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Saturday, November 22, 2014

angaro par nange pav rachi rachana

खुली किताब के शामो -सहर भी आयेंगे
भरी दुपहर में तारे नज़र भी आयेंगे
जला के कोई ना रक्खे चिराग गलियों में
लुटेरे लूटने शायद इधर भी आयेंगे

अभी हाथ ही काटे गये है सपनो के
जमीन पे टूटकर ख्वाबों के सर भी आएँगे

जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे

बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे

चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे

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रचनाकार -------माधव कौशिक

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