मौत से बेखबर
वक्त-शाम पांच बजे। स्थान-बदायूं रोड पर करगैना रोंधी मिलक की पुलिया। आमतौर पर यहां से करीब आठ किलोमीटर दूर बहने वाली रामगंगा इलाके में कहर बरपा रही थी। लोगों की भीड़ बाढ़ के नजारे देखने के लिए जुटी थी। बदायूं रोड पूरी तरह बंद थी। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस रोंधी मिलक पुलिया के समीप तैनात थी। इसी बीच पानी की लहरों को चीरते हुए महेशपुरा की ओर से शहर की तरफ तीन ग्रामीण आते दिखे। तीनों ही अनजान थे। 30 साल के आसपास की उम्र के नत्था केसिर पर पोटली भी थी। उन्हें देखकर पुलिया पर कुछ हलचल हुई लेकिन तब तक तीनों ही पानी के तेज बहाव से घिर चुके थे।
बचाओ.. बचाओ..
वक्त- शाम 5.05 बजे। तीनों के सामने कोई रास्ता नहीं था। लिहाजा वे खतरा भांपने के बाद भी आगे ही बढ़ते रहे और इधर पुलिया पर मौजूद लोगों की धड़कनें बढ़तीं गई। आखिर में वही हुआ, जिसकी आशंका थी। किनारे पर पहुंचने से पहले अचानक सिर पर गमछा बांधे और कंधे पर पोटली रखे नत्था का पांव फिसला और वह पानी के तेज बहाव में बहने लगा। संभवत: नत्था तैरना नहीं जानता था। उसकी आंखों के सामने मौत नाच रही थी। फिर भी उसने जिंदगी की जद्दोजहद के बीच खुद को बचाने के लिए गुहार लगाई। तेज धार की गड़गड़हाट के बीच आधा किलोमीटर दूर खड़े लोगों को उसने मदद के लिए पुकारा। बचाओ.. बचाओ.. की आवाज गूंजी। अफसोस, कोई उसकी मदद की हिम्मत नहीं जुटा सका।
चलो जल्दी करो
शाम-5.16 बजे। सूरज डूब रहा था। प्रशासन की तरफ से कोई नहीं आया। फिर मिलक गांव के कुछ युवकों ने हिम्मत जुटाई और डूबते नत्था को बचाने के लिए पानी में कूद गए।
उम्मीद की किरण
करीब पांच मिनट तक तेज धार से जूझने के बाद युवक पानी में डूब रहे नत्था के पास पहुंचे। दूर से टकटकी लगा नजारा देख रही भीड़ की सांसों में सांस आई। एक उम्मीद की किरण जागी की शायद अभी भी जिंदा हो नत्था।
बढ़ते कदम
बहादुर युवकों ने नत्था को तुरंत ट्यूब में लिटाया और बिना समय गंवाएं बढ़ चले सुरक्षित किनारे की तरफ।
आखिर निशां
..लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी..। नत्था को जिला अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस तरह बरेली का नत्था जिंदगी की जंग हार गया और बाकी बचे रहे गए निशान। बाढ़ के पानी में बहती नत्था की चप्पल।
Sourse: दैनिक जागरण
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