अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
Saturday, May 29, 2010
हमेशा गाँव ही खुद को शहर में ढाल लेते हैं
ज़रा सी डाल झुक जाए तो झूला डाल लेते हैं
जहाँ में लोग जो ईमान की फसलों पे जिंदा हैं
बड़ी मुश्किल से दो वक्तों की रोटी दाल लेते हैं
शहर ने आज तक भी गाँव से जीना नहीं सीखा
हमेशा गाँव ही खुद को शहर में ढाल लेते हैं
परिंदों को मोहब्बत के कफस में कैद कर लीजे
न जाने लोग उनके वास्ते क्यों जाल लेते हैं
अभी नज़रों में वो बरसों पुराना ख्वाब रक्खा है
कोई भी कीमती सी चीज़ हो संभाल लेते हैं
ये मुमकिन है खुदा को याद करना भूल जाते हों
तुम्हारा नाम लेकिन हर घडी हर हाल लेते हैं
हमें दे दो हमारी ज़िन्दगी के वो पुराने दिन
'रवि' हम तो अभी तक भी पुराना माल लेते हैं
Friday, May 28, 2010
झग्गी नं. 208 से निकला आईएएस
यह कहानी है एक जिद की, यह दास्तां है एक जुनून की, यह कोशिश है सपने देखने और उन्हें पूरा करने की। यह मिसाल है उस जज्बे की, जिसमें झुग्गी बस्ती में रहते हुए एक दिहाडी मजदूर का बेटा आईएएस अफसर बन गया है। पिता एक दिहाडी मजदूर, मां दूसरों के घर-घर जाकर काम करने वाली बाई। कोई और होता तो शायद कभी का बिखर गया होता, लेकिन दिल्ली के 21 वष्ाीüय हरीश चंदर ने इन्हीं हालात में रहकर वह करिश्मा कर दिखाया, जो संघर्षशील युवाओं के लिए मिसाल बन गया। दिल्ली के ओट्रम लेन, किंग्सवे कैंप की झुग्गी नंबर 208 में रहने वाले हरीश ने पहले ही प्रयास में आईएएस परीक्षा में 309वीं रैंक हासिल की है। संघर्ष की सफलता की कहानी, हरीश चंदर की जुबानी।
मेरा बचपन: चने खाकर गुजारी रातें
मैंने संघर्ष की ऎसी काली कोठरी में जन्म लिया, जहां हर चीज के लिए जद्दोजहद करनी पडती थी। जब से मैंने होश संभाला खुद को किसी न किसी लाइन में ही पाया। कभी पीने के पानी की लाइन में तो कभी राशन की लाइन में। यहां तक कि शौच जाने के लिए भी लाइन में लगना पडता था। झुग्गी में माहौल ऎसा होता था कि पढाई कि बात तो दूर सुबह-शाम का खाना मिल जाए, तो मुकद्दर की बात मानी जाती थी। बाबा (पापा) दिहाडी मजूदर थे। कभी कोई काम मिल जाए तो रोटी नसीब हो जाती थी, नहीं तो घर पर रखे चने खाकर सोने की हमें सभी को आदत थी। झुग्गी में जहां पीने को पानी मयस्सर नहीं होता वहां लाइट की सोचना भी बेमानी है। झोपडी की हालत ऎसी थी कि गर्मी में सूरज, बरसात में पानी और सर्दी में ठंड का सीधा सामना हुआ करता था।
मेरी हिम्मत: मां और बाबा
मेरे मां-बाबा पूरी तरह निरक्षर हैं, लेकिन उन्होंने मुझे और मेरे तीन भाई-बहनों को पढाने की हरसंभव कोशिश की। लेकिन जिस घर में दो जून का खाना जुटाने के लिए भी मशक्कत होती हो, वहां पढाई कहां तक चल पाती। घर के हालात देख मैं एक किराने की दुकान पर काम करने लगा। लेकिन इसका असर मेरी पढाई पर पडा। दसवीं में मैं फेल होते-होते बचा। उस दौरान एक बार तो मैंने हमेशा के लिए पढाई छोडने की सोच ली। लेकिन मेरी मां, जिन्हें खुद अक्षरों का ज्ञान नहीं था, वो जानती थीं के ये अक्षर ही उसके बेटे का भाग्य बदल सकते हैं। मां ने मुझे पढाने के लिए दुकान से हटाया और खुद दूसरों के घरों में झाडू-पोंछा करने लगी। उनके कमाए पैसों को पढाई में खर्च करने में भी मुझे एक अजीब सा जोश आता था। मैं एक-एक मिनट को भी इस्तेमाल करता था। मेरा मानना है कि आपको अगर किसी काम में पूरी तरह सफल होना है तो आपको उसके लिए पूरी तरह समर्पित होना पडेगा। एक प्रतिशत लापरवाही आपकी पूरी जिंदगी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
मेरे प्रेरक : मां, गोविंद और धर्मेद्र सर
यूं तो मां मेरी सबसे बडी प्रेरणा रही है, लेकिन मैं जिस एक शख्स से सबसे ज्यादा प्रभावित हूं और जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया, वह है गोविंद जायसवाल। वही गोविंद जिसके पिता रिक्शा चलाते थे और वह 2007 में आईएएस बना। एक अखबार में गोविंद का इंटरव्यू पढने के बाद मुझे लगा कि अगर वह आईएएस बन सकता है तो मैं क्यूं नहीं मैं बारहवीं तक यह भी नहीं जानता था कि आईएएस होते क्या हैं लेकिन हिंदू कॉलेज से बीए करने के दौरान मित्रों के जरिए जब मुझे इस सेवा के बारे में पता चला, उसी दौरान मैंने आईएएस बनने का मानस बना लिया था। परीक्षा के दौरान राजनीतिक विज्ञान और दर्शन शास्त्र मेरे मुख्य विष्ाय थे। विष्ाय चयन के बाद दिल्ली स्थित पतंजली संस्थान के धर्मेद्र सर ने मेरा मार्गदर्शन किया। उनकी दर्शन शास्त्र पर जबरदस्त पकड है। उनका पढाने का तरीका ही कुछ ऎसा है कि सारे कॉन्सेप्ट खुद ब खुद क्लीयर होते चले जाते हैं। उनका मार्गदर्शन मुझे नहीं मिला होता तो शायद मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता।
