विदा तुमसे अंतिम संवाद हेतु
  उपयुक्त  शब्द नहीं है
  संवेदनाओं  की स्याही भी लिख नहीं पा रही है 
  अव्य्क्तेय इस वेदना को
कोई ताबूत में घर लौटने के लिए
  नहीं  जाता स्कूल सज धजकर यूनिफ़ॉर्म में
  और  स्कूल में भी गोलियां नहीं 
  ज्ञान  के बादल बरसते आये हैं
कक्षाओं में हत्यारे नहीं 
  सपनों  के मन मयूर नाचा करते हैं
बच्चों और शिक्षकों को नहीं
  यहाँ  अज्ञान को जलाया जाता रहा है
पर सब कुछ उल्टा हो गया
  कल्पनातीत  अमानवीय क्रूर और राक्षसी कृत्य 
  भर  कहना काफी नहीं 
  कहने  को बचा ही क्या है
  - सुरेन्द्र  रघुवंशी
  Copyright@सुरेन्द्र  रघुवंशी
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