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Sunday, December 20, 2015

THINGS WE CAN LEARN FROM A DOG

Run, romp and play daily

Never pretend to be something you're not
Allow the experience of fresh air and the wind in your face to be pure ecstasy
Eat with gusto and enthusiasm
Take naps and stretch before rising
When loved ones come home, always run to greet them
Let others know when they've invaded your territory
Be loyal
When it's in your best interest, practice obedience
If what you want lies buried, dig until you find it
When someone is having a bad day, be silent, sit close by and nuzzle gently
Avoid biting when a simple growl will do.
On hot days, drink lots of water and lie under a shady tree
Never pass up the opportunity to go for a joyride
When you're happy, dance around and wag your entire body
No matter how often you're scolded, don't buy into the guilt thing and pout....run right back and make friends
Delight in the simple joy of a long walk.
Thrive on attention and let people touch you.

-- Author Unknown

Thursday, December 10, 2015

अधिक वेतन खुशी की सोगात नहीं

कहते हैं कि पैसे से हर खुशी खरीदी जा सकती है। मगर ऐसा है नहीं, एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि वेतन बढ़ने के साथ जिंदगी में खुशी के बढ़ने की भी एक सीमा है।

अधिक वेतन पाने वाले लोगों की जिंदगी से खुशियां भी कम हो जाती हैं।
अध्ययन के दौरान इन लोगों के वेतन और इनकी जिंदगी की खुशियों के बारे में जाना गया। इसके बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि खुशियों का बहुत ज्यादा ताल्लुक वेतन से नहीं है।

इस अध्ययन में पाया गया कि 50,000 पाउंड प्रति वर्ष वेतन पाने वाले बेहद खुश और अपने जीवन से संतुष्ट दिखाई दिए।

उनमें तनाव भी नहीं दिखा। वहीं 75,000 पाउंड प्रति वर्ष का वेतन पाने वाले अपेक्षाकृत कम खुश नजर आए और उनकी जिंदगी में तनाव ज्यादा था।

अध्ययन में कहा गया कि जो लोग एक लाख अथवा ढेढ़ लाख पाउंड का वेतन पाते हैं उनमें इन सबसे ज्यादा तनाव होता है।

उन्हें अपनी जिंदगी में खुशियां तलाशने का वक्त नहीं मिलता। ये लोग 50,000 पाउंड वेतन पाने वाले से ज्यादा खुश नहीं पाए गए।

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर क्रिस ब्यॉस ने कहा कि ज्यादा वेतन पाने वालों में खुशी के अभाव की वजह से उनमें आत्मसंतुष्टि की कमी भी है।

अगर कोई व्यक्ति 10 पाउंड डॉलर सालाना की कमाई करता है और उसके दोस्त का वेतन 20 लाख पाउंड सालाना है तो वह खुश नहीं रह सकता।

Thursday, December 3, 2015

अच्छे मनुष्य के लषण


(1) विस्तृत ज़हन एवं खुले विचार का मालिकः
एक इश्वर पर विश्वास रखने वाला तंग नज़र नही होसकता है बल्कि वह विस्तृत ज़हन और खुले विचार का मालिक होगा। वह सब को अपनी ही तरह एक ही मालिक की मिल्कीयत और एक ही राजा की प्रजा समझता है। उस की मोहब्बत,हमदर्दी और सेवा सब के लिए एक जैसा होता है।
(2) खुद्दारी और आदर-सम्मान का एहसासः
एक इश्वर को मान्ने वाले व्यक्ति बहुत खुददार,अपनी इज़्ज़त और सम्मान का एहसास करने वाला होगा। वह जानता है कि सर्व शक्तिमान केवल एक खुदा है , लाभ या हाणी उसी के हाथ में है,मारने या जिन्दह रखने वाला वही एक ज़ात है। यह ज्ञान उसे एक ऐसी शक्ति प्राप्त करती है जो उसे निडर बेखैफ बना देती है। उस की गर्दन दुन्या के किसी चीज़ के समक्ष नही झुकती , अपना हाथ किसी के सामने नही फैलाता बल्कि वह केवल एक इश्वर से ही सारी मुराद और सारी फरयाद करता है।
(3) संकटों में निराश नही होता बल्कि बहादुरी से मुकाबला करता है।
एक इश्वर पर आस्था रखने वाला जीवन के बुरे समय में कभी निराश नही होता और न ही उस का हृदय टुटता है। वह उस खुदा पर विश्वास करता है जो बहुत दयालु तथा बड़ा कृपा करने वाला है। यह ईमान उसे बहुत बड़ी संतुष्ठी प्राप्त करती है। यह ईमान उस के दिल को आशओं से भर देता है, यदापि वह संसार के सारे दरवाज़े से ठुकरा दिया गया हो। तमाम कारण खत्म होचुके हों। किसी का कोई सहायता प्राप्त होने की उमीद न हो। प्रन्तु उसके दिल में एक सहारा बाक़ी रहता है और यह एक इश्वर का सहारा रहता है। इश्वर से प्राथना करते हुऐ इन संकटो से बाहर निकलने की अच्छी तदबीर करता है। फिर उस पर से सारी संकट तथा परिशानी खत्म होजाती है।
(4) बहादुर और निडर होना
एक इश्वर पर ईमान लाने वाला व्यक्ति बहादुर होता है। वह किसी चीज़ से नही डरता, वह जानता है कि मृत्यु देने वाला और जिन्दह रखने वाला अल्लाह ही है। लाभ या हानी पहुँचान केवल अल्लाह के हाथ में है। बाल-बच्चे , प्राण और धन –दौलत का प्रेम उसे इश्वर का काम करने में रुकावट नही डालता बल्कि वह बेखैफ होकर अल्लाह के आज्ञा का पालन करता है।