मेरा जुनून : हार की सोच भी दिमाग में न आए
मैंने जिंदगी के हर मोड पर संघर्ष देखा है, लेकिन कभी परिस्थतियों से हार स्वीकार नहीं की। जब मां ने किराने की दुकान से हटा दिया, उसके बाद कई सालों तक मैंने बच्चों को टयूशन पढाया और खुद भी पढता रहा। इस दौरान न जाने कितने लोगों की उपेक्षा झेली और कितनी ही मुसीबतों का सामना किया। लोग मुझे पास बिठाना भी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि मैं झुग्गी से था। लोग यह मानते हैं कि झुग्गियों से केवल अपराधी ही निकलते हैं। मेरी कोशिश ने यह साबित कर दिया कि झुग्गी से अफसर भी निकलते हैं। लोगों ने भले ही मुझे कमजोर माना लेकिन मैं खुद को बेस्ट मानता था। मेरा मानना है कि जब भी खुद पर संदेह हो तो अपने से नीचे वालों को देख लो, हिम्मत खुद ब खुद आ जाएगी। सही बात यह भी है कि यह मेरा पहला ही नहीं आखिरी प्रयास था। अगर मैं इस प्रयास में असफल हो जाता तो मेरे मां-बाबा के पास इतना पैसा नहीं था कि वे मुझे दोबारा तैयारी करवाते।
मेरी खुशी : बाबूजी का सम्मान
मेरी जिंदगी में सबसे बडा खुशी का पल वह था, जब हर दिन की तरह बाबा मजदूरी करके घर लौटे और उन्हें पता चला कि उनका बेटा आईएएस परीक्षा में पास हो गया है। मुझे फख्र है कि मुझे ऎसे मां-बाप मिले, जिन्होंने हमें कामयाबी दिलाने के लिया अपना सबकुछ होम कर दिया। मुझे आज यह बताते हुए फख्र हो रहा है कि मेरा पता ओट्रम लेन, किंग्सवे कैंप, झुग्गी नंबर 208 है। उस दिन जब टीवी चैनल वाले, पत्रकार बाबा की बाइट ले रहे थे तो उनकी आंसू भरी मुस्कुराहट के सामने मानों मेरी सारी तकलीफें और मेहनत बहुत बौनी हो गई थीं।
मेरा संदेश : विल पावर को कमजोर मत होने दो
मेरा मानना है कि एक कामयाब और एक निराश व्यक्ति में ज्ञान का फर्क नहीं होता, फर्क होता है तो सिर्फ इच्छाशक्ति का। हालात कितने ही बुरे हों, घनघोर गरीबी हो। बावजूद इसके आपकी विल पावर मजबूत हो, आप पर हर हाल में कामयाब होने की सनक सवार हो, तो दुनिया की कोई ताकत आपको सफल होने से रोक नहीं सकती। वैसे भी जब हम कठिन कार्यो को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं और उन्हें खुशी और उत्साह से करते हैं तो चमत्कार होते हैं। यूं तो हताशा-निराशा कभी मुझपर हावी नहीं हुई, लेकिन फिर भी कभी परेशान होता था तो नीरज की वो पंक्तियां मुझे हौसला देती हैं, 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूं.. '
सीमेंट प्लांट की गर्म गैस से बनेगी बिजली, कारखाने में लगेगा कोजनरेशन बिजली संयत्र
सीमेंट प्लांट की गर्म गैस से बनेगी बिजली, कारखाने में लगेगा कोजनरेशन बिजली संयत्र
इसमें कोयले का इस्तेमाल नहीं होने से हर साल हजारों टन कार्बन गैसें वायुमंडल में जाने से बच सकेंगी। साथ ही गर्म गैसों से तो पर्यावरण बचेगा ही।
कोयला नहीं लगने से लागत चार पांच साल में वसूल हो जाएगी। उसके बाद कारखाने को १९.५ मेगावाट बिजली लगभग निःशुल्क मिल सकेगी।
१९.५ मेगावाट बिजली के लिए हर माह पांच हजार टन कोयले की जरूरत होती है।
म.प्र. का एक सीमेंट प्लांट अपने यहां उत्पन्न होने वाली गर्म गैस से बिजली बनाएगा। इसके लिए वहां दो संयंत्र लगाए जा रहे हैं जिनसे कुल १९.५ मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी। ऐसा करने वाला सतना सीमेंट प्रदेश का पहला कारखाना बन जाएगा।
सतना सीमेंट की दो इकाइयों में हर दिन हजारों टन गर्म गैसें पैदा होती हैं जिन्हें चिमनी के जरिये वातावरण में छोड़ा जाता है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सुझाव पर सीमेंट कंपनी ने दोनों इकाइयों (सतना सीमेंट और बिड़ला विकास सीमेंट) में पैदा होने वाली गर्म गैसों से बिजली बनाने का फैसला लिया।
--
Thursday, May 27, 2010
हिंदी शायरी
दोस्तों की कमी को पहचानते हैं हम
दुनिया के गमो को भी जानते हैं हम
आप जैसे दोस्तों का सहारा है
तभी तो आज भी हँसकर जीना जानते हैं हम
आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी
जब हम ना होंगे तब हमारी बातें होंगी
कभी पलटोगे जिंदगी के ये पन्ने
तब शायद आपकी आंखों से भी बरसातें होंगी
कोई दौलत पर नाज़ करते हैं
कोई शोहरत पर नाज़ करते हैं
जिसके साथ आप जैसा दोस्त हो
वो अपनी किस्मत पर नाज़ करते हैं
हर खुशी दिल के करीब नहीं होती
ज़िंदगी ग़मों से दूर नहीं होती
इस दोस्ती को संभाल कर रखना
क्यूंकि दोस्ती हर किसी को नसीब नहीं होती
रेत पर नाम लिखते नहीं
रेत पर लिखे नाम कभी टिकते नहीं
लोग कहते हैं पत्थर दिल हैं हम
लेकिन पत्थरों पर लिखे नाम कभी मिटते नहीं
दिल से दिल की दूरी नहीं होती
काश कोई मज़बूरी नहीं होती
आपसे अभी मिलाने की तमन्ना है
लेकिन कहते हैं हर तमन्ना पुरी नहीं होती
फूलों से हसीं मुस्कान हो आपकी
चाँद सितारों से ज्यादा शान हो आपकी
ज़िंदगी का सिर्फ़ एक मकसद हो आपका
कि आंसमा से ऊँची उड़ान हो आपकी
वक्त के पन्ने पलटकर
फ़िर वो हसीं लम्हे जीने को दिल चाहता है
कभी मुशाकराते थे सभी दोस्त मिलकर
अब उन्हें साथ देखने को दिल तरस जाता है
Wednesday, May 26, 2010
आईआईटी में भोपाल का डंका
गौरतलब है कि सीबीएसई बारहवीं में भी राज ने 95.8 फीसदी अंक हासिल कर शहर में तीसरा स्थान हासिल किया है। राज के पिता सभाकांत द्विवेदी शासकीय वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय, बेनजीर में गणित के प्रोफेसर हैं। भोपाल के ही पवन नागवानी 72वीं रैंक हासिल करने में सफल रहे। 140वां स्थान भोपाल के रोहन पिल्लई और 217वां स्थान कार्तिकेय शर्मा ने हासिल किया है।
भोपाल से लगभग 150 सिलेक्शन हुए हैं।
जेईई में 4 लाख 55 हजार 571 छात्र शामिल हुए थे। इनमें से 13 हजार 104 परीक्षार्थी सफल घोषित हुए। इनमें 1 हजार 467 लड़कियां शामिल हैं। 27 मई से 12 जून तक ऑनलाइन काउंसिलिंग द्वारा आईआईटी में एडमिशन मिलेंगे।
टिप्स: दो साल के लिए मनोरंजन से थोड़ा दूर रहें। हर टॉपिक को पढ़ें, किसी टॉपिक को कमतर न समझें। सवाल का हल न आने पर तुरंत शिक्षकों से संपर्क कर उसका हल जानें।
'2010' रहा टॉपर
2005 80
2006 100
2007 125
2008 125
2009 110
2010 150
सुपर-30 के सभी 30 ने फिर मारी आईआईटी में बाजी
सुपर 30 के संस्थापक आनंद ने बुधवार को बताया कि एक बार फिर उनकी संस्था के सभी 30 छात्र आईआईटी-जेईई की परीक्षा में सफल रहे हैं। उन्होंने बताया कि सन् 2002 में स्थापना के बाद से लेकर अब तक उनकी संस्था के कुल 212 बच्चे इंजीनियरिंग एंट्रेस टेस्ट में सफल हुए हैं। सुपर 30 के इन छात्रों की खासियत यह है कि वे सभी गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं जो किसी भी हालत में फुल टाइम कोचिंग का बोझ नहीं उठा सकते थे।
|
|
|
|
आनंद ने बताया कि वे अब इन बच्चों के आईआईटी में एडमिशन और आगे की शिक्षा जारी रखने के लिए उनके वास्ते एजुकेशन लोन की व्यवस्था करने का प्रयास करेंगे। आनंद आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण खुद कैम्ब्रिज में पढ़ने का मौका गवां खो चुके हैं। वह अपने सुपर 30 के बच्चों को पूरी स्कॉलरशिप देते हैं जिसमें रहना, खाना और यात्रा करना सब कुछ शामिल है।
आईआईटी-जेईई में पास हुए बच्चों में से एक नालंदा जिला निवासी शुभम कुमार है जिसके पिता एक गरीब किसान हैं और उनकी मासिक आय मात्र 2500 रुपये है। उन्होंने कहा कि अगर आनंद जी ने मदद नहीं की होती तो उनका बच्चा इस कॉम्पटिशन में सफल नहीं हो पाता।
आनंद कुमार के इस कोचिंग सेंटर में एंट्रेंस के लिए स्टूडेंट्स को एंट्रेंस देना होता है। साथ ही, यह वचन भी देना होता है कि वे दिन में कम से कम 16 घंटे पढ़ाई करेंगे। साल 2003 से इस सेंटर के 210 में से 182 छात्रों ने आईआईटी एंट्रेंस टेस्ट में कामयाबी हासिल की है। इस सेंटर के संस्थापक आनंद कुमार पैसों की कमी की वजह से कैंब्रिज में पढ़ाई से चूक गए थे। वह अपनी कोचिंग में सभी छात्रों की स्कॉलरशिप, कमरे और आने-जाने का खर्च उठाते हैं।
सुपर-30 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी सराहा है। गांवों के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करने के वास्ते मनमोहन सिंह इसी साल फरवरी में आनंद कुमार से मिले थे।
Monday, May 24, 2010
Marketing Message From SBI
Recently, I received a funny unsolicited marketing message on my mobile.
