Pages

Friday, July 31, 2009

इंडिया के मुफ्तिया सलाहकार

देश में किसिम किसिम के लोग हैं। कुछ पढे-लिखे विद्वान हैं। अपने ऐसे अनपढ की उनमें कतई रुचि नहीं है। पढाकू और ज्ञानी हैं तो रहें। हमसे क्या! वह जाने किन-किन देशी-विदेशी लिक्खाडों के नाम ले-लेकर अपने में हीन-भावना का संचार करते हैं। ऐसे अकड-फूं लोग और सरस्वती पुत्र? हमें ताज्जुब होता है। कुछ और हैं जो खानदानी रईस हैं। वह अपनी महानता में ऐसे आकंठ तर-बतर हैं कि कोई क्या कहे। कभी वह अपने दादा की बात करते हैं, कभी दादी की। उनके घर में विक्टोरिया युग का फर्नीचर है, पर्शिया का कालीन है, अंग्रेजों का खास डिनर सेट है। अपना मन होता है कि कहें भैया है तो बहुत अच्छा है। क्या आप उसे हमें भेंट देने का मन बना रहे हैं? यदि ऐसा नहीं है तो क्यों व्यर्थ कान खाने में लगे हैं। अपने पल्ले ही नहीं पडता कि क्यों लोग पूर्वजों के सूरज में चमकने का बहाना ढूंढ लेते हैं?

अपने यहां, खान-पान, परिधान, शक्ल-सूरत, प्राकृतिक रंग-रोगन जैसी विविधता के इतने विंध्याचल हैं कि कोई किस-किस को गिने? उसके सामने यह चारित्रिक टाइप ऐसे हैं जैसे मोर के आगे मेढक। कहां हरसिंगार झरने की आहट तो कहां दादुर की टर्राहट। फिर भी, इस सबके बावजूद हमें दो किस्म के लोग लुभाते हैं। एक का खयाल है कि वह जन्मजात कलाकार हैं। कहीं भी मिलें तो वह अपनी अलजलूल हरकतें, किसी के बोलने की, किसी की चाल की नकल, कभी शेर का आवाज, कभी गधे की रेंक या पिल्ले की रुलाई जैसे स्वर निकालकर स्वयं आकर्षण का केंद्र बनने की कोशिश करते हैं। एक दो सामाजिक संपर्को के बाद दूसरे बोर होते रहते हैं और वह चालू।

अपन को ऐसे लोगों से रश्क है। आजकल के संत्रासी जमाने में किसी को उदासी से बाहर हंसाना अपने आपमें एक उपलब्धि है। हमें लगता है कि इन कलाकारों और मंच के हास्य कवियों में गजब का साम्य है। दोनों का लक्ष्य जनकल्याण है। दोनों सामान्य मानवीय व्यवहार से हटकर मनोरंजन मिशन में लगे हैं। आदमी होंची-होंची करे तो कैसा लगेगा? या कवि लतीफे सुनाए। ये अस्वाभाविक हरकतें हंसाती हैं। एक का कला से वास्ता नहीं है, दूसरे का काव्य से। फिर भी मर्सिया मुद्रा बनाए मरघटी विद्वानों से ये कहीं बेहतर हैं। सतत सांसत के समय में अस्थाई राहत तो दे ही जाते हैं।

ऐसे कारगर कलाकारों के अलावा भारत की हरित उर्वरा भूमि में कुछ सिद्ध सलाहकार भी पाए जाते हैं। ये कलाकारों से एक मायने में श्रेष्ठ हैं। हमने देखा है कि नकल के नायक अकसर सामाजिक अवसरों पर परिवार सहित पधारते हैं। किसी ने खाने पर बुलाया है तो घर का चूल्हा क्यों जले? ऐसे भी वह बिना फीस सबको हंसाते भी तो हैं। हमें ऐसों के परिवार से हार्दिक हमदर्दी है। जब वह पूर्व परिचित कारनामा दोहराते हैं तो बाकी तो ठहाके लगाते हैं पर उनकी पत्नी और पुत्र पप्पू के चेहरों पर बोरियत की गहरी रेखाएं घिर आती हैं। पप्पू सोचते हैं कि पापा को कार्टून बनने में क्या मजा आता है? पत्नी तंग है। वह हजार बार यह तमाशा देख चुकी है। अब तो इनके साथ जाने में उन्हें शर्मिदगी लगती है।

सलाहकार दो प्रकार के होते हैं, सरकारी और गैर-सरकारी। जानकार बताते हैं, सरकारी खाने के नहीं, बस दिखाने के दांत हैं। कहने को ये मंत्रालय के सलाहकार हैं। दूसरों को मुगालता है कि महत्वपूर्ण होंगे। सच्चाई सलाहकार जानते हैं। उनके पास एक फाइल तक नहीं आती है। बस कभी-कभार मंत्री जी बुलाकर गप-शप कर लेते हैं। पुरानी दोस्ती जो ठहरी। जो है, वह फोन है, गाडी है और है देश में इधर-उधर घूमने की सुविधा। मंत्रालय के अफसर तो सरकारी घोडे हैं। सब उन्हें घास डालते हैं। इनका दर्जा तो खच्चर से भी गया-बीता है। मंत्रालय की घुडसाल में इनकी कोई वकत तक नहीं है। चारा-घास तो बहुत दूर की बात है। सलाहकार को कोई गार्ड भी सलाम तक नहीं ठोंकता है। कोई टपका तो यह उसे प्रभावित करने के लिए फोन जरूर घुमाते हैं। उन्हें पता है। होना-जाना कुछ नहीं है। फिर भी अपनी छवि और अहम का सवाल है।

