Pages

Friday, September 3, 2010

किसके मन में कैसी है भावना समझते हैं

किसके मन में कैसी है भावना समझते हैं
ज़िन्दगी का हम यारों फलसफ़ा समझते हैं
दौर अब दिखावे का आ गया है कुछ ऐसा
लोग आज पत्थर को आइना समझते हैं
उनके पैर बढ़कर ख़ुद चूमने गई मंज़िल
अपनी ठोकरों से जो रास्ता समझते हैं
जानते हैं रिश्ते हम क़ातिलों से मुंसिफ़ के
किसके हक़ में होना है फ़ैसला समझते हैं
जिनके इक इशारे पर हमनें जां लुटा दी है
वो भी जाने क्यों हमको बेवफ़ा समझते हैं
दौर में फ़रेबों के सच को सच कहा जिसने
लोग ऐसे इंसाँ को सिरफिरा समझते हैं

       रचनाकार प्रवीण शुक्ल जी: उनको मेरा सादर प्रणाम

1 comment:

Udan Tashtari said...
This comment has been removed by a blog administrator.

Post a Comment