कैसा है पुरखों का घर
कैसा है पुरखों का घर, लिख भेजिए
मिले आपको जब अवसर, लिख भेजिए ।
तब हम दिये जलाते थे, घर होता था उजियारा ।
बिजली के आने पर भी, क्यों छाया है अँधियारा ।
चिड़ियों के घोंसले किधर, लिख भेजिए ।
गाँव की ख़बर छपती रहती अक्सर अख़बारों में ।
पता चला है, पड़ने लगीं दरारें दीवारों में ।
टिकी हुई है छत किस पर, लिख भेजिए ।
तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर जिस को रचा-गढ़ा था ।
दाना-दाना बचा-बचा कर जो घर कभी बढ़ा था ।
किसकी थी वह बुरी नज़र, लिख भेजिए ।
जिन खेतों की फ़सल देख कर हम सब थे इतराते ।
उन खेतों का नाम जीभ पर, लाने से कतराते ।
इससे भी हो बुरी ख़बर, लिख भेजिए
No comments:
Post a Comment