जिससे थोड़ा लगाव होने लगा।
बस उसी का अभाव होने लगा।
ये नियति का ही तो क़रिश्मा है,
ज़िंदा सच एक ख़्बाव होने लगा।
जिस्म दो जान एक थे जो कल,
आज उनमें हिसाब होने लगा।
गर्म बाज़ार हुआ रिश्तों का,
हर जगह मोल-भाव होने लगा।
पहले होता था सिर्फ क़िश्तों में,
दर्द अब बेहिसाब होने लगा।
या तो हम ही बहुत ख़राब हुए,
या ज़माना ख़राब होने लगा।
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