अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
सुना है वो मेरी तस्वीर बनाती है, बंद आखो में भी सपने सजाती है उसके जीने का अंदाज़ ही जुदा है, बिना होठ हिलाए ही सब कुछ कह जाती है
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