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Monday, August 13, 2012

बहुत मग़रूर हैं


चाहते जीना नहीं पर जीने को मजबूर हैं 
ज़िन्दगी से दूर हैं और मौत से भी दूर हैं 

दूर से उनके दो नैना जाम अमृत के लगे
पास जा देखा तो पाया ज़हर से भरपूर हैं 

जन्म पर दावत सही, है मौत पर दावत मगर
कैसे-कैसे वाह री दुनिया तेरे दस्तूर हैं 

ठीक हो जाते कभी के हमने चाहा ही नहीं 
जान से प्यारे हमें उनके दिए नासूर हैं 

भूखे बच्चों की तड़प, चिथड़ों में बीवी का बदन
ज़िन्दगी हमको तेरे सारे सितम मंज़ूर हैं 

लड़खड़ाने पर हमारे तंज़ मत करिए जनाब
हौसला हारे नहीं हैं हम थकन से चूर हैं 

व्यस्तताओं की वजह से हम न जा पाते कहीं
लोग कहते हैं 'अकेला' जी बहुत मग़रूर हैं 


साभार : वीरेंदर खरे "अकेला" 

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