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Wednesday, September 29, 2010

साईं अमृत वाणी






सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके ना कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिरडी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साई की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध हो जाये तेरा बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तु निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग पग काँटे बोई के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्याय शील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी पारबन्ध के बदले है सत्यालेक
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत छाटना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डाँवाडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बीना प्रीत के तार हिले मिले ना प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुना का अवतार
घट घट की वो जानता महा योगी सुखकार

(
जय सांई राम)

 

Monday, September 27, 2010

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं

दिल की बातो को छुपाना अपनी फितरत नही

वो राजदार और होंगें जो लबों को सीते हैं

वेसे मर चुके हैं सब शहर में अपनी अपनी नजरों में

तो ग़लत क्या हैं गर हम भी मुर्दों में जीते हैं

उन्हें तो शायद इल्म भी नही के सालों गुजर गए

यहाँ तो लम्हें भी गिन गिन के बीते हैं

कहानी बताता हैं कोई अपनी उस चोराहे पर यहाँ

घर तबाह कर के हमारा उन्होंने यहाँ घर ख़रीदे हैं

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !





जरा देखो मेरे रकीबो के चेहरों की खुशी

ठोकर लगकर गिरा हूँ वो कहते हैं के हम जीते हैं



कोई न बचानें बाला "साहिल" को बुरी आदतों से,

इसलिए रिन्दों में बैठकर भी पी लेते हैं

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !

साभार: शिव कुमार "साहिल"

बहाने पीने के

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !

पीने दे मुझे आज फिर साकी,पीने के तो बहाने  होते है,न पीने वाले क्या जाने,पीने वाले दीवाने होते है,महसूस करने के लिए अपनापन हों दिल में,ना पीनें वालो से वों बेगाने होते है,मिलना चाहो तो साथ देती है कुदरत भी,ना मिलने के हज़ार अफ़साने होते है,कहते है की मजबूर है वों खुद से,पर बाद में उन्हें ही हमारे किस्से सुनाने होते है,कहाँ जाए मयकदा छोड़ के हम,दुनिया क सारे गम यही तो भुलाने होते है,पीने दे मुझे आज फिर साकी,पीने के तो भने होते है!!!

Sunday, September 26, 2010

कॉरपोरेट जीवन में प्रगति के गुर

जब कॅरियर की बात आती है तो हर कोई अपनी भूमिका और जवाबदेही के लिहाज से आगे बढ़ना चाहता है। शिखर पर पहुंचने की राह कठिन जरूर है, लेकिन सही तौर-तरीके और कार्य संस्कृति को अपनाकर तेजी से इस दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। यहां कुछ ऐसी बातें पेश हैं, जिनके जरिए आप अपने सहकर्मियों व वरिष्ठ अधिकारियों को प्रभावित कर सकते हैं।

मल्टीटास्किंग : आज के जटिल माहौल में मल्टीटास्किंग की उपयोगिता को नकारना मुश्किल है। बस ध्यान देने वाली बात यह है कि हर काम को सही तरह से और प्राथमिकतानुसार अंजाम दिया जाए। आपका लक्ष्य कम से कम करके रुक जाना नहीं होना चाहिए। अतिरिक्त कार्यभार तो लें, लेकिन यह भी ख्याल रहे कि इससे आपकी मौजूदा जिम्मेदारियां प्रभावित न हों।

नकारात्मकता से दूर : क्रोध, शिकायतें, इल्जाम लगाना, बुरा-भला कहने की आदत आपकी निर्णय क्षमता को प्रभावित करते हुए आपके काम पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं। अपने सहकर्मियों का दोष निकालने से कोई फायदा नहीं होता। चुप रहें और अपने काम से काम रखें।

नेटवर्क बनाएं: नेटवर्क बनाना आज का मंत्र है। खुद को नेटवर्क में जरूर रखें। इसके लिए ऑफिस की मीटिंग, सहकर्मियों से बातचीत, दूसरी क्रियाओं और टीम लीडर्स के साथ सतत संपर्क बनाए रखें। अपने सहकर्मियों की लिस्ट को सिर्फ उसी फ्लोर तक सीमित न रखें, जहां आप बैठते हों। इस दायरे को आगे बढ़ाएं। यह काम वर्कशॉप और कांफ्रेंस के जरिए संभव है।

योग्यताएं बढ़ाएं : अपने मौजूदा काम के अलावा दूसरी योग्यताओं को हासिल करने की कोशिश करें, जिससे आगे जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में मदद मिलेगी। ऐसी योग्यताओं को जानें और अध्ययन करें, जिन्हें हासिल करना कॅरियर के लिहाज से उचित है। इसके लिए लघु या अल्पकालिक कोर्स कर सकते हैं।

