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Saturday, May 8, 2010

हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये


हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए

तलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए

कचा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आए

एइसा भी हुस्न क्या कि तरसती रहे निगाह
एइसी भी क्या ग़ज़ल जो न गाने के काम आए

वह दर्द दे जो रातों को सोने न दे हमें
वह ज़ख़्म दे जो सबको दिखाने के काम आए

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