Pages

Friday, February 26, 2010

दिल की बातों को,

समझना मुश्किल होता है दिल की बातों को,
आसानी से उकेर दिया आपने एहसासों को,
बनाए रखे खुदा आपके दोस्ताने को,
क्या कहें इन खूबसूरत जज़्बातों को!!!
 
मेरा नाम वो अक्सर लिखा करता है अपने गीतो मेंमेरे लिए उसको अपनी हाथो की लकीरों को बदलना होगापढता है वो मेरा लिखा हुआ इबादत की तरह"क्या हूँ मैं उसकी" यह खुदा से पूछना होगामैं उसके जनून की तलाश हूँ शायद इस जन्म मेंमेरे लिए उसको अपनी किस्मत से लड़ना होगाकरते नही है हम उम्र का हिसाब सच्ची दोस्ती मेंऐसी दोस्ती के लिए उमर का हर फ़ासला काम करना होगायह सुन के क्या कहेगा जमाना मुझे इसकी ख़बर नहीउस दिवाने के लिए मुझे अपना नाम अब बदलना होगाखता है उसके दिल की या मेरी किस बात पर उसको आता है प्यारयह बात है क्या अब मुझे अपने दिल से यह पूछना होगामेरी खातिर वो माँगता है खुदा से ना जाने कितनी दुआएंमुझे उसकी दोस्ती के लिए खुदा से शुक्रिया कहना होगाउसके दिल में हैं मेरे लिए इतने हसीन जज्बात………..यह जान कर मुझे अपने दिल के कोने मैं हमेशा उसको रखना होगा!!
 
 
 
प्यार में बस नाम और जगह बदल जाती हैसबके हिस्से वही आँसू वही तन्हाई ही आती हैजब चदता है इश्क़ का जनून किसी के सिर परतो फिर दुनिया उसको रंगीन नज़र आती हैपा जाते है सिर्फ़ चंद लोग जब अपनी मंज़िलतो राहे वफ़ा की रोनक कुछ और बढ़ जाती हैमत सुना करो रातो को तुम इश्क़ के किस्से किसी सेसुना है की इनको सुनने से रातो की नींद उड़ जाती है !!
 
 
वादा ए वफ़ा का निभौं कैसे,चाँद हूँ में तो दिन में नज़र आऊ कैसेआँखो में बिखरा हुआ कोई पिछले पहर का ख्वाब हूँ मैंपुकारे भी कोई तो अब इन आँखो में समाऊ कैसेभरा है दिल की गहराई में जैसे कोई दर्द तनः सा सफ़रअब तू ही बता दे की वेआरणो में

 

 

सीधे चलते जाना


अनुभव से पूर्ण
उसने कहा- बेटा
अब तुम बड़े हो गए हो
अब तुम सच बोलना छोड़ दो
तुम्हें आगे बढ़ना है
और वो रास्ता
जो पीछे की ओर खुलता है
उस पर चलो
सीधे चलते जाना
रास्ते पर कोई खड़ा हो
अगर तुमसे पहले
उसके पीछे मत लगना
गिरा देना उसको
चाहे जैसे भी
बेटा, अब तुम्हें
दया-करुणा भूला देनी चाहिए
अब तुम बच्चे नहीं रहे
कुछ सीखो
ज़माने के दस्तूर हैं
सब दौड़ रहे हैं
दूसरे के कंधों पर सवार होकर ।।

कोशिश न करना कीमत लगाने की




धोखे से लूट ले जा सकते हो तुम भी,
पर कोशिश न करना कीमत लगाने की,
जिसके बदले में बिक जाये इमान मेरा,
औकात इतनी नहीं अभी इस ज़माने की






Tuesday, February 23, 2010

कभी कभी गुनगुना लिया है

जो भी आधा और अधूरा शब्द मिला मुझको राहों में
मैने उसको पिरो छन्द में कभी कभी गुनगुना लिया है

जितनी देर टिके पाटल प
टपके हुए भोर के आंसू
उतनी देर टिकी बस आकर
है मुस्कान अधर पर मेरे
जितनी देर रात पूनम की
करती लहरों से अठखेली
उतनी देर रहा करते हैं
आकर पथ में घिरे अंधेरे

किन्तु शिकायत नहीं, प्रहर की मुट्ठी में से जो भी बिखर
आंजुरि भर कर उसे समेटा और कंठ से लगा लिया है

पतझड़ का आक्रोश पी गया
जिन्हें पत्तियो के वे सब सुर
परछाईं बन कर आते हैं
मेरे होठों पर रुक जात
खो रह गईं वही घाटी म्रं
लौट न पाईं जो आवाज़ेंं
पिरो उन्हीं में अक्षर अक्षर
मेरे गीतों को गा जाते

सन्नाटे की प्रतिध्वनियों में लिपटी हुई भावनाओं को
गूंज रहे निस्तब्ध मौन में अक्सर मैने सजा लिया है
यद्यपि रही सफ़लताओं स
मेरी सदा हाथ भर दूरी
मैने कभी निराशाओं का
स्वागत किया नहीं है द्वारे
थके थके संकल्प्प संवारे
बुझी हुई निष्ठा दीपित कर
नित्य बिखेरे अपने आंगन
मैने निश्चय के उजियारे

सन्मुख बिछी हुई राहों का लक्ष्य कोई हो अथवा न हो
मैने बिखरी हुई डगर को पग का सहचर बना लिया है


