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Tuesday, February 28, 2012

तेरे इश्क के काबिल नहीं



भवरों-सा फूल-फूल पे न गुनगुनाइए 
ठुकरा के मुझे इस त‍रह न मुस्कुराइए 

माना कि तेरे इश्क के काबिल नहीं हूं मैं 
ऐसे तो न वफा की कसमें झूठ खाइए 

मर-मर के जी रहे हैं तेरी दीद के लिए 
नजरें मिलाऊं तो नहीं नजरे चुराइए 

मौसम बहार का मुझे लगता उदास है 
ऐसे न फिजा-ओ-गुलशन को रुलाइए

न दिन को चैन है नहीं आराम रात को 
मेरे हसीं ख्वाब न ऐसे जलाइए 

है कह रहा जमाना मुझे भूल गए हो 
याद आ के बार-बार न मुझको रुलाइए।

साभार : 
- कुसुम सिन्हा