Thursday, November 12, 2015

सुविचार

 
नायक वह होता है जो सही समय पर किसी की जान बचाने के लिए आगे आता है।
वह अपना जीवन अच्छे कामों को समर्पित कर देता है। आम जिंदगी में भी कुछ लोग ऐसे ही होते हैं।
वे दूसरों की मदद के करने के लिए अपनी परवाह नहीं करते। कई बार वे अपनी जान भी दांव पर लगा देते हैं।
हमने यहां ऐसे ही नायकों को चुना है। बेशक उनके काम से हमें भी प्रेरणा मिलती है।

Tuesday, November 3, 2015

जीवन में सफलता के सात आध्यात्मिक नियम


पहला नियम-  प्रतिदिन मौन. ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन.बोलने की प्रकिया से दूर. रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए।
इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए। शांत बैठकर सूर्यास्त देखें. समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें ।
दूसरा नियम-  सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है.- देने का नियम। देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है। यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे।यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख-समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख- समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।

तीसरा नियम-  सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम, कर्म का नियम है।
कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है...

चौथा नियम-  सफलता का चौथा नियम "अल्प प्रयास का नियम" है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है। यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है।

प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है। घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है। मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं। यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है। इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है।


पांचवा नियम- 
सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम "उद्देश्य और इच्छा का नियम" बताया गया है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है। सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं। यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामर्थ्य का ही दूसरा रूप है. जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है।

छठवां नियम-  सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है। व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है. उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है। तब वह जो कुछ भी चाहता है. उसे स्वयमेव मिल जाता है।

अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा.. आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं। मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा। चीजों को कैसा होना चाहिए. इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं। मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा। मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा। सब कुछ जितना अनिश्चित होगा. मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी। अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।..

सातवां नियम-  सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम. धर्म का नियम. है। संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ..जीवन का उद्देश्य बताया गया है। धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा.. ..मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा। अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख.समृद्धि से भर दूंगा। हर दिन खुद से पूछूंगा..मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं। इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।..
साभार : "द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग" के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डा.दीपक चोपड़ा (लेखक)

Tuesday, October 27, 2015

कर्मठी हटा नहीं करता है

आए जो कहर तूफां के कभी
पर्वत डिगा नहीं करता है
संघर्ष की अग्नि परीक्षा से
कर्मठी हटा नहीं करता है

टूटी एक कलम तो क्या ग़म
सूखी गर जो उसकी स्याही
कुछ पन्नों के भर जाने से
सृजन रुका नहीं करता है

जब तक दर्द न हो जीवन में
सुख का है आनंद अधूरा
बिन काँटों की संगत जोड़े
गुलाब खिला नहीं करता है

दुर्जन की संगत पाकर भी
सज्जन बुरा नहीं करता है
कितने ही विषधर लिपटे हों
चन्दन मरा नहीं करता
है
साभार : अर्चना तिवारी

