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Wednesday, June 17, 2009

कैसा है पुरखों का घर

 

 

 

कैसा है पुरखों का घर

 

कैसा है पुरखों का घर, लिख भेजिए

मिले आपको जब अवसर, लिख भेजिए ।

 

तब हम दिये जलाते थे, घर होता था उजियारा ।

बिजली के आने पर भी, क्यों छाया है अँधियारा ।

चिड़ियों के घोंसले किधर, लिख भेजिए ।

 

गाँव की ख़बर छपती रहती अक्सर अख़बारों में ।

पता चला है, पड़ने लगीं दरारें दीवारों में ।

टिकी हुई है छत किस पर, लिख भेजिए ।

 

तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर जिस को रचा-गढ़ा था ।

दाना-दाना बचा-बचा कर जो घर कभी बढ़ा था ।

किसकी थी वह बुरी नज़र, लिख भेजिए ।

 

जिन खेतों की फ़सल देख कर हम सब थे इतराते ।

उन खेतों का नाम जीभ पर, लाने से कतराते ।

इससे भी हो बुरी ख़बर, लिख भेजिए

 

   

 

 

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