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Saturday, May 8, 2010

कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में

कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी [1]बचाने में
ज़मीनें बिक गईं सारी ज़मींदारी बचाने में

कहाँ आसान है पहली महब्बत को भुला देना
बहुत मैं लहू थूका है घरदारी बचाने में

कली का ख़ून कर देते हैं क़ब्रों को बचाने में
मकानों को गिरा देते हैं फुलवारी बचाने में

कोई मुश्किल नहीं है ताज उठाना पहन लेना
मगर जानें चली जाती हैं सरदारी बचाने में

बुलावा जब बड़े दरबार से आता है ऐ राना
तो फिर नाकाम[2]हो जाते हैं दरबारी बचाने में

शब्दार्थ:

  1. आत्म-सम्मान
  2. असफल

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