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Monday, May 17, 2010

रोटी के लिए घूमता रहता हूँ ,



रोटी के लिए घूमता रहता हूँ ,

इधर उधर ,

पाँव छिल जाते है ,

रुकता नही हूँ मगर ,

दिल से देगा मुझे कोई उसे भगवान् उसे बहुत देगा

मेरी दुआ है सभी के लिए ,

चाहे कोई बड़ा हो या छोटा ,

मिटटी के खिलौनों से खेलते है बच्चे मेरे ,

गर्मी सर्दी बारिश को हंस कर झेलते है

सर पर छत भी न दे सका अपने बच्चो को

बाप में अजीब हूँ

गरीब हूँ में मजबूर हूँ मैं ,

पूरी नही कर पाता बच्चो की इच्छाओ को ,

बहुत ही बदनसीब हूँ मैं ,

गरीब हूँ मैं गरीब हूँ मैं......

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