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Wednesday, September 8, 2010

बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर था या नहीं.




1993 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यह फ़ैसला करना उसका काम नहीं है कि बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर था या नहीं.

न्यायालय ने यह भी कहा कि उसका काम यह तय करना भी नहीं है कि वहां जैसाकि हिंदू मानते हैं, उनके आराध्य राम का जन्म हुआ था या नहीं.


न्यायालय की मुख्य चिंता यह नहीं है कि यहां भगवान राम पैदा हुए थे या नहीं.

वह यह पता लगाना चाहता है कि यह भूमि क़ानूनी रूप से हिंदुओं की है या मुसलमानों की.

इतिहासकार बी बी लाल उन लोगों में से हैं जो यह मानते हैं कि बाबरी मस्जिद वाली जगह पर पहले राम मंदिर हुआ करता था.

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद वहाँ से एक अभिलेख मिला है.

इस पर लिखा हुआ है कि 12 वीं शताब्दी में राजा न्यायचंद्र ने यहां भगवान राम को समर्पित एक मंदिर बनवाया था.

खुदाई कब तक

यह पूरी तरह साफ नहीं है कि मंदिर जैसा कोई अवशेष मिलने के साथ ही खुदाई का काम रोक दिया जाएगा.

कुछ लोगों का मानना है कि यहां बौद्ध मंदिर के अवशेष की भी तलाश होनी चाहिए.

बौद्धों के कुछ संगठनों का कहना है कि मंदिर से पहले यहां एक बौद्ध मंदिर था.



इतिहासकार बी बी लाल को इसमें कोई संदेह नहीं.

उन्होंने बीबीसी को बताया कि खुदाई में अगर मंदिर के अवशेष मिल जाते हैं, तो खुदाई का काम रोक देना चाहिए.

क्योंकि न्यायालय ने सिर्फ़ इस स्थान पर मंदिर होने या न होने की जानकारी मांगी है.

लेकिन मामला इतनी आसानी से निपट जाएगा, ऐसा भी नहीं लगता.

अब जैन संप्रदाय के कुछ प्रतिनिधियों ने भी विवादित स्थान पर अपना मंदिर होने का दावा किया है.

इन लोगों का कहना है कि उन्हें वह स्थान दे देना चाहिए.

उन्होंने खुदाई के समय अपना पर्यवेक्षक रखने की मांग भी की है.

ख़तरनाक उदारहण

अयोध्या में हो रही खुदाई से देश के दूसरे विवादित पूजा स्थलों के लिए भी ऐसी मांग उठ सकती है.

इनमें मथुरा और वाराणसी भी शामिल हैं.

मथुरा को हिंदू भगवान कृष्ण का जन्मस्थान मानते हैं.

यहां कई मंदिर और मस्जिद एक-दूसरे के अगल-बगल हैं.

कई हिंदू कट्टरपंथी गुटों की मांग है कि मस्जिदों की जमीन उन्हें लौटा दी जाए.

उत्तर प्रदेश में तो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विनय कटियार ने यहां तक कहा है कि अयोध्या में हो रही खुदाई आगे के लिए उपयोगी उदाहरण साबित हो सकती है.

लेकिन कुछ इतिहासकार अयोध्या में हो रही खुदाई से सहमत नहीं.

इतिहासकार शाहिद अमीन का कहना है कि इससे लोकतंत्र के आधार को नुकसान पहुंचेगा.

उनका कहना है कि लोकतंत्र का काम दो धार्मिक विश्वासों के बीच फैसला करना नहीं है.

उन्होंने कहा कि दुनियाभर में विश्वास और उसके कारण पर होने वाली बहस पुरानी पड़ चुकी है.

 

 
संविधान विशेषज्ञ राजीव धवन कहते हैं कि 1991 के पूजा स्थल क़ानून ने यह साफ कर दिया है कि भारत के धार्मिक स्थलों की स्थिति उस रूप में बहाल रखी जाएगी, जैसी वे 1947 में थी.
लेकिन अयोध्या की बाबरी मस्जिद इस क़ानून के दायरे में नहीं आती.

क्योंकि क़ानून बनने से पहले से ही यह विवाद चला आ रहा है.
बाकि आगे क्या होगा मालूम नहीं

18 comments:

गजेन्द्र सिंह said...

बहुत बढ़िया .... आभार

एक बार जरुर पढ़े :-
(आपके पापा इंतजार कर रहे होंगे ...)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

अच्छा लिखा है आपने किन्तु क्या आपने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि जहाँ भी विवाद है (धार्मिक स्थानों का) वहां मंदिर के साथ मस्जिद जरूर बनी है. ऐसा क्यों?
यही वो सवाल है जो विवाद पैदा करता है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड और साथ में जय श्री राम

drdhabhai said...