Thursday, October 22, 2015

भगवान गणेश

भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को आदि देवता माना गया है.उनका पूजन किए बगैर कोई कार्य प्रारम्भ नहीं होता।गणपति विघ्नहर्ता हैं, इसलिए नौटंकी से लेकर विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है।
पत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम॥ श्री गणेशाय नमः॥, ॥श्री सरस्वत्यै नमः॥, ॥श्री गुरुभ्यो नमः॥ ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। ऐसा ही क्रम क्यों बना? किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है व गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम '॥ श्री गणेशाय नमः ॥' लिखना चाहिए। विघ्न हरण करने वाले देवता के रूप में पूज्य गणेश जी सभी बाधाओं को दूर करने तथा मनोकामना को पूरा करने वाले देवता हैं। श्री गणेश निष्कपटता, विवेकशीलता, अबोधिता एवं निष्कलंकता प्रदान करने वाले देवता हैं। उनके ध्यानमात्र से व्यक्ति उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होता है। जहाँ तक सामान्यजन का सवाल है, वह आज भी चरम आस्तिक भाव से 'ॐ गणानां त्वां गणपति गुं हवामहे' का पाठ करके सुरक्षा-समृद्धि का एक भाव पा लेता है, जो किसी भी देव की आराधना का शायद मूल कारण है।
गणपति विवेकशीलता के परिचायक है। गणपति का वर्ण लाल है; उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है। हाथी के कान हैं सूपा जैसे सूपा का धर्म है 'सार-सार को गहि लिए और थोथा देही उड़ाय' सूपा सिर्फ अनाज रखता है। हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। कान से सुनें सभी की, लेकिन उतारें अंतर में सत्य को। आँखें सूक्ष्म हैं जो जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। नाक बड़ा यानि दुर्गन्ध (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें। गणेशजी के दो दाँत हैं एक अखण्ड और दूसरा खण्डित। अखण्ड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखना चाहिए। खण्डित दाँत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए। गणेश जी के आयुध औश्र प्रतीकों से अंकुश हैं, वह जो आनंद व विद्या की प्राप्ति में बाधक शक्तियों का नाश करता है। कमर से लिपटा नाग अर्थात विश्व कुंडलिनी
और लिपटे हुए नाग का फन अर्थात जागृत कुंडलिनी. मूषक अर्थात्‌ रजोगुण, गणपति के नियंत्रण में है। मोदक गणेश जो को बहुत प्रिय है, पर सांसारिक दुनिया से परे इसका भी आध्यात्मिक भाव है.'मोद' यानी आनंद व '' का अर्थ है छोटा-सा भाग। अतः मोदक यानी आनंद का छोटा-सा भाग। मोदक का आकार नारियल समान, यानी '' नामक ब्रह्मरंध्र के खोल जैसा होता है। कुंडलिनी के '' तक पहुँचने पर आनंद की अनुभूति होती है। हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है। 'मोदक मान का प्रतीक है, इसलिए उसे ज्ञानमोदक भी कहते हैं। आरंभ में लगता है कि ज्ञान थोड़ा सा ही है (मोदक का ऊपरी भाग इसका प्रतीक है।), परंतु अभ्यास आरंभ करने पर समझ आता है कि ज्ञान अथाह है। (मोदक का निचला भाग इसका प्रतीक है।) जैसे मोदक मीठा होता। वैसे ही ज्ञान से प्राप्त आनंद भी।'
आजादी की लड़ाई के दौर में भी भगवान गणेश से प्राप्त अभय के वरदान से सज्जित होने की भावना ने समूचे स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया आयाम दे दिया था। बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता को राजनीतिक संदर्भों से उबारकर देश की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक-चेतना से जोड़ा था। सौ साल से भी अधिक काल से चली आ रही यह सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक चेतना की त्रिवेणी हर साल गणेशोत्सव के अवसर पर नए-नए रूपों में सामने आती है। लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की जो परंपरा शुरू की थी वह फल-फूल रही है।
गणेशोत्सव धर्म, जाति, वर्ग और भाषा से ऊपर उठकर सबका उत्सव बन गया है । गणपति बप्पा मोरया का स्वर जब गूँजता है तो उसमें हिन्दुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों की सम्मिलित आस्था का वेग होता है । किसी गोविंदा और किसी सलमान के घर में गणपति की एक जैसी आरती का होना कुल मिलाकर उस एकात्मकता का ही परिचय देता है जो हमारे देश की एक विशिष्ट पहचान है। साल-दर-साल गणेशोत्सव पर इस विशिष्टता का रेखांकित होना अपने आप में एक आश्वस्ति है।
गणेशोत्सव के अवसर पर एक और महत्वपूर्ण तथ्य भी रेखांकित होना चाहिए- गणेश अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजगता एवं सक्रियता के देवता भी हैं । इसलिए जब हम गणपति की पूजा करते हैं तो इसका अर्थ स्वयं को उस चेतना से जोड़ना भी है जो जीवन को परिभाषित भी करती है और उसे अर्थवत्ता भी देती है। यह चेतना अपने अधिकारों की रक्षा के प्रति जागरूकता देती है और अपने कर्तव्यों को पूरा करने की प्रेरणा भी।


Thursday, October 8, 2015

गणेशोत्सव



गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दुओं का एक उत्सव है। वैसे तो यह कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे का गणेशोत्सव जगत्प्रसिद्ध है। यह उत्सव, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी (चार तारीख से चौदह तारीख तक) तक दस दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।

इतिहास

पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।

इस उत्सव में नृत्य के आयोजन के साथ भक्ति संगीत और प्रसाद का वितरण भी किया गया। गणेश उत्सव के दौरान ईमानदारी, सहिष्णुता और प्रेम के प्रतीक भगवान गणेश की प्रतिमा की पूजा की जाती है।

यह उत्सव परंपरागत रूप से 10 दिन तक चलता है। माना जाता है कि इस दौरान भगवान गणेश धरती पर आते हैं और अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। भारत में यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। विशेषकर पश्चिमी प्रांत महाराष्ट्र और उसकी राजधानी मुंबई में इस उत्सव का रंग कुछ अलग ही दिखता है। मुंबई के लगभग हर क्षेत्र में भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनको काफी सजाया जाता है।

राजिम & रिद्धि-सिद्धि के दाता, विध्नहर्ता, दुखहर्ता प्रथम पूज्य गणपति गजानंद 11 सितंबर से जगह-जगह विराजेंगे। लोग घरों में गणेश की मूर्तियां रखकर पूरे ग्यारह दिन तक सेवा और पूजा-अर्चना करेंगे। गणेशोत्सव को देखते हुए मूर्तिकार दो माह से गणेश की मूर्तियां बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं। नगर में अनेक चौक-चौराहे पर पंडालों में गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाएगी। मूर्तिकार इस वर्ष आर्डर के अनुसार नौ फीट ऊंची गणेश की मूर्तियां बना रहे हैं।

 



Thursday, September 24, 2015

दिल से एक बात ....

अपने दिल से एक दिन होकर नाराज़,
बातों-बातों में हमने उससे कह दिया।
ऐ दिल, ना परेशान कर मुझे,
और धडकना छोड़ दे।
दिल बोला बड़े इत्मीनान से ,
छोड़ दूंगा मैं उस दिन धडकना ,
"अंजन", प्यार करना तू जिस दिन छोड़ दे।
 
 

Tuesday, September 15, 2015

New Law by Govt

 
"If you find any important documents like Driving License (DL), Ration Card, Passport, Bank Passbook, Voter's Card etc. that missed by someone,
simply put them into nearby post boxes. They will be delivered to the owner and postal fee or fine will be collected from them".

