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Monday, June 8, 2009

एक मौसम यहाँ बारिश का भी होता है


मेरी औकात का ऐ दोस्त शगूफा न

बनाकृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बना
वर्दियों की तरह निकला है पहनकर इनको,

अपने जख्मों का तू इस कदर तमाशा न बना
कोई चिट्ठी, न परिंदा न दरों पर दस्तक,मेरे भगवान,

मुझे इतना अकेला न बनाये न हो कि तू किसी पत्थर में बदल

जाएइतना गहरा किसी दीवार से रिश्ता न

बनाएक मौसम यहाँ बारिश का भी होता है 'विवेक'

अपना गत्ते का मकाँ इतना भी अच्छा न बना।

1 comment:

Unknown said...

aap bohot achchi kavitaye likhate hai

sachin channe

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