Pages

Monday, September 7, 2009

जंग में हूँ बहार मुश्किल है

 

 

जंग में हूँ बहार मुश्किल है
दस्ते-क़ातिल का प्यार मुश्किल है

फिर तसल्ली सवाल बन जाए
फिर तेरा इंतज़ार मुश्किल है

ख़त गया जवाब आने तक
बीच का अख़्तियार मुश्किल है

उंगलियों का सलाम हाज़िर है
सादगी का सिंगार मुश्किल है

है ये मुमकिन तनाव देखें वो
देख लेंगे दरार मुश्किल है

 

रचनाकार: अनिरुद्ध सिन्हा     

 

 

 

No comments:

Post a Comment