नियोजन : किसी भी काम को सफल व प्रभावी बनाने की मूल कड़ी है योजना बनाना। कोई नया काम, प्रोजेक्ट या पद मिलने पर एक निर्धारित समय के लिए एजेंडा तैयार कर लें। लाभ बढ़ाने, घाटा कम करने और प्रतियोगिता में बने रहने के नए-नए तरीके सोचें। इससे प्रमोशन के समय आप औरों से अलग खड़े नजर आएंगे।

साभार : दैनिक भास्कर  


Friday, September 17, 2010

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,

फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबमें दाँव, बंधु!
....सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Tuesday, September 14, 2010

Happy Engineers' Day

I take the vision which comes from dreams
and apply the magic of science and mathematics,
adding the heritage of my profession
and my knowledge of nature's materials
to create a design.

I organize the efforts and skills of my fellow workers
employing the capital of the thrifty
and the products of many industries,
and together we work toward our goal
undaunted by hazards and obstacles.

And when we have completed our task
all can see
that the dreams and plans have materialized
for the comfort and welfare of all.


Centuries ago people who sacrificed their
sleep, food, laughter & other joys of life
were called "SAINTS"
Now they are called ENGINEERS……….

HAPPY ENGINEERS DAY

अरमान न रहा,

जो आपने न लिया हो, ऐसा कोई इम्तहान न रहा,
इंसान आखिर मोहब्बत में इंसान न रहा,
है कोई बस्ती, जहा से न उठा हो ज़नाज़ा दीवाने का,
आशिक की कुर्बत से महरूम कोई कब्रस्तान न रहा,

हाँ वो मोहब्बत ही है जो फैली हे ज़र्रे ज़र्रे में,
न हिन्दू बेदाग रहा, बाकी मुस्लमान न रहा,

जिसने भी कोशिश की इस महक को नापाक करने की,
इसी दुनिया में उसका कही नामो-निशान न रहा,

जिसे मिल गयी मोहब्बत वो बादशाह बन गया,
कुछ और पाने का उसके दिल को अरमान न रहा,

Monday, September 13, 2010

हिन्दी-दिवस की आप सभी को बधाई।

हिन्दी-दिवस की आप सभी को बधाई। १४ सितम्बर १९४९ को संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा स्वीकार किया गया था।
संसार के जितने भी राष्ट्र हैं सब अपनी भाषा को प्राथमिकता देते हैं और हम अपनी भाषा बोलने और सीखने में शर्म का अनुभव करते हैं। इसका भयानक परिणाम मैं नई पीढ़ी में देख रही हूँ। जो ना हिन्दी ठीक से पढ़ सकता है ना लिख सकता। और अंग्रेजी में पारंगत है। दोषी नई पीढ़ी नहीं दोषी हम लोग हैं। हमने उनको अपनी भाषा के संस्कार ही कहाँ दिए। हमने उसे अंग्रेजी बोलने के लिए ही प्रेरित किया। उसे कभी हिन्दी की विशेषताएँ नहीं बताई।
हमारी हिन्दी भाषा संसार की सर्वोत्तम भाषा है। इसकी वैग्यानिकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। तर्क संगत है। सुमधुर और सरल है। भूमावृति के कारण नित्य नवीन शब्दों को जन्म देने वाली है। एक-एक शब्द के कितने ही पर्याय वाची हैं। हर शब्द का सटीक प्रयोग होता है। अलग-अलग संदर्भों में एक ही शब्द नहीं , अलग-अलग शब्द हैं।
समन्वय की प्रवृति के कारण दूसरी भाषाओं के शब्दों को जल्दी ही अपने में समा लेती है। माँ के समान बड़े प्यार से सबको अपने आँचल में समा लेती है। यही कारण हैकि दूसरी भाषाओं के शब्द यहाँ आकर इसीके हो जाते हैं। फिर भी हम इसका लाभ नहीं उठा पा रहे। यह हमारा दुर्भाग्य ही तो है।
आज विश्व के अनेक देश हिन्दी के महत्व को समझ रहे हैं। इसके शिक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं, गोष्ठियाँ कर रहे हैं और हम इसकी उपेक्षा कर रहे हैं।
हिन्दी-दिवस के अवसर पर मैं अपने देश वासियों को यही संदेश देना चाहूँगी कि यदि अपने स्वाभिमान और अपनी अस्मिता को बचा कर रखना है तो अपनी भाषा को महत्व देना सीखो। इसे ग्यान-विग्यान का वाहक बनाओ तथा इसमें संचित कोष का लाभ उठाओ। अपनी भाषा सीखो यही तुमको उन्नति दिलाएगी
यदि अपनी माँ भिखारिन रही तो पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी।
जय भारत।

हिन्दी दिवस

हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:

संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा ।
हिंदी की महिमा
ND
संस्कृत और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।

