सेल्युलॉइड की जान बन चुके थे। उनकी पॉपुलरिटी के चलते कई दूसरे एक्टर्स अच्छी एक्टिंग के बावजूद पीछे रह गए। इसके बाद तो उन्होंने बैक-टू-बैक कई हिट्स दिए, जैसे 'अमर अकबर एंथनी', 'डॉन', 'त्रिशूल', 'काला पत्थर' और 'सिलसिला'। फिल्म 'कूली' की शूटिंग के दौरान अमिताभ का एक्सीडेंट हो गया और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें रिकवर करने में काफी लंबा समय लगा। इस दौरान देश भर में उनके जल्द ठीक होने के लिए लोग दुआएं करने लगे। अमिताभ मानते हैं कि दर्शकों के प्यार के कारण ही वे आज जिंदा हैं।


केबीसी से हुआ नया जन्म


अमिताभ ने एक प्रोडक्शन कंपनी बनाई थी- अमिताभ बच्चन कॉर्पोरेशन लिमिटेड। इस कंपनी ने कुछ फिल्में प्रोड्यूस कीं, पर सभी पिट गईं। भारी नुकसान हुआ। उन्होंने कई जगहों से कर्ज लिए पर आखिरकार कंपनी डूब गई। इधर, उनकी फिल्में भी फ्लॉप होने लगीं थीं। तब साल 2000 के दौरान उन्हें 'कौन बनेगा करोड़पति' नाम का गेम शो होस्ट करने का मौका मिला। उसके बाद जो हुआ उसने टीवी के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। शो को अपार सफलता मिली और अमिताभ का जैसे नया जन्म हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने सारे कर्ज चुकाए और दोबारा कंपनी खड़ी की।


आज भी हैं सुपर स्टार


राजेश खन्ना के बाद अगर इंडस्ट्री में कोई सुपर स्टार कहलाया तो वह हैं अमिताभ बच्चन। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी यह जगह कोई दूसरा ले नहीं पाया है। अमिताभ आज भी असली सुपर स्टार हैं। 

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 साभार : दैनिक भास्कर