तमाम उम्र, अज़ाबों का सिलसिला तो रहा
ये कम नहीं, हमें जीने का हौसला तो रहा
गुज़र ही आये किसी तरह तेरे दीवाने
क़दम-क़दम पे कोई सख़्त मरहला तो रहा
चलो न इश्क़ ही जीता, न अक़्ल हार सकी
तमाम वक़्त मज़े का मुक़ाबला तो रहा
मैं तेरी ज़ात में गुम हो सका न तू मुझमें
बहुत क़रीब थे हम, फिर भी फ़ासला तो रहा
रविश-रविश पे जो काँटे महक उठे भी तो क्या
चमन से दूर गुलाबों का क़ाफ़िला तो रहा
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