लघुकथा

प्रशिक्षु : दृश्य एक

डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत एक साल के प्रशिक्षु कार्य के लिए मन में उमंग लिए हुए उसने एक वृहदाकार, प्रसिद्ध, निजी अस्पताल में अपनी सेवा देना चाहा। पहले ही दिन उसकी रात्रिकालीन ड्यूटी के दौरान नगर के एक प्रतिष्ठित, सम्पन्न परिवार के मुखिया को आकस्मिकता में अस्पताल लाया गया। मरीज को दिल का भयंकर दौरा पड़ा था और मरीज के अस्पताल पहुँचने से पहले ही यमदूत अपना काम कर गए थे। उसने मरीज की नब्ज देखी जो महसूस नहीं हुई, दिल की धड़कनें सुनीं जो गायब थीं और घोषित कर दिया कि मरीज को अस्पताल में मृत अवस्था में लाया गया।

मरीज के सम्पन्न परिवार जनों को यह खासा नागवार ग़ुजरा और उन्होंने हल्ला मचाया कि मरीज का इलाज उचित प्रकार नहीं हुआ और एक प्रशिक्षु के हाथों ग़लत इलाज से मरीज को बचाया नहीं जा सका।

अगले दिन अस्पताल के मालिक-सह-प्रबंधक ने उस प्रशिक्षु को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

प्रशिक्षु: दृश्य दो

डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत एक साल के प्रशिक्षु कार्य के लिए मन में उमंग लिए हुए उसने एक वृहदाकार, प्रसिद्ध, निजी अस्पताल में अपनी सेवा देना चाहा। पहले ही दिन उसकी रात्रिकालीन ड्यूटी के दौरान नगर के एक प्रतिष्ठित, सम्पन्न परिवार के मुखिया को अस्पताल लाया गया। मरीज को दिल का भयंकर दौरा पड़ा था और मरीज के अस्पताल पहुँचने से पहले ही यमदूत अपना काम कर गए थे। उसने मरीज की नब्ज देखी जो महसूस नहीं हुई, दिल की धड़कनें सुनीं जो नहीं थी। उसका दिमाग तेज़ी से दौड़ा। मरीज का परिवार शहर का सम्पन्नतम परिवारों में से था। उसने तुरंत इमर्जेंसी घोषित की, मरीज के मुँह में ऑक्सीजन मॉस्क लगाया, दो-चार एक्सपर्ट्स को जगाकर बुलाया, महंगे से महंगे इंजेक्शन ठोंके, ईसीजी, ईईजी, स्कैन करवाया, इलेक्ट्रिक शॉक दिलवाया और अंतत: बारह घंटों के अथक परिश्रम के पश्चात् घोषित कर दिया कि भगवान की यही मर्जी थी।

मरीज के सम्पन्न परिवार जन सुकून में थे कि डाक्टर ने हर संभव बढ़िया इलाज किया, अमरीका से आयातित 75 हजार रुपए का जीवन-दायिनी इंजेक्शन भी लगाया, पर क्या करें भगवान की यही मर्जी थी।

अगले दिन अस्पताल के मालिक-सह-प्रबंधक ने मरीज के बिल की मोटी रकम पर प्रसन्नतापूर्वक निगाह डालते हुए उसे शाबासी दी- वेल डन माइ बॉय, यू विड डेफ़िनिटली गो प्लेसेस

दुध्मुहें बच्चे की मां उसे दूध पिलाये बिना सो गई

मौसम बहुत खराब था, घर पर से लाइट चली गई...
आपसे वायदा किया था और हम चल दिए....
सोचा दोस्त की दूकान से मेसेज ही दे देते हैं।
की भाई लेट हो जायेंगे, तो आप फिकर मत करना...
मुझे कहते हो की मेरी फिकर मत करना,
लेकिन ख़ुद तो करते रहते हो....
दोस्त की दुकान तक पहुंचे तो जनरेटर महाराज बंद थे...
मौसम खराब, लाइट नही , और जनरेटर खराब..
इसे कहते है, कंगाली मे आता गीला
आसमान की तरफ़ देखा,
बादल आसमान मे से, मानो अपना गला फाड़ कर चिल्ला रहे थे
फ़िर आसमान रो पड़ा...
आप के जैसे तो न था....
ऊंचे , बहुत ऊंचे
और उस के आंसू सब तरफ़ फ़ैल गए...
और मैं चलता गया,
भीगता गया, चलता गया
एक गाड़ी वाले भाई साहब आए,
गाड़ी रोकी और कहने लगे,
क्यूँ भाई, बीच मे चला रहे हो,
मरना है क्या...
मन मे आया, भाई , जीना कौन कमबख्त चाहता है
जल्दी थी, आप इंतज़ार कर रहे थे....
मन मे आया,
अब नही करने देने वाला इंतज़ार...
बहुत कर चुके हो॥
अब और नही॥
जो सोचोगी , उम्मीद से पहले मिलना चाहिए
निचुड़ते हुए आख़िर , हम आख़िर ऑफिस पहुँच ही गए..
सब से पहले अपनी मेल देखी॥
आप नही थे...
कोई बहुत ज़रूरी काम रहा होगा
सुबह भी जल्दी उठते हो न...
देखता रहा, सोचता रहा, और इंतज़ार करता रहा....
इंतज़ार मैं थे,
जैसे दुध्मुहें बच्चे की मां उसे दूध पिलाये बिना सो गई हो...
और बच्चा इंतज़ार मे है....
मां उसे कैसे छोड़ दे , और बच्चा उसके बगैर जी नही सकता