हिंदी भाषा को हम राष्ट्र भाषा के रूप में पहचानते हैं। हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। विश्व में 500 से 600 मिलियन लोग हिंदी भाषी हैं

देश के गुलामी के दिनों में यहाँ अँग्रेज़ी शासनकाल होने की वजह से, अँग्रेज़ी का प्रचलन बढ़ गया था। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात देश के कई हिस्सों को एकजुट करने के लिए एक ऐसी भाषा की ज़रूरत थी जो सर्वाधिक बोली जाती है, जिसे सीखना और समझना दोनों ही आसान हों

इसके साथ ही एक ऐसी भाषा की तलाश थी जो सरकारी कार्यों, धार्मिक क्रियाओं और राजनीतिक कामों में आसानी से प्रयोग में लाई जा सके। हिंदी भाषा ही तब एक ऐसी भाषा थी जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय थी।
  संस्कृत और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।      


हिंदी भाषा को एकजुटता का माध्यम बनाने के लिए सन् 1949 में एक एक्ट बनाया गया जो सरकारी कार्यों में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य करने के लिए था

धीरे-धीरे हिंदी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है।

आज कई विदेशी छात्र हमारे देश में हिंदी और संस्कृत भाषाएँ सीखने आ रहे हैं। विदेशी छात्रों के इस झुकाव की वजह से देश के कई विश्वविद्यालय इन छात्रों को हमारे देश की संस्कृति और भाषा के ज्ञानार्जन के लिए सुविधाएँ प्राप्त करवा रहे हैं। विदेशों में हिंदी भाषा की लोकप्रियता यहीं खत्म नहीं होती। विश्व की पहली हिंदी कॉन्फ्रेंस नागपुर में सन् 1975 में हुई थी। इसके बाद यह कॉन्फ्रेंस विश्व में बहुत से स्थानों पर रखी गई
दूसरी कॉन्फ्रेंस- मॉरीशस में, सन् 1976 मेंतीसरी कॉन्फ्रेंस - भारत में, सन् 1983 मेंचौथी कॉन्फ्रेंस - ट्रिनिडाड और टोबैगो में, सन् 1996 में पाँचवीं कॉन्फ्रेंस - यूके में, 1999 मेंछठी कॉन्फ्रेंस - सूरीनाम में, 2003 में और सातवी कॉन्फ्रेंस - अमेरिका में, सन् 2007 में

हिंदी भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :
* आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना भी ग्रासिन द तैसी, एक फ्रांसीसी लेखक ने की थी

* हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन (जो कि एक अँग्रेज़ हैं) ने किया

* हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य 'द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदा' को लंदनClick here to see more news from this city विश्वविद्यालय में पहली बार एक अग्रेज़ विद्वान जे.आर.कार्पेंटर ने प्रस्तुत किया था।
 
 

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

by Rahat Indori

Sunday, September 12, 2010

सतना शहर से एक और दैनिक अखबार ‘स्टार समाचार’

सतना शहर से एक और दैनिक अखबार 'स्टार समाचार' के प्रकाशन की तैयारी पूरी हो गई है। 17 सितंबर 2010 से अखबार अपने बुंदेलखंड, बघेलखंड एवं सतना संस्करण के साथ बाजार में आ जाएगा।

यह महत्वाकांक्षी अखबार वाहन व्यवसाय में अग्रणी स्टार ऑटोमोबाइल्स के मालिक रमेश सिंह ने शुरू किया है। सतना से अभी दैनिक भास्कर, नवभारत व नव स्वदेश अखबार प्रकाशित हो रहे हैं, जबकि रीवा का दैनिक जागरण, जबलपुर का राज एक्सप्रेस और वहीं से आने वाला नई दुनिया यहां अपने बड़े ब्यूरो कार्यालय डालकर सतना संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं। मुख्य अखबार दैनिक भास्कर है जो पूरे इलाके में छाया हुआ है।

सही है एक अच्चा प्रयास !
सही बाते कहने का एक मंच !
सतना जैसे प्रगतिशील बढ़ते सहर में एक सही सुरुआत कहेगे !
रमेश सिंह  जी को
 मेरी शुभ कामनाये !
 

दिल में डर कहा

यह तो बतलाओ "कौन यहाँ है जिसे प्राणों से प्यार नहीं है?"
मगर जगत में जुड़ा शुरू से,मित्र कहाँ संघार नहीं है?
 मृत्यु क्या है वस्त्र बदलना,
दो पल का विश्राम साथिओं जीवन एक अखंड पर्व है,
साधारण त्यौहार नहीं है जीना सबसे बड़ी कला है.
लेकिन यह भी अटल सत्य है मरने से डरने वाले को,जीने का अधिकार नहीं है..
 