The message read:
"Now State Bank has opened a branch on your mobile. Please contact your nearest SBI branch. Enjoy State Bank Freedom".
It was a glad to know State Bank opened a branch right on my mobile. Then the message asked me to contact the nearest branch, ie, my mobile.
Does it mean should I call myself? And for what?
I really have no idea what State Bank Freedom means. Can anyone tell me what it means?
I sure had a good laugh
Friday, May 21, 2010
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...
मशहूर था
कुछ तुम भी मगरूर थे, कुछ मैं भी मगरूर था
अगरचे ना तुम मजबूर थे, ना मैं मजबूर था
एक जिद के झोंके ने दो कश्तियाँ, मोड़ दीं दो तरफ
वरना दूरियों का ये ग़म किस कमबख्त को मंजूर था
खतामंदी का अहसास दफ़न किये हम अपने सीने में
कहाँ तक बहलायें दिल को, सब वक़्त का कुसूर था
ये तो नहीं कि मेरी नज़रों को धोका हो गया
तुम्हारी जानिब से भी हल्का-सा कोई इशारा ज़रूर था
दिल ही मेरा नादाँ निकला, यकीं कर बैठा
यूँ जमाने में शोख नज़रों का मुकर जाना मशहूर था
एक तुझसे ही क्यों हो शिकायत मुझे ज़माने में
हर किसी के जब लब पर यहाँ जी-हुज़ूर था
Thursday, May 20, 2010
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सप्रेटा हूँ,
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटेर लंबरेटा हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये,
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं almuniam का थाल प्रिये,
तुम चिक्केन-सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये,
तुम हिरण-चौकरी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये,
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं शनी-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो,
मैं तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो,
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिंदू-मुस्लिम दंगा हूँ,
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा अजन्ता की,
तुम हो वरदान विधता का, मैं ग़लती हूँ भगवांता की,
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ,
तुम ए के-सैंतालीस जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ,
तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मैं भोला-भाला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ,
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा ख़ाली हूँ,
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिसमैन की गाली हूँ,
कल जेल अगर हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटल हो,
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम रेड-लेबल की बोतल हो,
तुम चित्र-हार का मधुर गीत, मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ,
तुम विश्व-सुंदरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ,
तुम सोने का मोबाइल हो, मैं टेलीफ़ोन वाला हूँ चोँगा,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घोंघा,
दस मंज़िल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता-जयललिता जैसी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फॉलो-ओन की पारी हूँ,
तुम getz, matiz, corolla हो मैं Leyland की लॉरी हूँ,
मुझको रेफ़री ही रेहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं सोच रहा की रहे हैं कब से, श्रोता मुझको झेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये...
Tuesday, May 18, 2010
पल दो पल की शायरी...
सूरज निकला और रात गई
अब जीने की ख्वाहिश क्या करना
मरने की तमन्ना कौन करे
जब प्यास बुझाने की खातिर
प्यासा पनघट को जाता है
ऐसे में प्यासा क्यों मरना
और... पानी-पानी कौन करे!...
परदेस में
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
आँखों का तवा
लरज़ते ख्यालों की सब्जी में
प्यार का तड़का लगाया है
उसके आने की खुशबू
हवाओं में फैली है
इंतज़ार की अवधि को
जायकेदार नमक के साथ
कुरमुरा बनाया है
मनुहार की चाशनी
उसे रोक ही लेगी .
Monday, May 17, 2010
रोटी के लिए घूमता रहता हूँ ,
कन्फर्म है कि इश्क अंधा होता है।
एेसे हालातों की जानकारी भला किसे नहीं है। फिर भी सानिया मिर्जा ने पाकिस्तान खिलाड़ी से निकाह कर लिया है। भारत में भी कई मुस्लिम परिवार हैं जिनके पास बेशुमार धन है। उनमें से भी कोई चुना जा सकता था। खैर, उनकी निजी जिंदगी में कोई भी इंटरफेयर नहीं कर सकता। यह सानिया का हक है।
एक अखबार में पढ़ा कि अभिनेत्री रीना राय ने भी एक पाकिस्तानी से शादी की थी। इसके बाद उनका जो हाल हुआ था, पूरी दुनिया जानती है। उन्हें इतना प्रताडि़त किया गया कि वे आज भी उस लम्हों को याद करके सिहर उठती हैं। सानिया को भी रीना के बारे में जानकारी तो होगी ही।
दूसरी बात यह कि शोएब मलिक पहले ही सानिया की सहेली आएशा को छोड़ चुका है और तलाक तक नहीं दिया। सानिया को भला इस बात का पता कैसे नहीं होगा। इतने सब के बाद भी सानिया का यह फैसला इस बात को कन्फर्म करता है कि इश्क अंधा होता है। पूरी तरह अंधा।
आपको फिट रखना है।
हल्का-फुल्का व्यायाम करें
अनचाहे फैट को हटाने का सबसे बेहतर तरीका होता है व्यायाम करना। लेकिन ध्यान रखें की अधिक व्यायम करना स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है। इसलिए ऐसा व्यायाम करें जिससे शरीर को आकार देने में मदद मिले।
बेफिजूल के वजन उठाकर मसल्स बनाई जा सकती हैं। लेकिन शरीर को आकर्षक नहीं बनाया जा सकता। तो इसका भी ध्यान रखें कि हल्का-फुल्का व्यायाम हो जिसे आप घर पर ही कर सकें। ताकि किसी जिम में जाने की भी जरूरत न पड़े।
समय पर लें ब्रेकफास्ट
आप कभी भी ब्रेकफास्ट लेने में अनियमितता न बरतें। बल्कि ब्रेकफास्ट नियत समय पर लें। दिन में कम खाने से आपको रात में अधिक खाने की जरूरत महसूस होगी। इसलिए दिन में ठीक ढंग से खाएं। संभव हो सके तो दिन में भले ही 4 से 5 बार खाएं, लेकिन भोजन संतुलित होना चाहिए। रात में ज्यादा भोजन लेने बचें।
सुंदर लड़की
डोकरों में
प्यार का सिलसिला नहीं होता,
आम तब तक मीठा नहीं होता,
जब तक पिलपिला नहीं होता...
