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Thursday, June 4, 2009

वो अलफाज कहां से लाऊं

वो अलफाज कहां से लाऊं
गा सकूं आपका नगमा वो साज कहां से लाऊं,
सुना सकूं कुछ आपको वो अंदाज कहां से लाऊं,
यूं तो चांद-तारों की तारीफ करना आसान है,
कर सकूं आपकी तारीफ वो अलफाज कहां से लाऊं।



फिर से रूठ जाने को दिल चाहता है

उससे रोज मिलने को दिल चाहता है,
कुछ सुनने और सुनाने को दिल चाहता है,
था किसी के मनाने का अंदाज ऐसा कि,
फिर से रूठ जाने को दिल चाहता है।



चांद निकलेगा तो दुआ मांगेंगे
चांद निकलेगा तो दुआ मांगेंगे,
अपने हिस्से में मुकद्दर का लिखा मांगेंगे,
हम तलबगार नहीं दुनिया और दौलत के,
हम रब से सिर्फ आपकी दुआ मांगेंगे।




4 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

तुमसे पूछूँगा कि ऐसी बातें क्यों कर कैसे कहते हो?
कुछ कह न पाओगे, क्या आँखों से भी न बताओगे !

स्वागत है।

Unknown said...

swagat hai

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

dil se likhi hai. narayan narayan

नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी said...

aage bhi badhen

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