गल्यान सांखली सोन्या ची, ही पोरी कोना ची -

गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची,
गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची, (२)

इसकी अदा मेरा दिल ले गई,
ही पोरी कोना ची,
गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची,

हो जाये अपनी अगर दोस्ती,
तू जो मिले तो मिले ज़िंदगी,
गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची

तू मेरा दिल है, जाने जिगर है
दिल दे दिया, तुझे दिल दे दिया

तू भी अच्छी लगी, दिल कि सच्ची लगी,
दिल है फिदा, मेरा दिल है फ़िदा

मेरा सपना है तू, मेरा सजना है तू
हो ना जुदा, कभी हो ना जुदा

दम से है तेरे ये रोशनी
ही पोरी कोना ची
इसकी अदा मेरा दिल ले गई
ही पोरी कोना ची

(गल्यान सांखली सोन्या ची
ही पोरी कोना ची ) \- २

साजन तुझे मिल जायेगा,
प्यार भरा दिन आयेगा,
जो प्यार ढूँढे है तेरी नज़र,
वो भी तुझे मिल जायेगा
मिल जायेगा, तुझे मिल जायेगा,
तेरा सजन तुझे मिल जायेगा
ये है रब से दुआ, हम सबकी दुआ,
साथी तेरा कोई बन जायेगा

आने लगी है लब पे हँसीं
ही पोरी कोना ची
इसकी अदा मेरा दिल ले गयी
ही पोरी कोना ची

(गल्यान सांखली सोन्या ची,      
ही पोरी कोना ची ) \- २

दिल मे सजन है, इसकी लगन है,
होगा यहीं, कहीं होगा यहीं  \- २

आँख वीरान है, दिल परेशान है
क्या हो गया, इसे क्या हो गया

ढूँढती है जिसे, कहीं जाने जिसे,
खामोश है, बड़ी खामोश है
उलझन मे इसकी है, ये ज़िंदगी
ही पोरी कोना ची

(गल्यान सांखली सोन्या ची,      
ही पोरी कोना ची ) \- २
==
संकलन :

गाना / Title: गल्यान सांखली सोन्या ची, ही पोरी कोना ची -

चित्रपट / Film: Dil Hai Ki Maanta Nahi

संगीतकार / Music Director:  Nadeem-Shravan 

गीतकार / Lyricist:  समीर-(Sameer) 

गायक / Singer(s):  Anuradha Paudwal  ,   Kumar Sanu 

दिल से एक बात ....

अपने दिल से एक दिन होकर नाराज़,
बातों-बातों में हमने उससे कह दिया।
ऐ दिल, ना परेशान कर मुझे,
और धडकना छोड़ दे।
दिल बोला बड़े इत्मीनान से ,
छोड़ दूंगा मैं उस दिन धडकना ,
"अंजन", प्यार करना तू जिस दिन छोड़ दे।
 
 

कर्मठी हटा नहीं करता है

आए जो कहर तूफां के कभी
पर्वत डिगा नहीं करता है
संघर्ष की अग्नि परीक्षा से
कर्मठी हटा नहीं करता है

टूटी एक कलम तो क्या ग़म
सूखी गर जो उसकी स्याही
कुछ पन्नों के भर जाने से
सृजन रुका नहीं करता है

जब तक दर्द न हो जीवन में
सुख का है आनंद अधूरा
बिन काँटों की संगत जोड़े
गुलाब खिला नहीं करता है

दुर्जन की संगत पाकर भी
सज्जन बुरा नहीं करता है
कितने ही विषधर लिपटे हों
चन्दन मरा नहीं करता
है
साभार : अर्चना तिवारी