Saturday, May 15, 2010
परदेस करी काहे रुसवाई
आईसीसी र्वल्ड कप लगे हमारे हाथ
गए वेस्ट इंडीज वे इस दावे के साथ
इस दावे के साथ, रवाना हुए धुरंधर
किंतु कागजी शेर ढेर हो ताकें अंबर
दिव्यदृष्टि जब थके हुए थे इतने भाई
तो जाकर परदेस करी काहे रुसवाई
टीम इंडिया
ज्यादा भोजन से सदा होता है अतिसार
टीम इंडिया इसलिए फौरन करे विचार
फौरन करे विचार जीभ काबू में रक्खे
मुर्गा मछली छोड़ दाल-रोटी ही भक्खे
दिव्यदृष्टि प्लेयर 'सेहत' के बनें न बैरी
वरना 'मोटू' बता करें चुगली गुरु गैरी
Thursday, May 13, 2010
गैरों के अहसासों में
सतही बातें ही होती रहती है
गैरों के दर्दों को है किसने समझा
अपनी तो जान निकलती रहती है
थोड़े पल को तो करो मुक्त, खो
जाने को, गैरों के अहसासों में
Monday, May 10, 2010
राह हारी मैं न हारा।
थक गए पथ धूल के
उड़ते हुए रज-कण घनेरे।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिन्ह मेरे।
जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा।
राह हारी मैं न हारा
स्वप्न-मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे।
थक गए वन-विहग, मृगतरु -
थके सूरज-चाँद-तारे।
पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव ध्येय तारा।
राह हारी मैं न हारा।
Saturday, May 8, 2010
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए
तलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए
कचा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आए
एइसा भी हुस्न क्या कि तरसती रहे निगाह
एइसी भी क्या ग़ज़ल जो न गाने के काम आए
वह दर्द दे जो रातों को सोने न दे हमें
वह ज़ख़्म दे जो सबको दिखाने के काम आए
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है
बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है
यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है
अमीरी रेशम-ओ-कमख़्वाब में नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में रहती है
मैं इन्साँ हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत में शामिल है
हवा भी उसको छू कर देर तक नश्शे में रहती है
मुहब्बत में परखने जाँचने से फ़ायदा क्या है
कमी थोड़ी-बहुत हर एक के शजरे में रहती है
ये अपने आप को तक़्सीम कर लेता है सूबों में
ख़राबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में रहती है.
कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में
कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी [1]बचाने में
ज़मीनें बिक गईं सारी ज़मींदारी बचाने में
कहाँ आसान है पहली महब्बत को भुला देना
बहुत मैं लहू थूका है घरदारी बचाने में
कली का ख़ून कर देते हैं क़ब्रों को बचाने में
मकानों को गिरा देते हैं फुलवारी बचाने में
कोई मुश्किल नहीं है ताज उठाना पहन लेना
मगर जानें चली जाती हैं सरदारी बचाने में
बुलावा जब बड़े दरबार से आता है ऐ राना
तो फिर नाकाम[2]हो जाते हैं दरबारी बचाने में
शब्दार्थ:
ये मेरी भाई हैं कहते हैं जो बाबर मुझको
ज़ख़्म चेहरे पे, लहू आँखों में, सीना छलनी,
ज़िन्दगी अब तो ओढ़ा दे कोई चादर मुझको
मेरी आँखों को वो बीनाई अता कर मौला
एक आँसू भी नज़र आए समुन्दर मुझको
कोई इस बात को माने कि न माने लेकिन
चाँद लगता है तेरे माथे का झूमर मुझको
दुख तो ये है मेरा दुश्मन ही नहीं है कोई
ये मेरी भाई हैं कहते हैं जो बाबर मुझको
कोई भी नाम मिरा लेके बुलाले मुझको…
कोई भी नाम मिरा लेके बुलाले मुझको
तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको
कल की बात और है, मैं अब सा रहूँ या न रहूँ
खु़द को मैं बाँट न डालूं कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको
बादह फिर बादह है मैं ज़हर भी पी जाऊं क़तील
शर्त यह है, कोई बाहों में संभाले मुझको
ग़ोता-ज़न- ग़ोताखोर
ख़ुदपरस्ती- स्वंय की पूजा
बादह- शराब
Friday, May 7, 2010
सिलसिला
तमाम उम्र, अज़ाबों का सिलसिला तो रहा
ये कम नहीं, हमें जीने का हौसला तो रहा
गुज़र ही आये किसी तरह तेरे दीवाने
क़दम-क़दम पे कोई सख़्त मरहला तो रहा
चलो न इश्क़ ही जीता, न अक़्ल हार सकी
तमाम वक़्त मज़े का मुक़ाबला तो रहा
मैं तेरी ज़ात में गुम हो सका न तू मुझमें