हिंदुओं को उनके आराध्य देव की जन्मस्थल पर बना मंदिर मिलना चाहिये इसमें संदेह कैसा और वर्ड वैरिफिकैशन हटा दें इसका कोई लाभ नहीं बस लोग टिप्पणी करना बंद कर देंगे

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हम हिन्दुओ में यही तो दिक्कत है कि हर चीज में संतुलन कायम रखना चाहते है , मगर कभी हमने यह गौर किया कि इस देश में यह धर्म/ आस्था प्रकरण असंतुलित किया किसने था ?माना कि ये विश्व हिन्दू परिषद् और अन्य तथाकथित ठेकदार सब मौक़ा परस्त है मगर जिनके पूर्वजों ने किया वो अपने को आज भला इंसान दिखाने की कोशिश में है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हम हिन्दुस्तानी ( हिन्दू खासकर ) कभी नहीं सुधर सकते क्योंकि खून में गुलामी तैरती है हमारे ! कभी सोचता हूँ तो हँसी आती है कि दिल्ली को अंगरेजी में आज तक सही नहीं लिख पाए डेलही (Delhi) लिखते है ! गाज़ियाबाद को घाजियाबाद (Ghaziabad) लिखते है क्योंकि अंग्रेजों ने हम गुलामों को ऐसा ही सिखाया था ! अत्याचारी औरंगजेब के नाम हमने अपनी सड़कों के नाम रखे है, बेचारे कायर गुलाम !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मैं तो इनको बस यही कहूंगा कि चाहे वहा मंदिर रहा हो अथवा नहीं , धर्म के नाम पर १९४७ में देश बंटा था मुसलमानों ने बांटा था और मुसलमानों ने मस्जिद का हक़ उसी समय खो दिया था इस देश में ! एक ही चैलेंज दूंगा कि कभी वहाँ मस्जिद मत बनने देना ! सत्यानाश हो बाबर का !!!!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मगर यार मैं कह किस्से रहा हूँ यह सब , इस सेक्युलर देश में ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

उन स्वार्थी बी एच पी वालों से जिन्होंने उन शहीदों के नाम पर धन एकत्र किया जिन्होंने बाबर का नामो निशाँ मिटाने में अपनी आहुती दी ! मगर उनके परिवारों को आज कोई पूछने वाला नहीं !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

उन भरष्ट नेतावो से, जिन्होंने लोगो को उकसाकर मौत के मुह में धकेला और जिन्होंने अपने फायदे के लिए पोलिसे को निहत्थों पर गोली चलने का आदेश देकर अपने घर भरे ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

उन भूखे नंगे पत्रकारों से जिन्होंने झूठी प्रशंसा, आत्म संतुष्ठी और वाह-वाही पाने के लिए तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा ? उन प्रशासनिक और पोलिसे अधिकारियों से जिन्होंने लाशें गायब करवाई ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

या उन चंद नाजायजों से जिनके पूर्वजों ने जिन विदेशी डाकुओं के हाथों अपनी इज्जत गवाई आज उनके लिए वही डाकू पूज्य हो गए ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अंत में :
अब फैसला चाहे जो भी आये, ख़ास महत्व नहीं रखता मेरे लिए मगर क्षमा चाहता हूँ मन के उदगार इस तरह यहाँ निकालने के लिए !

Taarkeshwar Giri said...

Jai Sri Ram, Jai Hindustan

दीपक बाबा said...

श्रीराम जय राम
जय जय राम
श्रीराम जय राम
जय जय राम
श्रीराम जय राम
जय जय राम
श्रीराम जय राम
जय जय राम
श्रीराम जय राम
जय जय राम
श्रीराम जय राम
जय जय राम
श्रीराम जय राम
जय जय राम

बोल राजा रामचंद्र महाराज कि जय

बलबीर सिंह (आमिर) said...

सवाल भी होना चाहिए था कि हुनमान कहां है सब जानते हैं वह चिरंजीव हैं यानि हमेशा जिन्‍दा रहेंगे फिर उनके जिन्‍दा होते हुए यानि सबसे बडे राम भक्‍त के होते हुए कोई मस्जिद कैसे बना लिया

चिरंजीव हनुमान कहां है?

विवेक रस्तोगी said...

यह सब हमारे पुराने भारत के जख्म हैं, जो कि आक्रांताओं ने हमारी सहिष्णुता का नाजायज फ़ायदा उठाते हुए अतिक्रमण किया, और हम चुप रहे।

Arvind Mishra said...

`बहुत पेंचीदा मामला है हिन्दू अपने पूजा स्थलों पर अपनी आस्था मूर्तिमान नहीं कर सकते तो कहाँ करेगें .
हम मक्का मदीना में शिव मंदिर स्थापना की बात तो कर नहीं रहे -राम कृष्ण और शिव जो हिन्दू जीवन की धुरी हैं ,प्राण हैं उनकी स्मृति से जुड़े स्थलों पर मंदिर बनाना चाहते हैं -मुस्लिम भाईयों को आगे बढ़ कर हमें इस कार्य में मदद करनी चाहिए और कार सेवा करनी चाहिए -हमें तीन दें दें हम तेरह न्योछावर करने को तैआर हैं .

Shah Nawaz said...

Arvind Mishra जी
आप तीन क्या तीन लाख अपनी जगहों पर मूर्ति स्थापित करिए, कौन मना कर सकता है. लेकिन कम से कम जगह को अपना होना साबित तो हो जाने दीजिये. यकीन मानिये जगह आपकी है तो आपको ही मिलेगी, फिर डर किस बात का? क्या अपने ही देश के कानून पर भरोसा नहीं है?

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