मेरी औकात का ऐ दोस्त शगूफा न
बनाकृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बना
वर्दियों की तरह निकला है पहनकर इनको,
वर्दियों की तरह निकला है पहनकर इनको,
अपने जख्मों का तू इस कदर तमाशा न बना
कोई चिट्ठी, न परिंदा न दरों पर दस्तक,मेरे भगवान,
कोई चिट्ठी, न परिंदा न दरों पर दस्तक,मेरे भगवान,
मुझे इतना अकेला न बनाये न हो कि तू किसी पत्थर में बदल
जाएइतना गहरा किसी दीवार से रिश्ता न
बनाएक मौसम यहाँ बारिश का भी होता है 'विवेक'
अपना गत्ते का मकाँ इतना भी अच्छा न बना।
1 comment:
aap bohot achchi kavitaye likhate hai
sachin channe
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