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Monday, July 6, 2009

प्यार का बंधन

प्यार का बंधन

सन 1982 में सैनिकों पर शोध करने के दौरान मैं मुम्बई में थल सेना की यूनिट के बीच रह रही थी। मैं गोरखा सैनिकों की जिंदगी के बारे में लिख रही थी। उसी सिलसिले में मैं एक अधिकारी से मिलने गई, जिसके साथ शोकिन चौहान नामक उसका आकर्षक दोस्त भी था।

शोकिन ने मेरी रचना पढ़ी और टिप्पणी की कि उसे और अच्छी तरह से लिखी जानी चाहिए थी। और तो और सुझाव भी दे डाली कि उसे कैसे अच्छी तरह से लिखी जाए।

मैंने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, "तुम अपना काम करो, मैं अपना करती हूं।" बाद में उसने मुझे अपनी गाड़ी से छोड़ देने का प्रस्ताव दिया। पर मैंने ठुकरा दिया। जब मैं वापस लौट रही थी तो वह अपनी मोटरसाइकिल से मेरे पीछे आता हुआ चिल्ला रहा था। "तुमने मेरी मदद न लेकर अच्छा नहीं किया।"



अगली सुबह उसने मुझे फोन किया। वह अपनी बटालियन के इतिहास पर आलेख लिख रहा था। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसकी मदद कर सकती हूं? अगले दिन इसी बहाने वह मेरे दफ्तर में भी आ धमका। पहले तो मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन  जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन गए।

एकबार उसने मुझसे मजाक करते हुए कहा था, "अगर मैं तुमसे शादी के लिए कहता तो क्या होता?" "तुम एक दोस्त तो अच्छे बन सकते थे पर पति बुरा बनते," मैंने जवाब दिया।

हमारे बीच बढ़ रहे संबंध की तरफ से मैं उदासीन ही थी। वह हिंदू था और मैं ईसाई। पर शोकिन कहा करता था, "खुद के बारे में सोचो, खुद को किसी के प्रेम के लिए छोड़ देना बहुत बड़ी बात होती है।


जब उसकी यूनिट कश्मीर चली गई तो मुझे लगा कि अब हमारा संबंध खत्म हो जाएगा। पर एक दिन सन 1984 में वह सियाचीन से वापस आया और मुझसे शादी के बारे पूछा। तब मुझे एहसास हुआ कि वह मेरे बारे में कितना गंभीर था।

मेरे माता-पिता ने उससे मुझे थोड़ा वक्त देने को कहा। कुछ दिनों तक हम एक दूसरे को चिट्ठी भेजते रहे। आखिरकार वर्ष 1984 में हम दोनों शादी के बंधन में बंध गए। मैं शादी के बाद सीधा उरी (कश्मीर) चली गई। अपना घर देखकर मैंने सिर पटक लिया।

एक भंडार-घर को कमरे का शक्ल देकर रहने की जगह बना दी गई थी। दीवार की जगह कार्डबोर्ड खड़ा कर दिया गया था। नल में पानी भी नहीं आता था। यह सब देखकर मैं रोने लगी। पर शोकिन के समझाने और हौसला बढ़ाने पर धीरे-धीरे उस रहन-सहन का अभ्यस्त होने लगी।

आज हमारा 21 साल का बेटा है। कर्नल शोकिन अब नेपाल में भारतीय दूतावास में सुरक्षा अधिकारी हैं। मैं प्रायः पीछे मुड़कर देखती हूं तो पाती हूं कि मेरा काम हमारे लिए कितना सहायक साबित हुआ।

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