New Law by Govt.
 
Pass on this useful information ... "

 


Thursday, September 3, 2015

गल्यान सांखली सोन्या ची, ही पोरी कोना ची -

गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची,
गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची, (२)

इसकी अदा मेरा दिल ले गई,
ही पोरी कोना ची,
गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची,

हो जाये अपनी अगर दोस्ती,
तू जो मिले तो मिले ज़िंदगी,
गल्यान सांखली सोन्या ची,       
ही पोरी कोना ची

तू मेरा दिल है, जाने जिगर है
दिल दे दिया, तुझे दिल दे दिया

तू भी अच्छी लगी, दिल कि सच्ची लगी,
दिल है फिदा, मेरा दिल है फ़िदा

मेरा सपना है तू, मेरा सजना है तू
हो ना जुदा, कभी हो ना जुदा

दम से है तेरे ये रोशनी
ही पोरी कोना ची
इसकी अदा मेरा दिल ले गई
ही पोरी कोना ची

(गल्यान सांखली सोन्या ची
ही पोरी कोना ची ) \- २

साजन तुझे मिल जायेगा,
प्यार भरा दिन आयेगा,
जो प्यार ढूँढे है तेरी नज़र,
वो भी तुझे मिल जायेगा
मिल जायेगा, तुझे मिल जायेगा,
तेरा सजन तुझे मिल जायेगा
ये है रब से दुआ, हम सबकी दुआ,
साथी तेरा कोई बन जायेगा

आने लगी है लब पे हँसीं
ही पोरी कोना ची
इसकी अदा मेरा दिल ले गयी
ही पोरी कोना ची

(गल्यान सांखली सोन्या ची,      
ही पोरी कोना ची ) \- २

दिल मे सजन है, इसकी लगन है,
होगा यहीं, कहीं होगा यहीं  \- २

आँख वीरान है, दिल परेशान है
क्या हो गया, इसे क्या हो गया

ढूँढती है जिसे, कहीं जाने जिसे,
खामोश है, बड़ी खामोश है
उलझन मे इसकी है, ये ज़िंदगी
ही पोरी कोना ची

(गल्यान सांखली सोन्या ची,      
ही पोरी कोना ची ) \- २
==
संकलन :

गाना / Title: गल्यान सांखली सोन्या ची, ही पोरी कोना ची -

चित्रपट / Film: Dil Hai Ki Maanta Nahi

संगीतकार / Music Director:  Nadeem-Shravan 

गीतकार / Lyricist:  समीर-(Sameer) 

गायक / Singer(s):  Anuradha Paudwal  ,   Kumar Sanu 

Sunday, August 30, 2015

दिल में डर कहा

यह तो बतलाओ "कौन यहाँ है जिसे प्राणों से प्यार नहीं है?"
मगर जगत में जुड़ा शुरू से,मित्र कहाँ संघार नहीं है?
 मृत्यु क्या है वस्त्र बदलना,
दो पल का विश्राम साथिओं जीवन एक अखंड पर्व है,
साधारण त्यौहार नहीं है जीना सबसे बड़ी कला है.
लेकिन यह भी अटल सत्य है मरने से डरने वाले को,जीने का अधिकार नहीं है..
 

Saturday, August 22, 2015

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

by Rahat Indori

Thursday, August 6, 2015

अरमान न रहा,

जो आपने न लिया हो, ऐसा कोई इम्तहान न रहा,
इंसान आखिर मोहब्बत में इंसान न रहा,
है कोई बस्ती, जहा से न उठा हो ज़नाज़ा दीवाने का,
आशिक की कुर्बत से महरूम कोई कब्रस्तान न रहा,

हाँ वो मोहब्बत ही है जो फैली हे ज़र्रे ज़र्रे में,
न हिन्दू बेदाग रहा, बाकी मुस्लमान न रहा,

जिसने भी कोशिश की इस महक को नापाक करने की,
इसी दुनिया में उसका कही नामो-निशान न रहा,

जिसे मिल गयी मोहब्बत वो बादशाह बन गया,
कुछ और पाने का उसके दिल को अरमान न रहा,

Wednesday, July 15, 2015

Happy Engineers' Day

I take the vision which comes from dreams
and apply the magic of science and mathematics,
adding the heritage of my profession
and my knowledge of nature's materials
to create a design.

I organize the efforts and skills of my fellow workers
employing the capital of the thrifty
and the products of many industries,
and together we work toward our goal
undaunted by hazards and obstacles.

And when we have completed our task
all can see
that the dreams and plans have materialized
for the comfort and welfare of all.


Centuries ago people who sacrificed their
sleep, food, laughter & other joys of life
were called "SAINTS"
Now they are called ENGINEERS……….

