बरसात
आय, बदरी छागे,
धरती ह मुस्काय, हरियर
लागे।
पानी के बूँद ह
नाचे गावे,
मन के भीतर ठंडक
लावे।
घाम
के दिन, गरमी के
लहर,
पसीना-पसीना होथे सहर।
फिर आय जाड़ा, कुहासा
घेर,
अंगना म अलाव, चुल्हा
फेर।
बसंती
बयार, फुल के बहार,
कोयल के गीत, मन
के उपहार।
मौसम बदलय, संग ले रंग,
छत्तीसगढ़ म, हर दिन
संग।
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