बहुत क़रीब थे हम, फिर भी फ़ासला तो रहा
रविश-रविश पे जो काँटे महक उठे भी तो क्या
चमन से दूर गुलाबों का क़ाफ़िला तो रहा
Thursday, May 6, 2010
अजमल कसाब को फांसी
Wednesday, May 5, 2010
10 करियर रेजोल्यूशन
|
|
पिछले साल मंदी के असर के कारण लगभग सभी क्षेत्रों में तनाव और दबाव की जो स्थिति थी, वह साल के जाते-जाते काफी हद तक संभल गई। जो नौकरी में बने रहे उन्होंने राहत की सांस ली। यह राहत लंबे समय तक रह पाए इसके लिए चाहिए कुछ ऐसे दृढ संकल्प जो आपको न केवल अपनी जॉब में बने रहने में मदद करेंगे, बल्कि आपको निरंतर आगे की ओर ले जाने में भी सहायक होंगे। आइए जानें उन रास्तों को: कम्युनिकेशन मजबूत करें जो व्यक्ति यह सोचता है कि टेक्निकल स्किल ही करियर की राह पर सफल होने का मूल मंत्र है तो वह गलत सोचता है। यह एक अनिवार्य पक्ष हो सकता है लेकिन अंतिम नहीं। संबंधित क्षेत्र में प्रतियोगिता के लिए कम्युनिकेशन स्किल यानी संपर्क की योग्यता होनी जरूरी है। लेकिन इससे भी जरूरी है कि आप अपने सहयोगियों से कैसे संबंध रखते हैं तथा बॉस से आपके कैसे ताल्लुक हैं। यदि सेल्स से संबंधित हैं तो कस्टमर से कैसा व्यवहार करते हैं? वास्तव में ये सारी बातें आपके कम्युनिकेशन स्किल से जुडी हुई हैं। इसके लिए आपको करना यह होगा कि : 1. सुनने की आदत डालें। सबको सुनने और समझने से अनेक विचारों का आदान-प्रदान होता है व नई सोच विकसित होती है। 2. बोलने में जल्दी न करें। पहले सोचें फिर बोलें। 3. गुस्से पर काबू रखें। यह मामला घर का नहीं है। संबंध बनाने में जितनी देर लगती है, खराब करने में जरा भी समय नहीं लगता। 4. संपर्क के लिए ईमेल व फोन का इस्तेमाल करें। संस्थान में एक्टिव रहें केवल मीटिंग में मौजूद रहकर नहीं, बल्कि अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने का एक भी मौका हाथ से न जाने दें। अपनी योग्यता, दूरदर्शिता तथा सोच को सही तरीके से पेश करें। दूसरों की सहायता करने को तत्पर रहें। अपने कांटेक्ट को डेवलेप करें। केवल अपने कक्ष तक सीमित न रहें, उसके बाहर भी दुनिया है। पूर्व बॉस और सहकर्मियों से संपर्क रखें आपने सुना ही होगा कि दुनिया बहुत छोटी है। किस मोड पर कब कौन सामने आ खडा होगा यह आपको आज पता नहीं चलेगा। इसलिए चाहे जाने वाले हों या तत्कालीन सहयोगी सभी के साथ बेहतर संबंध बना कर रखें। साथ ही यह भी याद रखें कि हर नौकरी के विज्ञापन नहीं निकाले जाते। ऐसे में यदि आपके संबंध संबंधित व्यक्ति से अच्छे होंगे तो आपको जॉब परिवर्तन के लिए ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पडेगी। दूसरे संस्थान में जरूरत होने पर शायद दिमाग में कौंधने वाला नाम आपका भी हो। कभी-कभी जब भी समय मिले पुराने कनेक्शन रिवाइव करते रहिए। ऐसा भी नहीं है कि आपके संबंध तब यदि खराब रहे हों तो अब भी वैसे ही रहें। कंप्यूटर फ्रेंडली हों आज करियर का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं जहां कंप्यूटर का इस्तेमाल न होता हो। दूसरे यही वह माध्यम है जो आपको बाकी दुनिया से जोडता है। इसलिए जब भी रिलेक्स करने का मन हो या खाली हों, कंप्यूटर पर समय बिताएं। उसके साथ फ्रेंडली हों। ज्यादा से ज्यादा सिस्टम जानने की कोशिश करें, जिससे अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहना पडे। दूसरे इसका सबसे बडा फायदा यह है कि दुनिया के किसी भी विषय की जानकारी लेने के लिए इससे बेहतर माध्यम अन्य कोई नहीं। बॉस से एक कॉम्प्लीमेंट जरूर लें थोडा मुश्किल होगा, लेकिन कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं। बॉस को संतुष्ट करना किले को जीतने से कम नहीं है। कई बार अपवाद भी होते हैं। फिर भी यदि आपको एक काम की तारीफ भी अपने बॉस से मिलती है तो काम करने का उत्साह दुगुना हो जाता है तथा संतुष्टि के साथ मानसिक संतोष भी मिलता है। किसी के करियर को चौपट करने या बनाने में उसके बॉस की भूमिका महत्वपूर्ण है। जहां तक हो सके अपनी तरफ से कमी न छोडिए। इसे चुनौती मान कर स्वीकार करें। कंफर्ट जोन से बाहर आएं लंबे समय तक चलने वाली नौकरी आपके लिए आरामदायक हो जाती है। परिचित माहौल, निश्चित कार्यक्रम, जाने-पहचाने लोग.. अब