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Friday, November 29, 2013

-: मुझे उस ज़माने में ले चलो :-


जब ,
दहेज न मिलने पर भी लोग ...
बहुओं को जलाते नहीं थे 
बच्चे  स्कूलों के नतीजे आने पर 
आत्महत्या नहीं करते थे 
बच्चे चौदह-पन्द्रह साल तक
बच्चे ही रहा करते थे 

जब
गांव में खुशहाल खलिहान, हुआ करते थे 
मशीनें कम,  इंसान ज्यादा हुआ करते थे 
खुले बदन को टैटू, से छुपा रहे है लोग
बंगलो से ज्यादा संस्कार हुआ करते थे

जब 
सयुंक्त परिवार में सब एक साथ रहा करते थे 
आर्थिक उदारीकरण, को कम लोग पहचानते थे
तब मानवाधिकार, को कम लोग ही जानते थे

अब
मुझे उस ज़माने में ले चलो, जहा
समय के साथ जमाना बदला न हो

सधन्यवाद ! 
विवेक अंजन श्रीवास्तव

बरसात :एक लघुकथा

श्यामलाल को पत्थरों से नहर की दिशा बदलते देख एक राहगीर ने आश्चर्य से पूंछा, "अरे भईया ये नहर तो सीधी है, फिर आप इसकी दिशा क्यों बदल रहे हो"
राहगीर की तरफ देखकर,थोडा नाराजगी भरे स्वर में श्याम लाल ने उत्तर दिया,…
       "भैया आंगे बढ़ो, तुम न समझोगे।ये कच्ची नहर है ,बांध का पानी भी खतरे के निशान से ऊपर है, अगर कही लगातार बारिस होने से बांध का पानी छोड़ा गया तो सबसे पहले ये नहर टूटेगी और मेरा मकान बहेगा "
राहगीर, "पर भैया आपका मकान तो ऊपर है, इस तरह से आपके पडोसी का मकान बह गया तो"
        "बहने दो अपने को क्या ?.. अपना तो बचा रहेगा ! "
ये बात सुनकर चिंतित राहगीर ने बस इतना कहा, "पडोसी के दर्द को अपना दर्द समझो, मुसीबत आप पर भी पड़ सकती है" और आंगे बढ़ गया
अगले दो तीन दिनों तक बारिश होती रही...    फिर एक दिन श्याम लाल का लड़का, माँ से पडोसी के बच्चे के साथ रात में पढ़ने को जिद करने लगा और मां भी बच्चे की जिद को मान गई,  बोली अपने पापा को बोलो छोड़ आये | 
ये बात सुनकर पहले तो श्याम लाल कुछ  घबराया फिर अपने लडके को छाता लेकर पडोसी के घर छोड़ आया |
       संयोगवस रात भर बारिस होती रही और सुबह बांध का पानी छोडा गया
चारो तरफ चीख पुकार और भगदड़ मच गई बाहर निकल कर श्यामलाल ने देखा तो उसके पडोसी का मकान पानी में बह रहा था,  लडके के बारे में सोच कर उसके पैरो से जैसे जमीन  खिसक गई वो इधर उधर भागा पर अपने लडके को नहीं पाकर रोने चिल्लाने लगा...
कुछ देर बाद प्रसाशन के कुछ लोग आये और बताया की थोड़ी दूरी पर ही कुछ लोग पेढ़ में फस गए थे, बचा लिए गए है ।
दौड़ता हुआ श्यामलाल उस जगह गया और अपने लडके को देख अति प्रसन्न हुआ ।
अपने लडके को गले लगाते ही उसे राहगीर की बात याद आ गई और सोचने लगा, 'अपनी सुविधा हेतु कोई काम करने से पहले अपने पडोसी को होने वाली परेशानी का ध्यान रखना चाहिये'
एक ओर बादल बरस रहे थे, वही दूसरी तरफ श्यामलाल के आंखो से पश्चाताप की बरसात हो रही थी ।    
           
सधन्यवाद :
विवेक अंजन श्रीवास्तव
सरलानगर,मैहर सतना (म.प्र.)