आए जो कहर तूफां के कभी
पर्वत डिगा नहीं करता है
संघर्ष की अग्नि परीक्षा से
कर्मठी हटा नहीं करता है
टूटी एक कलम तो क्या ग़म
सूखी गर जो उसकी स्याही
कुछ पन्नों के भर जाने से
सृजन रुका नहीं करता है
जब तक दर्द न हो जीवन में
सुख का है आनंद अधूरा
बिन काँटों की संगत जोड़े
गुलाब खिला नहीं करता है
दुर्जन की संगत पाकर भी
सज्जन बुरा नहीं करता है
कितने ही विषधर लिपटे हों
चन्दन मरा नहीं करता है
पर्वत डिगा नहीं करता है
संघर्ष की अग्नि परीक्षा से
कर्मठी हटा नहीं करता है
टूटी एक कलम तो क्या ग़म
सूखी गर जो उसकी स्याही
कुछ पन्नों के भर जाने से
सृजन रुका नहीं करता है
जब तक दर्द न हो जीवन में
सुख का है आनंद अधूरा
बिन काँटों की संगत जोड़े
गुलाब खिला नहीं करता है
दुर्जन की संगत पाकर भी
सज्जन बुरा नहीं करता है
कितने ही विषधर लिपटे हों
चन्दन मरा नहीं करता है
साभार : अर्चना तिवारी
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