चिंता किस बात की। लेकिन जब आप अपनी जॉब में आरामपसंद हो जाते हैं तो समझ लें कि मुश्किल घडी दूर नहीं। अपने को प्रूव करने की जरूरत हमेशा रहती है। दुनिया की कोई भी नौकरी आराम करने का पैसा नहीं देती। हां काम करने के तरीके सबके फर्क हो सकते हैं। यदि सफलता चाहिए तो आरामतलबी छोडने का निर्णय तुरंत लें। अपने को पुश करें न चाहते हुए भी बहुत से काम आपको ऐसे करने पडते हैं जो जरूरी हैं। जॉब में इच्छा या अनिच्छा का कहीं कोई सवाल नहीं रहता। जो कंसर्न चाहती है वह आपको करना होगा, तो अच्छा यही रहेगा कि मन से तैयार रहें। अपने को धकेल कर काम कराना पडे तो भी पीछे मत हटिए। जामिया के कुछ स्टूडेंट्स को करियर कांउसलिंग वर्कशॉप के दौरान यह कहा गया कि जाओ बारिस्ता और कॉफी कैफे डे जैसे रेस्तरां में जाकर काम मांगो। लौटते समय सीनियर पर्सन से 50 रुपये उधार भी मांगो। सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह उनका आत्मविश्वास बढाने और झिझक दूर करने के लिए किया गया। हैरानी की बात है कि सात में से पांच को रुपये भी मिले। यह अलग बात है कि वह बाद में वापस कर दिए गए। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारतीय समाज की सबसे बडी दिक्कत ही यही है कि वे झिझक छोड नहीं पाते। एक्सपोजर का सहारा लें केवल प्रोफेशनल डिग्री या डिप्लोमा आपके करियर की उन्नति के लिए काफी नहीं है। यह किताबी ज्ञान आपको विषयगत जानकारी ही देगा। सक्सेस चाहिए तो मुखर होना पडेगा। अपने को पूरे तौर पर एक्सपोज करना होगा। अपनी योग्यता यदि अपने भीतर ही छिपा कर रखेंगे तो भला किसका होगा? न कंपनी का न आपका। यदि जॉब बदलना भी चाहें तो भी एक्सपोजर की जरूरत तो पडेगी ही। कांउसलर का कहना है कि भारत में प्रैक्टिकल एक्सपोजर की कमी जबर्दस्त है। वर्कशॉप अटेंड करें, सेमिनार और कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने से कतराएं नहीं। यह याद रखें कि किसी क्षेत्र में नीड्स ज्यादा होती हैं, कुछ में कम। यह आप पर है कि आप अपनी स्किल को कैसे डेवलप करें। टीम स्पिरिट बढाएं अकेला चना भाड नहीं झोंक सकता। साथ लेकर चलना आपकी जरूरत है। कोई कंपनी अकेले से नहीं चलती है। इसके लिए बेहतर होगा कि अपने सहकर्मियों के साथ सहयोगी वातावरण बनाएं। जरूरत पडने पर एक-दूसरे की मदद करें। प्रोफेशनल हों ऑफिस में दोस्ताना व्यवहार बनाना जरूरी है, लेकिन आत्मीयता को हद से बढाना प्रोफेशनल्स के लिए खतरनाक है। यह करियर के लिए कभी-कभी घातक सिद्ध हो जाता है। इसलिए वर्कप्लेस में न तो इमोशनल हों और न ही पर्सनल। अपनी भावनाओं को काबू में रखने की कोशिश करें।
|
Tuesday, May 4, 2010
कसाब किलिंग मशीन है, कसाब शैतान का नुमाइंदा है
फरीदकोट के नागरिक कसाब और मारे गए उसके नौ सहयोगी आतंकियों पर लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर 166 लोगों की हत्या और 304 को घायल करने का आरोप है। मारे गए लोगों में 25 विदेशी भी शामिल थे।
मुंबई। मुंबई के गुनहगार पाकिस्तानी आतंकवादी आमिर अजमल कसाब की जिंदगी और मौत का फैसला 6 मई को हो जाएगा। 6 मई को तय होगा कि कसाब को फांसी होगी या सारी उम्र जेल में सड़ना होगा। मंगलवार को मुंबई की विशेष अदालत में सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कसाब को एक नहीं बल्कि पांच पांच नामों से पुकारा। उन्होंने साफ कहा कि इस इंसान पर नरमी बरतना भारी गलती होगी। इसीलिए कसाब को सिर्फ फांसी दी जानी चाहिए। अदालत में अपनी दलील रखते हुए निकम ने कसाब को शैतान का नुमाइंदा और किलिंग मशीन तक करार दिया।
कसाब- किलिंग मशीन है।
कसाब- शैतान का नुमाइंदा है।
कसाब- जंगली जानवर से भी बदतर है।
कसाब- मौत का सौदागर है।
कसाब- जहरीला सांप है जो बार-बार काटता है।
हमलों के दौरान जीवित पकड़े गए एकमात्र आतंकी अजमल कसाब की कोठरी और विशेष अदालत दोनों उच्च सुरक्षा वाले कारागार के भीतर स्थित हैं।
पुलिस सूत्रों ने कहा कि दक्षिणी मुंबई में सात रास्ता पर स्थित इस कारागार की ओर जाने वाले साणे गुरुजी मार्ग पर सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर जांच चौकियां स्थापित की गई हैं। गश्त तेज कर दी गई है और बालू के बंकर बनाकर पुलिसकर्मी दिन रात चौकसी कर रहे हैं।