Thursday, September 9, 2010

भगवान गणेश

भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को आदि देवता माना गया है.उनका पूजन किए बगैर कोई कार्य प्रारम्भ नहीं होता।गणपति विघ्नहर्ता हैं, इसलिए नौटंकी से लेकर विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है।
पत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम॥ श्री गणेशाय नमः॥, ॥श्री सरस्वत्यै नमः॥, ॥श्री गुरुभ्यो नमः॥ ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। ऐसा ही क्रम क्यों बना? किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है व गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम '॥ श्री गणेशाय नमः ॥' लिखना चाहिए। विघ्न हरण करने वाले देवता के रूप में पूज्य गणेश जी सभी बाधाओं को दूर करने तथा मनोकामना को पूरा करने वाले देवता हैं। श्री गणेश निष्कपटता, विवेकशीलता, अबोधिता एवं निष्कलंकता प्रदान करने वाले देवता हैं। उनके ध्यानमात्र से व्यक्ति उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होता है। जहाँ तक सामान्यजन का सवाल है, वह आज भी चरम आस्तिक भाव से 'ॐ गणानां त्वां गणपति गुं हवामहे' का पाठ करके सुरक्षा-समृद्धि का एक भाव पा लेता है, जो किसी भी देव की आराधना का शायद मूल कारण है।
गणपति विवेकशीलता के परिचायक है। गणपति का वर्ण लाल है; उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है। हाथी के कान हैं सूपा जैसे सूपा का धर्म है 'सार-सार को गहि लिए और थोथा देही उड़ाय' सूपा सिर्फ अनाज रखता है। हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। कान से सुनें सभी की, लेकिन उतारें अंतर में सत्य को। आँखें सूक्ष्म हैं जो जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। नाक बड़ा यानि दुर्गन्ध (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें। गणेशजी के दो दाँत हैं एक अखण्ड और दूसरा खण्डित। अखण्ड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखना चाहिए। खण्डित दाँत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए। गणेश जी के आयुध औश्र प्रतीकों से अंकुश हैं, वह जो आनंद व विद्या की प्राप्ति में बाधक शक्तियों का नाश करता है। कमर से लिपटा नाग अर्थात विश्व कुंडलिनी
और लिपटे हुए नाग का फन अर्थात जागृत कुंडलिनी. मूषक अर्थात्‌ रजोगुण, गणपति के नियंत्रण में है। मोदक गणेश जो को बहुत प्रिय है, पर सांसारिक दुनिया से परे इसका भी आध्यात्मिक भाव है.'मोद' यानी आनंद व '' का अर्थ है छोटा-सा भाग। अतः मोदक यानी आनंद का छोटा-सा भाग। मोदक का आकार नारियल समान, यानी '' नामक ब्रह्मरंध्र के खोल जैसा होता है। कुंडलिनी के '' तक पहुँचने पर आनंद की अनुभूति होती है। हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है। 'मोदक मान का प्रतीक है, इसलिए उसे ज्ञानमोदक भी कहते हैं। आरंभ में लगता है कि ज्ञान थोड़ा सा ही है (मोदक का ऊपरी भाग इसका प्रतीक है।), परंतु अभ्यास आरंभ करने पर समझ आता है कि ज्ञान अथाह है। (मोदक का निचला भाग इसका प्रतीक है।) जैसे मोदक मीठा होता। वैसे ही ज्ञान से प्राप्त आनंद भी।'
आजादी की लड़ाई के दौर में भी भगवान गणेश से प्राप्त अभय के वरदान से सज्जित होने की भावना ने समूचे स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया आयाम दे दिया था। बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता को राजनीतिक संदर्भों से उबारकर देश की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक-चेतना से जोड़ा था। सौ साल से भी अधिक काल से चली आ रही यह सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक चेतना की त्रिवेणी हर साल गणेशोत्सव के अवसर पर नए-नए रूपों में सामने आती है। लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की जो परंपरा शुरू की थी वह फल-फूल रही है।
गणेशोत्सव धर्म, जाति, वर्ग और भाषा से ऊपर उठकर सबका उत्सव बन गया है । गणपति बप्पा मोरया का स्वर जब गूँजता है तो उसमें हिन्दुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों की सम्मिलित आस्था का वेग होता है । किसी गोविंदा और किसी सलमान के घर में गणपति की एक जैसी आरती का होना कुल मिलाकर उस एकात्मकता का ही परिचय देता है जो हमारे देश की एक विशिष्ट पहचान है। साल-दर-साल गणेशोत्सव पर इस विशिष्टता का रेखांकित होना अपने आप में एक आश्वस्ति है।
गणेशोत्सव के अवसर पर एक और महत्वपूर्ण तथ्य भी रेखांकित होना चाहिए- गणेश अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजगता एवं सक्रियता के देवता भी हैं । इसलिए जब हम गणपति की पूजा करते हैं तो इसका अर्थ स्वयं को उस चेतना से जोड़ना भी है जो जीवन को परिभाषित भी करती है और उसे अर्थवत्ता भी देती है। यह चेतना अपने अधिकारों की रक्षा के प्रति जागरूकता देती है और अपने कर्तव्यों को पूरा करने की प्रेरणा भी।


गणेशोत्सव



गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दुओं का एक उत्सव है। वैसे तो यह कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे का गणेशोत्सव जगत्प्रसिद्ध है। यह उत्सव, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी (चार तारीख से चौदह तारीख तक) तक दस दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।

इतिहास

पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।

इस उत्सव में नृत्य के आयोजन के साथ भक्ति संगीत और प्रसाद का वितरण भी किया गया। गणेश उत्सव के दौरान ईमानदारी, सहिष्णुता और प्रेम के प्रतीक भगवान गणेश की प्रतिमा की पूजा की जाती है।

यह उत्सव परंपरागत रूप से 10 दिन तक चलता है। माना जाता है कि इस दौरान भगवान गणेश धरती पर आते हैं और अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। भारत में यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। विशेषकर पश्चिमी प्रांत महाराष्ट्र और उसकी राजधानी मुंबई में इस उत्सव का रंग कुछ अलग ही दिखता है। मुंबई के लगभग हर क्षेत्र में भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनको काफी सजाया जाता है।