ऐसे दगे हुए कारतूस दया के पात्र हैं। वहीं गैर-सरकारी क्षेत्र के सलाहकार काफी खतरनाक हैं। हमें आज भी याद है। हमारे एक मित्र को सलाह देने की बीमारी है। जब हमारा घर बन रहा था, वह निरुद्देश्य पधारे। इधर-उधर की बातों के बाद बोले-सुना, तुम्हारा मकान बन रहा है। हमने अपनी इकलौती उपलब्धि को सिर हिलाकर गर्व से स्वीकार किया। उन्होंने तत्काल पत्नी की ओर देखा और बोले-भाभी जी, हमारा दोस्त बेहद नेक इंसान है, पर जरा आलसी है और वास्तु वगैरह को अंधविश्वास समझता है। आपसे क्या छिपाना। हमारे एक मित्र मुरारी भी हैं। बेचारे बीमार रहते थे काफी दिनों से। उन्होंने अपने घर का नक्शा वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप तैयार करवाया। घर में एक साल पहले शिफ्ट हुए हैं। आज बिलकुल सेहतमंद हैं। वह तो कहते हैं कि वास्तु में जादू है। कोई माने या माने।

इतनी ही सलाह, घरेलू महाभारत के लिए काफी थी। इतना कह कर वह उठने लगे तो पत्नी ने उन्हें रोका-बैठिए, भाई साहब! चाय पीकर जाए। पत्नी चाय-भजिये के लिए किचन की ओर चली तो मुफ्ितया मुल्किया सलाहकार फिर चहका, ठेकेदार पर भरोसा मत करिएगा, चाहे कैसा भी दोस्त या अंतरंग क्यों हो। सीमेंट में बालू मिलाना इनका धर्म है। आपके निजी ताल्लुकात के लिए वह अपने धर्म को तो धोखा नहीं देंगे। मेरी तो गुजारिश है कि मेरे प्यारे दोस्त से कहिए कि दफ्तर की तडी दे और गृह-निर्माण की निगरानी करे। नहीं तो कल आंधी भी आई तो घर ताश के महल सा भदभदा कर गिरेगा। इस नसीहत के बाद उनकी ऐसी खातिर-तवज्जो हुई कि जैसे मायके से आए मेहमान हों। हमें एक पल को एहसास हुआ कि घर का भेदी लंका ढाए जैसी उक्ति में कितनी सच्चाई है। किसी शायर ने शायद ऐसे ही किसी संदर्भ में लिखा होगा कि दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं, दोस्तों की मेहरबानी चाहिए। उन्होंने भजिये जपे। मिठाई उडाई। हम मन ही मन मनाते रहे कि यदि नहीं है तो इन्हें आज के मिष्ठान से डाइबिटीज हो जाए। तले भजियों से इनका कोलेस्ट्रॉल बढे। जब पत्नी ने टमाटर के पकौडे छाने तो हमने प्रार्थना की कि इनकी बडबोली जुबान पर गरम टमाटर ऐसे चिपकेंकि उसे जलाकर छोडें। हमें दुख है। ऐसा कुछ नहीं हुआ। उलटे पत्नी ने साइट पर चलने का आदेश दिया।

अगले दिन हमने दफ्तर गोल किया। ऐसे यह कोई उल्लेखनीय वारदात नहीं है। सरकारी दफ्तर होते ही गोल करने के लिए हैं। साइट पर पहुंचे तो एक सज्जन हमारे निर्माणाधीन घर के निरीक्षण में जुटे थे। पत्नी ने परिचय करवाया। यह उनके दूर के मामा के सालारजंग हैं- इनका नाम ही अनुपम नहीं, वास्तुज्ञान भी अनुपम है। हम कुछ कहें इसके पहले ही जीवनसंगिनी के भाई साहब के बोल फूटे, जीजी, आपकी किचन और ड्राइंगरूम वास्तु के विपरीत है। उन्होंने नक्शा दिखाकर हमें समझाया कि किचन कहां शिफ्ट हो सकती है और बेडरूम कहां। बस एक टॉयलेट फिर से बनवाना पडेगा, उन्होंने हमें सांत्वना दी।

पत्नी ने जिद पकड ली। इस दूर के संबंधी की सलाह पर अमल होना ही है। वरना घर के अमन-चैन में मुसल्सल खलल पडना तय है। हमने अपने सीमित आर्थिक साधनों की दुहाई दी, उन्होंने अन्न-जल त्यागने की धमकी। उन्होंने यहां तक कह डाला कि हम ऐसी दरिद्रता के शिकार हैं तो वह जेवर बेचने को तैयार हैं। हमने परिचित ठेकेदार की शरण ली। उसे समस्या बताई। उसने एक लाख का खर्चा। हमने विनती-चिरौरी की। वह बोला कि एक ही रास्ता है-ड्राइंग रूम अब नया बेडरूम होगा और आपको एक ही टॉयलेट से काम चलाना पडेगा। नई किचन थोडी छोटी हो जाएगी। आज जहां स्टोर है, वहीं आपकी किचन होगी। ड्राइंगरूम की जगह सामने का खुला छोटा सा बरामदा है।

घर देखने में भद्दा है, रहने में तंग। हम क्या करें? बस इतनी गुहार ही लगा सकते हैं, ऊपर वाले से। हमें फ्री फंडिया सलाहकारों से बचाओ और मुल्क को भी।

आदाब अर्ज है

 

 

 

 

 

 

No comments:

Post a Comment