HAPPY ENGINEERS DAY

Thursday, July 2, 2015

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,

फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबमें दाँव, बंधु!
....सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Monday, June 29, 2015

कॉरपोरेट जीवन में प्रगति के गुर

जब कॅरियर की बात आती है तो हर कोई अपनी भूमिका और जवाबदेही के लिहाज से आगे बढ़ना चाहता है। शिखर पर पहुंचने की राह कठिन जरूर है, लेकिन सही तौर-तरीके और कार्य संस्कृति को अपनाकर तेजी से इस दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। यहां कुछ ऐसी बातें पेश हैं, जिनके जरिए आप अपने सहकर्मियों व वरिष्ठ अधिकारियों को प्रभावित कर सकते हैं।

मल्टीटास्किंग : आज के जटिल माहौल में मल्टीटास्किंग की उपयोगिता को नकारना मुश्किल है। बस ध्यान देने वाली बात यह है कि हर काम को सही तरह से और प्राथमिकतानुसार अंजाम दिया जाए। आपका लक्ष्य कम से कम करके रुक जाना नहीं होना चाहिए। अतिरिक्त कार्यभार तो लें, लेकिन यह भी ख्याल रहे कि इससे आपकी मौजूदा जिम्मेदारियां प्रभावित न हों।

नकारात्मकता से दूर : क्रोध, शिकायतें, इल्जाम लगाना, बुरा-भला कहने की आदत आपकी निर्णय क्षमता को प्रभावित करते हुए आपके काम पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं। अपने सहकर्मियों का दोष निकालने से कोई फायदा नहीं होता। चुप रहें और अपने काम से काम रखें।

नेटवर्क बनाएं: नेटवर्क बनाना आज का मंत्र है। खुद को नेटवर्क में जरूर रखें। इसके लिए ऑफिस की मीटिंग, सहकर्मियों से बातचीत, दूसरी क्रियाओं और टीम लीडर्स के साथ सतत संपर्क बनाए रखें। अपने सहकर्मियों की लिस्ट को सिर्फ उसी फ्लोर तक सीमित न रखें, जहां आप बैठते हों। इस दायरे को आगे बढ़ाएं। यह काम वर्कशॉप और कांफ्रेंस के जरिए संभव है।

योग्यताएं बढ़ाएं : अपने मौजूदा काम के अलावा दूसरी योग्यताओं को हासिल करने की कोशिश करें, जिससे आगे जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में मदद मिलेगी। ऐसी योग्यताओं को जानें और अध्ययन करें, जिन्हें हासिल करना कॅरियर के लिहाज से उचित है। इसके लिए लघु या अल्पकालिक कोर्स कर सकते हैं।

नियोजन : किसी भी काम को सफल व प्रभावी बनाने की मूल कड़ी है योजना बनाना। कोई नया काम, प्रोजेक्ट या पद मिलने पर एक निर्धारित समय के लिए एजेंडा तैयार कर लें। लाभ बढ़ाने, घाटा कम करने और प्रतियोगिता में बने रहने के नए-नए तरीके सोचें। इससे प्रमोशन के समय आप औरों से अलग खड़े नजर आएंगे।

साभार : दैनिक भास्कर  


Saturday, June 20, 2015

बहाने पीने के

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !

पीने दे मुझे आज फिर साकी,पीने के तो बहाने  होते है,न पीने वाले क्या जाने,पीने वाले दीवाने होते है,महसूस करने के लिए अपनापन हों दिल में,ना पीनें वालो से वों बेगाने होते है,मिलना चाहो तो साथ देती है कुदरत भी,ना मिलने के हज़ार अफ़साने होते है,कहते है की मजबूर है वों खुद से,पर बाद में उन्हें ही हमारे किस्से सुनाने होते है,कहाँ जाए मयकदा छोड़ के हम,दुनिया क सारे गम यही तो भुलाने होते है,पीने दे मुझे आज फिर साकी,पीने के तो भने होते है!!!

Wednesday, June 10, 2015

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं

दिल की बातो को छुपाना अपनी फितरत नही

वो राजदार और होंगें जो लबों को सीते हैं

वेसे मर चुके हैं सब शहर में अपनी अपनी नजरों में

तो ग़लत क्या हैं गर हम भी मुर्दों में जीते हैं

उन्हें तो शायद इल्म भी नही के सालों गुजर गए

यहाँ तो लम्हें भी गिन गिन के बीते हैं

कहानी बताता हैं कोई अपनी उस चोराहे पर यहाँ

घर तबाह कर के हमारा उन्होंने यहाँ घर ख़रीदे हैं

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !





जरा देखो मेरे रकीबो के चेहरों की खुशी

ठोकर लगकर गिरा हूँ वो कहते हैं के हम जीते हैं



कोई न बचानें बाला "साहिल" को बुरी आदतों से,

इसलिए रिन्दों में बैठकर भी पी लेते हैं

नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,

इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !

साभार: शिव कुमार "साहिल"

Monday, June 8, 2015

अंततः FLIPKART तक पहुंच ही गए

http://www.flipkart.com/vidhwaan-kaviyon-ka-antarman/p/itmdy8m9tgvdbayn?pid=9789384236205&ref=L%3A1156165615059355101&srno=p_15&query=utkarsh+prakashan&otracker=from-search

Wednesday, May 13, 2015

साईं अमृत वाणी






सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके ना कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिरडी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साई की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध हो जाये तेरा बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तु निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग पग काँटे बोई के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्याय शील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी पारबन्ध के बदले है सत्यालेक
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत छाटना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डाँवाडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बीना प्रीत के तार हिले मिले ना प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुना का अवतार
घट घट की वो जानता महा योगी सुखकार

(
जय सांई राम)

 

Wednesday, May 6, 2015

हिंदी शायरी

दोस्तों की कमी को पहचानते हैं हम
दुनिया के गमो को भी जानते हैं हम
आप जैसे दोस्तों का सहारा है
तभी तो आज भी हँसकर जीना जानते हैं हम

आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी
जब हम ना होंगे तब हमारी बातें होंगी
कभी पलटोगे जिंदगी के ये पन्ने
तब शायद आपकी आंखों से भी बरसातें होंगी


कोई दौलत पर नाज़ करते हैं
कोई शोहरत पर नाज़ करते हैं
जिसके साथ आप जैसा दोस्त हो
वो अपनी किस्मत पर नाज़ करते हैं


हर खुशी दिल के करीब नहीं होती
ज़िंदगी ग़मों से दूर नहीं होती
इस दोस्ती को संभाल कर रखना
क्यूंकि दोस्ती हर किसी को नसीब नहीं होती


रेत पर नाम लिखते नहीं
रेत पर लिखे नाम कभी टिकते नहीं
लोग कहते हैं पत्थर दिल हैं हम
लेकिन पत्थरों पर लिखे नाम कभी मिटते नहीं


दिल से दिल की दूरी नहीं होती
काश कोई मज़बूरी नहीं होती
आपसे अभी मिलाने की तमन्ना है
लेकिन कहते हैं हर तमन्ना पुरी नहीं होती


फूलों से हसीं मुस्कान हो आपकी
चाँद सितारों से ज्यादा शान हो आपकी
ज़िंदगी का सिर्फ़ एक मकसद हो आपका
कि आंसमा से ऊँची उड़ान हो आपकी


वक्त के पन्ने पलटकर
फ़िर वो हसीं लम्हे जीने को दिल चाहता है
कभी मुशाकराते थे सभी दोस्त मिलकर
अब उन्हें साथ देखने को दिल तरस जाता है

Tuesday, May 5, 2015

मौत का सफर

यह पीपली लाइव नहीं बल्कि एक गुमनाम मौत की कहानी है। 30 मिनट तक मौत से जूझते व्यक्ति की कहानी..। पीपली लाइव का नत्था भी व्यवस्था का शिकार था और उत्तरप्रदेश के बरेली निवासी इस गुमनाम की भी दास्तां कुछ ऐसी ही है। नत्था तो बच जाता है लेकिन इस कहानी के पात्र नत्था (काल्पनिक नाम) की मौत हो गई है। प्रशासनिक अफसरों की बेफिक्री और लापरवाही.. का ही नतीजा था कि दर्जनों तमाशबीन के सामने वह पानी में समाता गया और कोई कुछ नहीं कर सका। प्रशासन से आधी-अधूरी मदद भी तब मिली, जब उसकी सांसें थम गई थीं।

मौत से बेखबर



वक्त-शाम पांच बजे। स्थान-बदायूं रोड पर करगैना रोंधी मिलक की पुलिया। आमतौर पर यहां से करीब आठ किलोमीटर दूर बहने वाली रामगंगा इलाके में कहर बरपा रही थी। लोगों की भीड़ बाढ़ के नजारे देखने के लिए जुटी थी। बदायूं रोड पूरी तरह बंद थी। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस रोंधी मिलक पुलिया के समीप तैनात थी। इसी बीच पानी की लहरों को चीरते हुए महेशपुरा की ओर से शहर की तरफ तीन ग्रामीण आते दिखे। तीनों ही अनजान थे। 30 साल के आसपास की उम्र के नत्था केसिर पर पोटली भी थी। उन्हें देखकर पुलिया पर कुछ हलचल हुई लेकिन तब तक तीनों ही पानी के तेज बहाव से घिर चुके थे।

बचाओ.. बचाओ..


वक्त- शाम 5.05 बजे। तीनों के सामने कोई रास्ता नहीं था। लिहाजा वे खतरा भांपने के बाद भी आगे ही बढ़ते रहे और इधर पुलिया पर मौजूद लोगों की धड़कनें बढ़तीं गई। आखिर में वही हुआ, जिसकी आशंका थी। किनारे पर पहुंचने से पहले अचानक सिर पर गमछा बांधे और कंधे पर पोटली रखे नत्था का पांव फिसला और वह पानी के तेज बहाव में बहने लगा। संभवत: नत्था तैरना नहीं जानता था। उसकी आंखों के सामने मौत नाच रही थी। फिर भी उसने जिंदगी की जद्दोजहद के बीच खुद को बचाने के लिए गुहार लगाई। तेज धार की गड़गड़हाट के बीच आधा किलोमीटर दूर खड़े लोगों को उसने मदद के लिए पुकारा। बचाओ.. बचाओ.. की आवाज गूंजी। अफसोस, कोई उसकी मदद की हिम्मत नहीं जुटा सका।


चलो जल्दी करो


शाम-5.16 बजे। सूरज डूब रहा था। प्रशासन की तरफ से कोई नहीं आया। फिर मिलक गांव के कुछ युवकों ने हिम्मत जुटाई और डूबते नत्था को बचाने के लिए पानी में कूद गए।


उम्मीद की किरण


करीब पांच मिनट तक तेज धार से जूझने के बाद युवक पानी में डूब रहे नत्था के पास पहुंचे। दूर से टकटकी लगा नजारा देख रही भीड़ की सांसों में सांस आई। एक उम्मीद की किरण जागी की शायद अभी भी जिंदा हो नत्था।


बढ़ते कदम


बहादुर युवकों ने नत्था को तुरंत ट्यूब में लिटाया और बिना समय गंवाएं बढ़ चले सुरक्षित किनारे की तरफ।




आखिर निशां



..लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी..। नत्था को जिला अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस तरह बरेली का नत्था जिंदगी की जंग हार गया और बाकी बचे रहे गए निशान। बाढ़ के पानी में बहती नत्था की चप्पल।


Sourse: दैनिक जागरण

Friday, April 17, 2015

क्या-क्या बना दिया.