राजिम & रिद्धि-सिद्धि के दाता, विध्नहर्ता, दुखहर्ता प्रथम पूज्य गणपति गजानंद 11 सितंबर से जगह-जगह विराजेंगे। लोग घरों में गणेश की मूर्तियां रखकर पूरे ग्यारह दिन तक सेवा और पूजा-अर्चना करेंगे। गणेशोत्सव को देखते हुए मूर्तिकार दो माह से गणेश की मूर्तियां बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं। नगर में अनेक चौक-चौराहे पर पंडालों में गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाएगी। मूर्तिकार इस वर्ष आर्डर के अनुसार नौ फीट ऊंची गणेश की मूर्तियां बना रहे हैं।

 



Wednesday, September 8, 2010

बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर था या नहीं.




1993 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यह फ़ैसला करना उसका काम नहीं है कि बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर था या नहीं.

न्यायालय ने यह भी कहा कि उसका काम यह तय करना भी नहीं है कि वहां जैसाकि हिंदू मानते हैं, उनके आराध्य राम का जन्म हुआ था या नहीं.


न्यायालय की मुख्य चिंता यह नहीं है कि यहां भगवान राम पैदा हुए थे या नहीं.

वह यह पता लगाना चाहता है कि यह भूमि क़ानूनी रूप से हिंदुओं की है या मुसलमानों की.

इतिहासकार बी बी लाल उन लोगों में से हैं जो यह मानते हैं कि बाबरी मस्जिद वाली जगह पर पहले राम मंदिर हुआ करता था.

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद वहाँ से एक अभिलेख मिला है.

इस पर लिखा हुआ है कि 12 वीं शताब्दी में राजा न्यायचंद्र ने यहां भगवान राम को समर्पित एक मंदिर बनवाया था.

खुदाई कब तक

यह पूरी तरह साफ नहीं है कि मंदिर जैसा कोई अवशेष मिलने के साथ ही खुदाई का काम रोक दिया जाएगा.

कुछ लोगों का मानना है कि यहां बौद्ध मंदिर के अवशेष की भी तलाश होनी चाहिए.

बौद्धों के कुछ संगठनों का कहना है कि मंदिर से पहले यहां एक बौद्ध मंदिर था.



इतिहासकार बी बी लाल को इसमें कोई संदेह नहीं.

उन्होंने बीबीसी को बताया कि खुदाई में अगर मंदिर के अवशेष मिल जाते हैं, तो खुदाई का काम रोक देना चाहिए.

क्योंकि न्यायालय ने सिर्फ़ इस स्थान पर मंदिर होने या न होने की जानकारी मांगी है.

लेकिन मामला इतनी आसानी से निपट जाएगा, ऐसा भी नहीं लगता.

अब जैन संप्रदाय के कुछ प्रतिनिधियों ने भी विवादित स्थान पर अपना मंदिर होने का दावा किया है.

इन लोगों का कहना है कि उन्हें वह स्थान दे देना चाहिए.

उन्होंने खुदाई के समय अपना पर्यवेक्षक रखने की मांग भी की है.

ख़तरनाक उदारहण

अयोध्या में हो रही खुदाई से देश के दूसरे विवादित पूजा स्थलों के लिए भी ऐसी मांग उठ सकती है.

इनमें मथुरा और वाराणसी भी शामिल हैं.

मथुरा को हिंदू भगवान कृष्ण का जन्मस्थान मानते हैं.

यहां कई मंदिर और मस्जिद एक-दूसरे के अगल-बगल हैं.

कई हिंदू कट्टरपंथी गुटों की मांग है कि मस्जिदों की जमीन उन्हें लौटा दी जाए.

उत्तर प्रदेश में तो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विनय कटियार ने यहां तक कहा है कि अयोध्या में हो रही खुदाई आगे के लिए उपयोगी उदाहरण साबित हो सकती है.

लेकिन कुछ इतिहासकार अयोध्या में हो रही खुदाई से सहमत नहीं.

इतिहासकार शाहिद अमीन का कहना है कि इससे लोकतंत्र के आधार को नुकसान पहुंचेगा.

उनका कहना है कि लोकतंत्र का काम दो धार्मिक विश्वासों के बीच फैसला करना नहीं है.

उन्होंने कहा कि दुनियाभर में विश्वास और उसके कारण पर होने वाली बहस पुरानी पड़ चुकी है.

 

 
संविधान विशेषज्ञ राजीव धवन कहते हैं कि 1991 के पूजा स्थल क़ानून ने यह साफ कर दिया है कि भारत के धार्मिक स्थलों की स्थिति उस रूप में बहाल रखी जाएगी, जैसी वे 1947 में थी.
लेकिन अयोध्या की बाबरी मस्जिद इस क़ानून के दायरे में नहीं आती.