इस कारागार के करीब स्थित सड़क पर यातायात को एकतरफा कर दिया गया है और यहां से गुजरने वाले सभी वाहनों के नंबर प्लेटों को पुलिस दर्ज कर रही है। करीब एक वर्ष पहले कसाब के खिलाफ मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। तब से उसे किसी भी हमले से बचाने के लिए तैयार एक विशेष बुलेट प्रूफ और बम निरोधक कोठरी में बंद कर रखा गया है। इस कोठरी को एक सुरंग के माध्यम से अदालत से जोड़ा गया है जिसे कोई गोली या बम बेध नहीं सकता।
कसाब की सुरक्षा में भारत तिब्बत सीमा पुलिस के 200 कर्मियों के एक दल को तैनात किया गया है। जेल के दो भाग हैं एक में विशेष अदालत तथा कसाब की कोठरी है तथा अन्य में 11 बैरक, एक जेल अस्पताल और हाई प्रोफाइल कैदियों के लिए एक अंडाकार कोठरी है।
Sunday, May 2, 2010
तेज गर्मी का अहसास
लक्षण
तेज गर्मी का अहसास और बेचैनी।
ना़ड़ी की गति अधिक ब़ढ़ जाने के कारण शरीर का तापमान 101 से 104 डिग्री तक पहुँच जाना।
बार-बार प्यास लगना।
अधिक तापमान के कारण बेहोशी छाना।
चेहरा लाल, सिर दर्द, जी मचलाना और उल्टियाँ होना।
प्राथमिक उपचार
रोगी के शरीर को ठंडा करें। बर्फ की पट्टियाँ रखें और यदि मरीज होश में है तो तापमान कम करने के लिए तुरंत नहलाएँ। कमरे में पंखे, कूलर या एसी जो भी हो उसे चालू करें।
ना़ड़ी और तापमान हर आधे घंटे में देखते रहें।
मरीज को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए ग्लूकोज और नमक या ओआरएस का घोल लगातार देते रहें।
लू से बचाव के लिए घर से खाली पेट न निकलें।
ताजा खाना खाएँ। आम और पुदीना का पना, छाछ, नींबू की शिकंजी और प्याज का अधिक से अधिक उपयोग करें।
मौसमी फलों का सेवन करें
कुदरत ने मौसम के अनुरूप कई नियामतें भी दी हैं। गर्मियों में आने वाले फलों में पानी की मात्रा काफी होती है, इसलिए इनका सेवन जरूर करें। जैसे तरबूज, खरबूज, खीरा आदि को नियमित लेने से शरीर में पानी के साथ खनिज-लवणों की भी पूर्ति होती है।
खानपान पर नियंत्रण
गर्मी में सामान्य खाना जैसे दाल, चावल, सब्जी, रोटी आदि खाना ठीक रहता है। गर्मी में भूख से थो़ड़ा कम खाना चाहिए। इससे आपका हाजमा भी ठीक रहेगा और फुर्ती भी बनी रहेगी। इसके साथ तली हुई चीजों को ज्यादा न खाएँ, यह आपका हाजमा बिगा़ड़ सकते हैं।
खूब पानी पिएँ
गर्मियों में शरीर का अधिकांश पानी पसीने के रूप में वाष्पीकृत हो जाता है। इसलिए दिन में कम से कम चार लीटर पानी पिएँ। गर्मी में नारियल पानी, छाछ और लस्सी पीने से भी जल का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
तली चीजों से बचें
गर्मी के मौसम में तली और मसालेदार चीजें खाने की इच्छा ज्यादा होती है। लेकिन इस मौसम में इन चीजों से बचा जाना ही बेहतर होता है। खाने में बहुत ज्यादा नमक भी न लें। नमकीन, मूँगफली, तले हुए पापड़-चिप्स और तेल में तले हुए खाद्य पदार्थ न ही खाएँ तो बेहतर होगा। इसके स्थान पर दही और छाछ लेना सर्वोत्तम है।
तब मुझे करना याद
भरों उड़ान
और तेज आंधियाँ रोके तुम्हारी राह
मैं प्रार्थना के रूप में रहूँगी साथ
सूरज की प्रखरता बढ़ाने लगे थकान
मै छाया बनकर दूँगी साथ
जब आ जाए कोई अमावस भरी रात
मै रोशनी बनकर रहूँगी साथ
और एक दिन जब छू लो तुम
अपने पँखों से आसमान
सितारों की चमक जब बस जाए
तुम्हारी आँखों में
तब पलके मूँदकर एक बार
मुझे करना याद।
गुलमोहर,
तुम्हें मेरी कसम
सच-सच बताना
तुम्हारे सलोने रूप की छाँव तले
जब शर्माई थी मैं पहली बार
क्या नहीं मची थी
केसरिया सनसनी तुम्हारे
मनभावन पत्तों के भीतर,
जब रचा था मैंने
जिंदगी का पहला
गुलाबी प्रेम पृष्ठ
क्या नहीं खिलखिलाई थी तुम्हारी
ललछौंही कलियाँ,
सच-सच बताना गुलमोहर
जब पहली बार मेरे भीतर
लहरें उठीं थी मासूम प्रेम की
तब तुम थे ना मेरे साथ,
कितनी सिंदूरी पत्तियाँ झरी थी
तुमने मेरे ऊपर,
जब मैं नितांत अकेली थी तो
क्यों नहीं बढ़ाया अपना हाथ?
गुलमोहर, क्या तुम
बस अप्रैल-मई में पनपते प्यार के ही साथी हो
जब रोया मेरी आँखों का सावन
तुम क्यों नहीं आए मुझे सहलाने?
सच-सच बताना गुलमोहर,
क्या मेरा प्यार खरा नहीं था?
क्या उस वक्त तुम्हारा तन हरा नहीं था?
क्या तब आकाश का सावन तुम पर झरा नहीं था?