Pages

Monday, July 6, 2009

प्रेम में जाति कोई बंधन नहीं



हम चेन्नई में रहते थे। 1989 में मेरा 28 वां जन्म दिन था। मेरे पिता हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे। मेरी बड़ी बहन की शादी काफी पहले हो गई थी इसलिए अब वे मेरी शादी के लिए चिंतित रहने लगे। पर मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। एक दिन पापा ने मुझसे पूछा, "क्या तुम्हारी नजर में कोई लड़का है? और अगर नहीं है तो हम ढूंढते हैं।"

चूंकि तब तक मेरी नजर में कोई था नहीं, मैं लड़का ढूंढे जाने के लिए सहमत हो गई।

तभी एक दिन मेरी बहन ने अखबार के वैवाहिक-विज्ञापन में एक ऐसे लड़के को देखा जिसे मेरी तरह ही जात-पांत से कुछ लेना-देना नहीं था। पापा ने उनसे संपर्क किया।

मामूली पत्र-व्यवहार के बाद एक दिन राज हमारे यहां आया। वह हैदराबाद में नौकरी करता था। पहली बातचीत से ही वह खुले विचारों वाला लगा। उसने बताया कि काम से कुछ महीनों की छुट्टी लेकर वह पीएचडी करना चाहता है। उसकी मातृभाषा तेलुगू और हमारी कन्नड़ थी।

हम एक दूसरे की बात जरा भी समझ नहीं पाते। पर हमारे लिए अच्छी बात यह थी कि हम आपस में अंग्रेजी में बातें कर रहे थे। हम दोनों में कई दूसरे अंतर भी थे। राज किसान परिवार से आता था जबकि मेरे पापा परमाणु-ऊर्जा के इंजीनियर थे।


हम भारत के कई शहरों में रह चुके थे। हम ब्राह्मण थे पर राज नहीं था। वह धार्मिक भी नहीं था। हां पर हम दोनों में एक समानता यह थी कि दोनों ही जात-पांत में विश्वास नहीं रखते थे।

अगले दिन हमारा एक रेस्त्रां में मिलना तय हुआ। मेरे साथ दीदी और जीजा भी थे। मुझे राज बहुत अच्छा लगा। बाद में जब उसने मुझे बताया तो मुझे हैरानी हुई कि मैं भी उसे पसंद आई थी।

वर्ष 1990 में एक सादे समारोह में हम दोनों की शादी हो गई। शादी के बाद हमने सात साल अमेरिका में बिताया। राज ने उसी दौरान सूचना-तकनीकी में पीएचडी की अपनी डिग्री पूरी की।

वर्तमान में हम बेंगलूरु में रहते हैं जहां राज प्रोफेसर है। मैं खाली समय में एक गैर-सरकारी संगठन(एनजीओ) में काम करती हूं। हमारी नौ साल की एक बेटी है। इस 16 सालों के दौरान हमारे बीच प्यार और सम्मान की भावना दिनों-दिन मजबूत ही होती गई। मैं यह सोचकर हैरान होती हूं कि भारतीय लोग शादी के मामले में क्यों खुद को जाति के बंधन में बांध लेते हैं!

No comments:

Post a Comment