क्योंकि क़ानून बनने से पहले से ही यह विवाद चला आ रहा है.
बाकि आगे क्या होगा मालूम नहीं

New Law by Govt

 
"If you find any important documents like Driving License (DL), Ration Card, Passport, Bank Passbook, Voter's Card etc. that missed by someone,
simply put them into nearby post boxes. They will be delivered to the owner and postal fee or fine will be collected from them".

New Law by Govt.
 
Pass on this useful information ... "

 


Tuesday, September 7, 2010

जीवन में सफलता के सात आध्यात्मिक नियम


पहला नियम-  प्रतिदिन मौन. ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन.बोलने की प्रकिया से दूर. रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए।
इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए। शांत बैठकर सूर्यास्त देखें. समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें ।
दूसरा नियम-  सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है.- देने का नियम। देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है। यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे।यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख-समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख- समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।

तीसरा नियम-  सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम, कर्म का नियम है।
कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है...

चौथा नियम-  सफलता का चौथा नियम "अल्प प्रयास का नियम" है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है। यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है।

प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है। घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है। मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं। यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है। इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है।


पांचवा नियम- 
सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम "उद्देश्य और इच्छा का नियम" बताया गया है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है। सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं। यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामर्थ्य का ही दूसरा रूप है. जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है।

छठवां नियम-  सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है। व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है. उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है। तब वह जो कुछ भी चाहता है. उसे स्वयमेव मिल जाता है।

अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा.. आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं। मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा। चीजों को कैसा होना चाहिए. इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं। मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा। मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा। सब कुछ जितना अनिश्चित होगा. मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी। अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।..

सातवां नियम-  सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम. धर्म का नियम. है। संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ..जीवन का उद्देश्य बताया गया है। धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा.. ..मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा। अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख.समृद्धि से भर दूंगा। हर दिन खुद से पूछूंगा..मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं। इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।..
साभार : "द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग" के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डा.दीपक चोपड़ा (लेखक)

सुविचार

 
नायक वह होता है जो सही समय पर किसी की जान बचाने के लिए आगे आता है।
वह अपना जीवन अच्छे कामों को समर्पित कर देता है। आम जिंदगी में भी कुछ लोग ऐसे ही होते हैं।
वे दूसरों की मदद के करने के लिए अपनी परवाह नहीं करते। कई बार वे अपनी जान भी दांव पर लगा देते हैं।
हमने यहां ऐसे ही नायकों को चुना है। बेशक उनके काम से हमें भी प्रेरणा मिलती है।

अच्छे मनुष्य के लषण


(1) विस्तृत ज़हन एवं खुले विचार का मालिकः
एक इश्वर पर विश्वास रखने वाला तंग नज़र नही होसकता है बल्कि वह विस्तृत ज़हन और खुले विचार का मालिक होगा। वह सब को अपनी ही तरह एक ही मालिक की मिल्कीयत और एक ही राजा की प्रजा समझता है। उस की मोहब्बत,हमदर्दी और सेवा सब के लिए एक जैसा होता है।
(2) खुद्दारी और आदर-सम्मान का एहसासः
एक इश्वर को मान्ने वाले व्यक्ति बहुत खुददार,अपनी इज़्ज़त और सम्मान का एहसास करने वाला होगा। वह जानता है कि सर्व शक्तिमान केवल एक खुदा है , लाभ या हाणी उसी के हाथ में है,मारने या जिन्दह रखने वाला वही एक ज़ात है। यह ज्ञान उसे एक ऐसी शक्ति प्राप्त करती है जो उसे निडर बेखैफ बना देती है। उस की गर्दन दुन्या के किसी चीज़ के समक्ष नही झुकती , अपना हाथ किसी के सामने नही फैलाता बल्कि वह केवल एक इश्वर से ही सारी मुराद और सारी फरयाद करता है।
(3) संकटों में निराश नही होता बल्कि बहादुरी से मुकाबला करता है।
एक इश्वर पर आस्था रखने वाला जीवन के बुरे समय में कभी निराश नही होता और न ही उस का हृदय टुटता है। वह उस खुदा पर विश्वास करता है जो बहुत दयालु तथा बड़ा कृपा करने वाला है। यह ईमान उसे बहुत बड़ी संतुष्ठी प्राप्त करती है। यह ईमान उस के दिल को आशओं से भर देता है, यदापि वह संसार के सारे दरवाज़े से ठुकरा दिया गया हो। तमाम कारण खत्म होचुके हों। किसी का कोई सहायता प्राप्त होने की उमीद न हो। प्रन्तु उसके दिल में एक सहारा बाक़ी रहता है और यह एक इश्वर का सहारा रहता है। इश्वर से प्राथना करते हुऐ इन संकटो से बाहर निकलने की अच्छी तदबीर करता है। फिर उस पर से सारी संकट तथा परिशानी खत्म होजाती है।
(4) बहादुर और निडर होना
एक इश्वर पर ईमान लाने वाला व्यक्ति बहादुर होता है। वह किसी चीज़ से नही डरता, वह जानता है कि मृत्यु देने वाला और जिन्दह रखने वाला अल्लाह ही है। लाभ या हानी पहुँचान केवल अल्लाह के हाथ में है। बाल-बच्चे , प्राण और धन –दौलत का प्रेम उसे इश्वर का काम करने में रुकावट नही डालता बल्कि वह बेखैफ होकर अल्लाह के आज्ञा का पालन करता है।

