Friday, December 19, 2014

कहने को बचा ही क्या है


विदा तुमसे अंतिम संवाद हेतु
उपयुक्त शब्द नहीं है
संवेदनाओं की स्याही भी लिख नहीं पा रही है 
अव्य्क्तेय इस वेदना को

कोई ताबूत में घर लौटने के लिए
नहीं जाता स्कूल सज धजकर यूनिफ़ॉर्म में
और स्कूल में भी गोलियां नहीं 
ज्ञान के बादल बरसते आये हैं

कक्षाओं में हत्यारे नहीं 
सपनों के मन मयूर नाचा करते हैं

बच्चों और शिक्षकों को नहीं
यहाँ अज्ञान को जलाया जाता रहा है

पर सब कुछ उल्टा हो गया
कल्पनातीत अमानवीय क्रूर और राक्षसी कृत्य 
भर कहना काफी नहीं 
कहने को बचा ही क्या है
-
सुरेन्द्र रघुवंशी
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सुरेन्द्र रघुवंशी

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