खुली किताब के शामो -सहर भी आयेंगे
भरी दुपहर में तारे नज़र भी आयेंगे ।
जला के कोई ना रक्खे चिराग गलियों में
लुटेरे लूटने शायद इधर भी आयेंगे ।
अभी हाथ ही काटे गये है सपनो के
जमीन पे टूटकर ख्वाबों के सर भी आएँगे ।
जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे ।
बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे ।
चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे ।
..........................................................
रचनाकार -------माधव कौशिक
भरी दुपहर में तारे नज़र भी आयेंगे ।
जला के कोई ना रक्खे चिराग गलियों में
लुटेरे लूटने शायद इधर भी आयेंगे ।
अभी हाथ ही काटे गये है सपनो के
जमीन पे टूटकर ख्वाबों के सर भी आएँगे ।
जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे ।
बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे ।
चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे ।
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रचनाकार -------माधव कौशिक
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