अधिक वेतन खुशी की सोगात नहीं

कहते हैं कि पैसे से हर खुशी खरीदी जा सकती है। मगर ऐसा है नहीं, एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि वेतन बढ़ने के साथ जिंदगी में खुशी के बढ़ने की भी एक सीमा है।

अधिक वेतन पाने वाले लोगों की जिंदगी से खुशियां भी कम हो जाती हैं।
अध्ययन के दौरान इन लोगों के वेतन और इनकी जिंदगी की खुशियों के बारे में जाना गया। इसके बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि खुशियों का बहुत ज्यादा ताल्लुक वेतन से नहीं है।

इस अध्ययन में पाया गया कि 50,000 पाउंड प्रति वर्ष वेतन पाने वाले बेहद खुश और अपने जीवन से संतुष्ट दिखाई दिए।

उनमें तनाव भी नहीं दिखा। वहीं 75,000 पाउंड प्रति वर्ष का वेतन पाने वाले अपेक्षाकृत कम खुश नजर आए और उनकी जिंदगी में तनाव ज्यादा था।

अध्ययन में कहा गया कि जो लोग एक लाख अथवा ढेढ़ लाख पाउंड का वेतन पाते हैं उनमें इन सबसे ज्यादा तनाव होता है।

उन्हें अपनी जिंदगी में खुशियां तलाशने का वक्त नहीं मिलता। ये लोग 50,000 पाउंड वेतन पाने वाले से ज्यादा खुश नहीं पाए गए।

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर क्रिस ब्यॉस ने कहा कि ज्यादा वेतन पाने वालों में खुशी के अभाव की वजह से उनमें आत्मसंतुष्टि की कमी भी है।

अगर कोई व्यक्ति 10 पाउंड डॉलर सालाना की कमाई करता है और उसके दोस्त का वेतन 20 लाख पाउंड सालाना है तो वह खुश नहीं रह सकता।

Monday, September 6, 2010

THINGS WE CAN LEARN FROM A DOG

Run, romp and play daily

Never pretend to be something you're not
Allow the experience of fresh air and the wind in your face to be pure ecstasy
Eat with gusto and enthusiasm
Take naps and stretch before rising
When loved ones come home, always run to greet them
Let others know when they've invaded your territory
Be loyal
When it's in your best interest, practice obedience
If what you want lies buried, dig until you find it
When someone is having a bad day, be silent, sit close by and nuzzle gently
Avoid biting when a simple growl will do.
On hot days, drink lots of water and lie under a shady tree
Never pass up the opportunity to go for a joyride
When you're happy, dance around and wag your entire body
No matter how often you're scolded, don't buy into the guilt thing and pout....run right back and make friends
Delight in the simple joy of a long walk.
Thrive on attention and let people touch you.

-- Author Unknown

क्षमा याचना :

क्षमा याचना :
मै विवेक अंजन कोई कवि नहीं हू ना ही कोई रचनाकार हू पर अनजाने से कुछ कवियों की कविताये इतनी बढ़िया लगी की मैंने उन्हें अपने ब्लॉग  पर लिख लिया है!
मै सिर्फ एक पाठक  मात्र हू,कभी कुछ लिखता भी हू !
अगर मेरे  से अनजाने में किसी कवी या  रचनाकार का दिल दुख हो तो मै इसके लिए  क्षमा प्राथी हू !
अक्सर ही अन्य रचनाकारों की रचना इतनी अधिक पसंद आ जाती है कि मन करता है कि नोट कर लू  और अपने
मित्रों को भी पढ़वायें . इस तरह से यह कोई गलत कार्य नहीं है !
भविष्य में मै इन बातो का ध्यान  रखुगा कि ये काम न हो और मेरी लिखी नहीं है एवं इसे मैने अमुक लिंक पर पढ़ा है और इसके रचनाकार अमुक हैं लिखना न भूलू
 

एक अच्छी और स्वस्थ परंपरा का निर्वहन करुगा !  .

आपका : विवेक अंजन