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Monday, July 27, 2009

'विवेक मनुष्य का सबसे बड़ा गुरु है'

प्रतापी राजा दक्ष प्रजापति के घर उनकी तपस्या के फलस्वरूप भगवती शिवा पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। यह शिवा ही सती के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

सती भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या करने लगीं। तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने भी कैलाश पर्वत में विराजमान शिव से सती के साथ विवाह करने का अनुरोध किया और कहा कि शिव और शिवा एक-दूसरे के पूरक हैं। सृष्टि को अशुभ घटनाओं से बचाने के लिए शिव के साथ शक्ति का होना भी आवश्यक है। देवताओं की बात मानकर लोक कल्याण हेतु शिव ने सती को पत्नी रूप में धारण किया।

प्राचीन संन्यास आश्रम शिव हनुमान मंदिर, पंचकुइयां रोड में सत्संग के दौरान अपने प्रवचन में महंत भोलागिरि महाराज ने कहा कि विवेक मनुष्य का सबसे बड़ा गुरु है, जिसे भगवान ने दिया है। भगवान ने मनुष्य को अपने कल्याण के लिए शरीर दिया है, अन्य साधन-सामग्री दी और अपनी-अपनी पसंद का गुरु भी दे दिया है। अब यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह इन सब साधनों का प्रयोग कैसे करता है।

 

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