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Wednesday, June 17, 2009

दो जून की रोटी नहीं फिर भी बना आईएएस

मुंबई.यह कहानी है यह जिद की, यह दास्तां है जुनून की, यह कोशिश है सपने देखने और उन्हें पूरा करने की। झुग्गी बस्ती में रहकर गरीबी में बचपन और फिर बड़े होकर परिवार की जिम्मेदारी निभाने के बीच एक कुली का बेटा आखिर अब एक आईएएस अफसर बन गया है।

सपनों को हकीकत में बदलने का जज्बा लिए नासिक के मखमलाबाद रोड इलाके का संजय अखाडे आज अपनी मेहनत और लगन के बलबूते किस्मत बदलने में सफल हो सका। तंग गलियों से आईएएस तक का सफर उसके लिए कांटो भरा रहा है।

संजय के पिता कुली थे, जबकि मां बीड़ी कारखाने में मजदूर है। छोटे से सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर संजय ने घर की सीमित आय में सहयोग देने के लिए दैनिक मजदूरी और फैक्ट्री में भी काम किया।

इस दौरान उसकी यूपीएससी की तैयारी भी साथ-साथ चलती रही। संजय ने बताया कि यूपीएससी की तैयारी के दौरान वह पुणो में एक आईएएस अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी से मिला और उन्हें अपनी इच्छा एवं मजबूरी बताई।

संजय के मुताबिक, श्री धर्माधिकारी ने उसकी काफी मदद की और फीस देने में सक्षम नहीं होने पर भी उसे कोचिंग में प्रवेश दिलाया। आखिर यूपीएसएसी के चौथे प्रयास में उसे सफलता मिल ही गई। इस दौरान उसके छोटे भाई ने घर का भार उठाया।

सफलता का श्रेय मां को

संजय ने इस सफलता का पूरा श्रेय अपनी मां को दिया। संजय की मां विमलाबाई कहती हैं, 'मैं जानती थी कि संजय होशियार है और विश्वास था कि वह कुछ न कुछ जरूर हासिल करेगा। अब कई लोग उससे मिलने आते हैं, मैं महसूस करती हूं कि उसकी सफलता काफी महत्वपूर्ण है।'

याद रहेंगे वे दिन

विमलाबाई ने कहा कि वे उस समय को कभी नहीं भूल सकतीं, जब खाने के लिए दो रोटी भी नहीं होती थीं। बच्चे लिफाफे बनाकर 15 से 20 रुपए कमाते थे और सिर्फ चाय व पाव से अपना पेट भर लेते थे।


 

 

Thanks & Regards

Vivek  Anjan Shrivasrtava

   

 

 

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