अंजन.... कुछ दिल से
अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
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Wednesday, August 29, 2012
मकबूल भेजती थी
किताबो में गुलाब के फूल भेजती थी ,
इशारो से क़यामत के शूल भेजती थी ,
हम मिल न सके, किनारों की तरह ,
वो मुझे प्यार के मकबूल भेजती थी
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