सब जल चुका है आग में बाकी है अब धुआं,
धुंए को तुमने आँख का काजल बना दिया.
बुझता हुआ चिराग क्या रौशन करे जहाँ,
तुमने उसी चिराग को सूरज बना दिया.
अपने तो बीच धार में, किश्ती डुबो गए,
तुम कौन हो कि हमको किनारे पे ला दिया.
अच्छे थे या बुरे थे, जैसे थे हम मगर,
ऐसे नहीं थे आपने, जैसा बना दिया.
गर तुम बुरा न मानो तो, एक बात पूँछ लूं,
क्या-क्या बनाओगे अभी, क्या-क्या बना दिया.

Sunday, April 12, 2015

हम नहीं वह जो करें दिल से फ़रामोश तुम्हें।

हम नहीं वह जो करें दिल से फ़रामोश तुम्हें


जानते अपना हैं हम जाने-दम-ब-होश तुम्हें


चश्मे-मस्त अपनी जो दिखलाए वो मयनोश तुम्हें
जाहिदो! होशो-ख़िरद का न रहे होश तुम्हें


कर चुके आहो-फ़ुगां जब्त तुम, ऐ हजरते-दिल
दम-ब-दम गर है मुहब्बत का यही होश तुम्हें


शब-ए-फ़ुरक़त में भी रहते हो बग़ल में मेरे
रखते हैं अपने तसव्वुर से हम-आग़ोश तुम्हें


आंखें सुरमा से हैं आलूदा तेरी, पूछ इनसे
किसके मातम ने किया है ये सियहपोश तुम्हें


शम्अ-सा गो कि सरापा हो जुबां तुम, लेकिन
देखता हूं ‘जफ़र’, इस बज्म में ख़ामोश तुम्हें



- ओम सारथी, बूंदी (राज)

Thursday, April 9, 2015

आप कैसे युवा हैं ?

 (जिन्हें भारत एक गड़रियों का देश था पढ़ाया गया है जिन्हें ये पढाया गया है कि हिन्दू धर्म ग्रंथों में केवल कहानिया हैं और कुछ नहीं, कैसे युवा हैं आप ? )

हमारा देश वर्तमान में युवाओं का देश माना जा रहा है । अब ये अलग बात है कि कोई पच्चीस साल का होते हुए भी युवा होने की ताल नहीं ठोक सकता, और कोई पचास साल का होने के बाद भी युवाओं से स्वयं को कम नहीं मानता । शरीर विज्ञान के अनुसार तो अस्सी साल के बुजुर्ग के सम्मुख सत्तर साल के बुजुर्ग को युवा कहेंगे । हमारे भारत में तो "साठा सो पाठा" की कहावत इसीलिए चर्चित है कि यहाँ सभी अपने को युवा कहलाना चाहते हैं ।
पर मेरा सवाल अवस्था के परिप्रेक्ष में नहीं है, मेरा सवाल विचारों के परिप्रेक्ष में है । " आप कैसे युवा हैं" ? क्योंकि हमारा देश विविधताओं वाला है । यहाँ की विविधता केवल बोली-भाषा,प्रदेश,धर्म-संस्कृतियों के आधार पर ही नहीं है अपितु वैचारिक आधार पर भी होती है । जैसे ———

एक प्रकार के युवा, अंग्रेजी पढ़े हुए ही नहीं अपितु अंग्रेजी सोच भी रखने वाले जिन्हें स्वदेशी भाषा, धर्म,संस्कृति-संस्कार, ग्रन्थ-इतिहास आदि सब बकवास लगता है क्योंकि उन्हें उस प्रकार का आदर्श बनना है जैसा अंग्रेज नीतिकार मैकाले चाहता था। वो अपने को विकास वादी या प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष कहलाना पसंद करते हैं (यदि राजनीति में हों) । महंगे बान्डेड कपडे, घडी,चैन,जूते,चश्मा, लम्बी गाड़ी, विदेशी शैक्षिक डिग्रियां,लड़की-लड़के में भेद न समझना ही इनकी पहचान है । इनमे से अधिकतर को तो इससे कोई मतलब नहीं कि देश में क्या हो रहा है क्या नहीं । इनके मां-बाप इनका खर्च चलाते हैं क्योंकि वे किसी भी तरह से अनाप-शनाप कमाते हैं । ऐसे युवा थोड़े से भी शालीन हो जाते हैं तो राजनीति में सभी दलों में दिख जायेंगे ।

इन्हीं की नक़ल करके समाज के हर तबके में अपने आर्थिक स्तर के अनुरूप , मुहं में गुटका शाम को शराब, तौर-तरीके (स्टाईल) फ़िल्मी, राजनैतिक नेताओं के पीछे लग कर अपने लिए कुछ कमाई के साधन तलाशना इनकी मज़बूरी। या सरकारी नौकरी लग गयी तो सब बातों से निश्चिन्त हो कर जिंदगी जीना खूब आराम तलब हो कर कुछ सालों में बिमारियों का घर बनकर परेशान रहना ।

