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Monday, June 8, 2009

कॉर्परट वर्ल्ड का पहला नियम है, जॉब चेंज।



Corporate वर्ल्ड का पहला नियम है, जॉब चेंज। यहां जो जॉब जल्दी नहीं बदलता, उसे कंपनी का मैनिजमंट तक यूजले स मान लेता है। यह नियम बदल रहा है। अब ऐसे एंप्लॉइज भी दुलारे हो गए हैं, जो अपनी जॉब से संतुष्ट हैं। वे कहीं जाना नहीं चाहते, इसलिए दूसरी कंपनियां उन्हें अपने पास बुलाना चाहती हैं। क्या आप अपनी जॉब से संतुष्ट और खुश हैं? क्या आपको कंपनी के किसी नियम से कोई खीझ नहीं है? क्या आपने काफी समय से जॉब बदलने के बारे में नहीं सोचा है? अगर इनमें से ज्यादातर प्रश्नों का जवाब हां में है, तो आप निश्चित रूप से एक 'पैसिव कैंडिडेट' हैं। आजकल पैसिव कैंडिडेट्स ही रिक्रूटर्स और एचआर के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं, पर सच यह भी है कि पैसिव कैंडिडेट की पहचान करना काफी मुश्किल होता है।


पहचान पर्सनल डिसिजन इंटरनैशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के एमडी राज बोवन बताते हैं, 'तकनीकी भाषा में कहें, तो पैसिव कैंडिडेट वह है, जो अपनी मौजूदा जॉब में बहुत अच्छा कर रहा है और निकट भविष्य में जॉब बदलने की सोच भी नहीं रहा। इसके लिए उसे कहीं से कोई प्रेरणा नहीं मिल रही। पैसिव कैंडिडेट की पहचान का सबसे आसान तरीका रिफरल नेटवर्क होता है। इसके अंतर्गत, कंपनी के एंप्लॉइज दूसरी कंपनियों में अपने सर्कल को बतौर रिक्रूटिंग सोर्स एचआर के साथ शेयर करने के लिए तैयार होते हैं।' ' ई-रेव मैक्स' टेक्नॉलजी के सीईओ रियूएल घोष कहते हैं कि पैसिव कैंडिडेट की पहचान तभी हो सकती है, जब आपको पता हो कि पैसिव कैंडिडेट कौन होते हैं? सिर्फ टेक्नॉलजी के भरोसे यह काम नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें पर्सनल इन्वॉलवमेंट बहुत जरूरी होता है। यहां रिक्रूटर्स को सेल्स पर्सन की भूमिका निभानी पड़ती है। कह सकते हैं कि पैसिव कैंडिडेट की पहचान और उससे संपर्क करने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग की जरूरत होती है।
' पहुंच किसी पैसिव कैंडिडेट की पहचान करना अलग बात है और उसके निकट पहुंचना अलग। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पैसिव वर्कर्स को संस्थान में लाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? ऐसा कौन-सा ऑफर होगा, जिससे किसी पैसिव कैंडिडेट के माइंड को बदला जा सके। ऑल इंडिया मैनिजमंट असोसिएशन के प्रोग्राम डाइरेक्टर योगी श्रीराम इस बारे में कहते हैं, 'कैंडिडेट के बारे में पूरा होमवर्क करना होगा। कॉन्फिडंशियलिटी की कैंडिडेट की जरूरत पूरी करें और उसे इनक्वायरी के लिए भरपूर स्पेस और टाइम दें।' करियर एयर-कंडिशनिंग एंड रेफ्रिजरेशन लिमिटेड की एचआर डाइरेक्टर पूनम शर्मा कहती हैं, 'पैसिव वर्कर्स की पहचान और उसकी नियुक्ति के लिए जरूरी है कि इस काम को प्रफेशनल्स ही अंजाम दें। एक बेहतर रिक्रूटर ही पैसिव वर्कर के माइंड को चेंज कर सकता है। वह उसे नए किरदार की खासियतों के बारे में बता सकेगा।



' पसंद सच्चाई यह है कि जॉब मार्किट में ऐक्टिव कैंडिडेट्स की उपलब्धता काफी है। ऐक्टिव कैंडिडेट्स यानी जो जॉब चेंज के बारे में सोचते रहते हैं यानी नए रोल के लिए वे हमेशा उपलब्ध होते हैं। ऐसे में अहम सवाल यह भी है कि फिर क्यों कोई कंपनी ऐक्टिव की जगह पैसिव वर्कर्स को चुनना पसंद करती है? बोवन कहते हैं, 'पैसिव कैंडिडेट से डील करना ऐक्टिव के मुकाबले ज्यादा आसान और गंभीर होता है, क्योंकि वह सिर्फ एक ही दिशा में सोचता है, अलग-अलग अवसरों के बारे में नहीं। अगर बात फाइनल हो जाती है, तो पैसिव कैंडिडेट ज्यादा निष्ठावान एंप्लॉई साबित होगा।' कोलाबेरा के प्रेजिडंट और सीओओ मोहन शेखर कहते हैं, 'जॉब मार्किट में योग्य प्रफेशनल्स की जरूरत हमेशा रहती है। पैसिव कैंडिडेट्स ज्यादा स्थिर, करियर के प्रति सचेत और लॉयल होते हैं। इस तरह के कैंडिडेट कंपनी के लिए एसेट की तरह होते हैं, जबकि ऐक्टिव कैंडिडेट के फिर आगे बढ़ जाने के चांस ज्यादा होते हैं। ऐक्टिव कैंडिडेट के साथ रिस्क और कॉस्ट दोनों ज्यादा जुड़े होते हैं।'

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