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Tuesday, April 9, 2013

साहित्यिक पत्रिका : शब्द शिल्पी में प्रकाशित मेरा एक व्यंग लेख

अतिक्रमण का  अधिकार

व्यंग लेख

हमारे संविधान के तीसरे भाग के अनुच्छेद 12 से 35 तक में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है,  जैसे  समानता का अधिकार ,शोषण से रक्षा का अधिकार और विचारो की अभिव्यक्ति का अधिकार  आदि| कुछ और भी मन चाहे अधिकार है ,जिन्हें संविधान में जगह नही मिल पाई है जबकि हम उनका भरपूर उपयोग कर रहे है जैसे पान थूकने का अधिकार,गाली देकर बात करने का अधिकार ,सरकार को  गाहे  बगाहे कोसने का अधिकार आदि लेकिन इन सब अधिकारों के बीच एक और अधिकार है " अतिक्रमण का  अधिकार " | हमारे यहाँ के कल्लू हलवाई,गोलू चाय वाले से लेकर बड़े बड़े मंत्री,व्यापारी, संस्थानों को ये अधिकार प्राप्त है  और इसका उपयोग हमारे बजरंगी पान वाले से लेकर  पटना में गाँधी मार्ग के बब्बन सेठ तक को ये अधिकार प्राप्त है | कई बड़े जिले में तो इसका इतना उपयोग हो गया है कि विकास कार्य ही ठप हो गया है.जाम की समस्या से निजात पाने के लिए बनाये जाने वाले उड़न-पुल , ऊपरी पुल या उनके लिए बनाये जाने वाले बगली-रस्ते के लिए जगह ही नहीं मिल रही है|जगह-जगह ,अतिक्रमण की नीयत से मंदिर या मस्जिद और मजार बना दिए गए हैं|

तो फिर  इस अधिकार की ज्यादा जानकारी के लिए चलते है अपने  "कहीं भी पान थूको शहर" में| यहाँ हर वर्ग को यह अधिकार प्राप्त है  जिस भी व्यक्ति के पास अपना मकान या दुकान है वो उसके आगे खाली पड़ी जमीन जो की सरकारी है,  को अपनी अब्बा की जमीन  समझकर  कर उपयोग में लेने लगता है | किसी स्थान या अन्य रोजगार के आभाव में ठेले या खोमचे लगाये सुबह से ही  बाजारों और चौराहों में अतिक्रमण के अधिकार के प्रयोग करने लोग जुटने लगते है, जैसे मुन्ना मोची,पप्पू पानवाला,मिश्रा जी ढूध वाले आदि | कोई कही भी कैसे भी दुकान लगा ले, सब राम राज्य ही है ! आम-जन भी कम नही है अपने इस अधिकार का उपयोग करते हुये कही भी अपने दो पहिया ,चार पहिया खड़े कर गर्व महसूस करते है और व्यवस्था को गाली देते है | ये अधिकार कुछ लोग कम समय के लिए करते है और कुछ खानदानी है, अब रामू समोसे वाले की ही बात कर लो इनको बब्बा के ज़माने से ये अधिकार प्राप्त है | इसी दुकान से लडके की छठी तक पढाई,शादी और अब मकान निर्माण भी हो चुका है, पहले रामू समोसा वाला था अब रामू सेठ हो चूका है | लेकिन हमारे  कल्लू भाई ठहरे साधारण आदमी क्या करे ? तो इस अधिकार के प्रयोग के लिए अपनी और मोहल्ले की गायभैंसे सुबह  मुख्य मार्ग तक छोड़ आते है और शाम होते ही ले आते है ,इस तरह मन का संतोष हो जाता है कि  हम भी किसी से कम नही | हर तरफ जहां देखो, जिसे देखो वो  अतिक्रमण के  अधिकार  का  

 

 

फायदा ले रहा है परन्तु ये एक अनैतिक अधिकार है, जो की सबको मालूम है | इसका प्रयोग अब बीमारी की तरह हो चला है जिसका इलाज कभी कभी नगर-निगम या नगर-पालिका,पुलिस,जन-बल के साथ अभियान चला कर करती है ,पर ये उपचार कभी कभी होता है क्यों की इस बीमारी में सबका हाथ होता है नीचे से लेकर ऊपर वाले तक का | अब मान लो कभी कुछ काम ना मिला तो कभी कभी सरकारी अमला  ये भी कर लेते है 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' वो भी  एक दिन में  पूरे शहर में तबाही मचा कर, पूरी बीमारी ठीक  | चारो तरफ शोर,कोहराम मच जाता है | जो नेता, मंत्री एवं समाजसेवी, कभी मंदिर-मस्जिद झांकने नही जाते  वो सभी एक साथ पुर जोर विरोध में लग जाते है , कि मंदिर नही हटेगा जबकि उस मंदिर के पीछे ही अनैतिक दुकाने चल रही होती है  | और….. फिर कुछ दिन बाद वही जहा का तहां

अतिक्रमण रूपी अधिकार एक महामारी की शक्ल ले चुका है इससे पहले की ये लाइलाज बीमारी बन जाए इसके लिए सरकार व आम नागरिक को अपना कर्त्तव्य समझकर इस आदत का परित्याग कर देना चाहिएअन्यथा जब सरकारी अमला डंडे की भाषा में समझाएगा तो विरोध भी काम नहीं आएगा.और सरकारनगर पालिका तथा नगर निगम को भी इस तरह की गतिविधियों पर समय रहते अंकुश लगाना चाहिए.. इसके साथ ही सरकार को सोये नहीं रहना चाहिए बल्कि जहाँ भी अतिक्रमण हो रहा हो उसे समय रहते रोके और समय समय पर सरकारी जमीन का निरिक्षण व आकलन करते रहे  ,  अभी मै निकलता  हूं , शायद मेरी कार भी बीच  रोड़ में खड़ी है 

 

विवेक अंजन श्रीवास्तव 

सरलानगर, मैहर 

9424351452