इन दोनों से अलग एक युवा वो हैं जिन्हें अपनी दाल-रोटी की चिंता भी है समाज-संस्कृति की चिंता भी है, देश की चिंता, राजनीति की चिंता, शिक्षा की चिंता, मतलब सभी का ठेका उसके पास ही है । मंदिर-मस्जिद पर लम्बी बहस हो या आतंकवादियों के मामले पर नुक्ताचीनी, फिल्मों पर चर्चा हो या खेलों पर, सब पर उसकी नजर रहती है । देश के पक्ष में कोई आन्दोलन चले तो सबसे पहले वह ही आंदोलित होता है ।

अब मुझे इनकी संख्याओं का पता तो नहीं है कि अधिक कौन हैं; पर ये प्रश्न जरुर मन में उठता है कि आप कैसे युवा हैं ? अपने देश,धर्म,संस्कृति,सभ्यता-समाज, संस्कार, इतिहास,ग्रंथों,को जानने वाले और इन पर गर्व करने वाले, या पश्चात्य संस्कृति में सराबोर मैकाले के आदर्श युवा ? जिन्हें भारत एक गड़रियों का देश था पढ़ाया गया है जिन्हें ये पढाया गया है कि हिन्दू धर्म ग्रंथों में केवल कहानिया हैं और कुछ नहीं, कैसे युवा हैं आप ?

 

Wednesday, April 1, 2015

धन का नशा सबसे खतरनाक...

धन का मोह ऐसा मोह है जिसने कई बार असंख्य लोगों की जान ली है। धन, संपत्ति के लोभ में कोई भी बहुत आसानी से फंस जाता है। धन को इसीलिए ही माया कहा जाता है। इस माया के चक्कर में जो फंसता है उसे परिवार, समाज और दुनिया से मतलब नहीं रह जाता। उसे तो बस धन ही धन दिखाई देता है।

मनुष्य धन के लालच में कई बार ऐसे कर्म कर बैठता है, जिसके लिए जीवन में उसे हमेशा पछताना पड़ता है। धन के नशे के संबंध में एक दोहा बहुत प्रचलित है:

कनक-कनक ते सौ गुनी,

मादकता अधिकाय।।

या खाये बोराय

वा पाए बोराय।।

अर्थात् यहां कनक शब्द के दो अर्थ है, कनक का मतलब सोना और धतूरा (सबसे नशीला फल) धतूरा के नशा उसे खाने के बाद ही होता है परंतु सोना पा लेने से उसका नशा हमारे सिर चढऩे लगता है।


Thursday, March 19, 2015

Top 10 reasons why employees hate their boss

Bosses! Can't work with them, can't work without them. Everything seems to be fine when you join the job but if you are one of those fortunate ones, sooner or later your boss starts smirking in your nightmares.

A chat with employees working under tough projects and small teams who usually face tremendous work pressure will give us interesting insights about the bad bosses they have. Even in a company sans work pressure employees regularly bump into bad bosses. And their experiences are real bad [pardon me of your boss is really good] which they only share once they are in a new job. Good bosses are hard to find and employees hate their bad bosses for very many reasons. We at SiliconIndia did a survey to know why employees hate their boss. Listing the Top 10 reasons below:



1) Incompetent and unacknowledging - Employees hate bosses who doesn't have the essential competitive skills but still scorns the work they do. Whether or not the boss is competitive, the employee really longs for his good work to be acknowledged and not to be treated as a 'piece of crap'.

2) Privacy Invasion - 'He always keep guard about what I do, constantly checks out on the office phone about what I am busy at (an indirect way to know whether I am on a call with any acquaintance) and one day even peeped through the door to see what I am doing. Now I even doubt whether he is watching me once I reach home' says Anamika (name changed to protect identity). Now that's a real bad boss.

3) The narcissist boss - Employees hate bosses who acts as the 'know it all', who thinks they are second to none, hears nothing until it directly benefits him and so self obsessed to be called in the informal way 'a narcissist glory monger'.

4) Personal Insults - Bosses who torture employees with personal insults rather than choosing to reproach on the basis of their work quickly gets in the hate list. Many employees have long stories to say about bosses who frequently torture them with comments about their attitude and discriminate them deliberately.

5) The angry 'yelling' boss - You are the boss, thumbs up. But how on earth could you yell at me like that. Employees at some point or other meet the unfortunate fate of being victim to their boss' wrath. Justifiable the reason may be, but you are in my hate list boss.

6) The 'opportunist' boss - Employees obviously develops a dislike to their boss who refuses to mind them. But one day the same boss who never acknowledged your presence comes to you, smiles at you and the next thing you know, you are on an extra shift with heavy workload. Dislikes turn to hate for such opportunist bosses.

7) The 'tensed' boss - Employees tend to hate bosses who are always tensed and want them to finish of the work in a hurry. "He is so tensed and rushes things as if his head is on fire. His tension is so contagious that even we get tensed in his presence" Rahul, a software employee.

8) Stealing credits - Employees feel cheated and hate their boss when he or she steals the credit of their work but never forgets to blame them if something goes wrong.

9) Lack of clarity and feedback - Employees hate bosses who don't brief them properly and keep the employees ignorant with any real feedback on their work. And worse, employees are blamed for something which in turn would be the result of void feedback.

10) Lack of rapport - Employees hate bosses who lacks mutual respect and always play bossy without any real interest in befriending the employees.