Friday, December 19, 2014

‘लालबहादुर शास्त्री’


किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।

उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।

उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।

उस लड़के का नाम था 'लालबहादुर शास्त्री'

 

मुझे इतना विश्वास है।

सीमाएं अपनी जानता हूँ मैं

जबतक सांस है दिल में आस है।

काम मेरा रुका कभी भी नहीं

उस पर मुझे इतना विश्वास है।

 

आतंकी नस्लों को।

 

जिनने बोया हे धरती में बम बारूदी असलों को।
निर्ममता से जिन्होंने कुचला फूलों की फसलों को।
मासूमों के खून से जिनने खून की होली खेली हे
करदो नेस्तनाबूत धरा से इन आतंकी नस्लों को।

कहने को बचा ही क्या है


विदा तुमसे अंतिम संवाद हेतु
उपयुक्त शब्द नहीं है
संवेदनाओं की स्याही भी लिख नहीं पा रही है 
अव्य्क्तेय इस वेदना को

कोई ताबूत में घर लौटने के लिए
नहीं जाता स्कूल सज धजकर यूनिफ़ॉर्म में
और स्कूल में भी गोलियां नहीं 
ज्ञान के बादल बरसते आये हैं

कक्षाओं में हत्यारे नहीं 
सपनों के मन मयूर नाचा करते हैं

बच्चों और शिक्षकों को नहीं
यहाँ अज्ञान को जलाया जाता रहा है

पर सब कुछ उल्टा हो गया
कल्पनातीत अमानवीय क्रूर और राक्षसी कृत्य 
भर कहना काफी नहीं 
कहने को बचा ही क्या है
-
सुरेन्द्र रघुवंशी
Copyright@
सुरेन्द्र रघुवंशी

Saturday, November 22, 2014

angaro par nange pav rachi rachana

खुली किताब के शामो -सहर भी आयेंगे
भरी दुपहर में तारे नज़र भी आयेंगे
जला के कोई ना रक्खे चिराग गलियों में
लुटेरे लूटने शायद इधर भी आयेंगे

अभी हाथ ही काटे गये है सपनो के
जमीन पे टूटकर ख्वाबों के सर भी आएँगे

जो शख्स देर तक उलझा रहेगा काँटों में
उसी के हाथ में तितली के पर भी आयेंगे

बस अपनी रूह के जख्मों को तुम हरा रखना
सफ़र में सैकड़ों सूखे शजर भी आयेंगे

चलो गुनाह के पत्थर ही जेब में रख ले
सुना है राह में शीशे के घर भी आएँगे

..........................................................
रचनाकार -------माधव कौशिक

Saturday, October 18, 2014

किसके मन में कैसी है भावना समझते हैं

किसके मन में कैसी है भावना समझते हैं
ज़िन्दगी का हम यारों फलसफ़ा समझते हैं
दौर अब दिखावे का आ गया है कुछ ऐसा
लोग आज पत्थर को आइना समझते हैं
उनके पैर बढ़कर ख़ुद चूमने गई मंज़िल
अपनी ठोकरों से जो रास्ता समझते हैं
जानते हैं रिश्ते हम क़ातिलों से मुंसिफ़ के
किसके हक़ में होना है फ़ैसला समझते हैं
जिनके इक इशारे पर हमनें जां लुटा दी है
वो भी जाने क्यों हमको बेवफ़ा समझते हैं
दौर में फ़रेबों के सच को सच कहा जिसने
लोग ऐसे इंसाँ को सिरफिरा समझते हैं

       रचनाकार प्रवीण शुक्ल जी: उनको मेरा सादर प्रणाम

Friday, October 3, 2014

Overcoming Laziness To Get Things Done

 

We are all lazy people. We love to procrastinate, we find comfort in sleeping, we idle away time as though it were a useless commodity, and we have all built our personal utopias where we do everything except work.

It's perfectly natural to be lazy. I imagine that if it wasn't for the deadlines and binding commitments that force us to do work, none of us would go back to those dungeons, aka offices.

Thankfully though, we realize that laziness should be overcome in order for us to be successful and be useful to the society.

So, what to do to beat laziness and reclaim the lost inspiration?

Take action

If you don't feel like reading, read. If you don't feel like writing, write. If you don't feel like doing exercise, do it. In short, action is the best motivation. The only thing that stops us from getting sucked into a task is not doing it, so do it now!

Take one bite at a time

Does the idea of taking your whole meal in one massive bite sound repulsive? Luckily, you can take it one bite at a time, enjoy it, and still consume the whole meal.

Likewise, if you try to do everything together, you lose motivation to do anything at all. Therefore, it's best to split a bigger task into smaller ones and concentrate on only one part at a time. The less formidable the work, the more you'll enjoy doing it.

Remove the distractions

When being lazy, we are often attracted to the distractions. Bloggers are found browsing others' blogs when they are supposed to be writing theirs, and students are found watching TV when they should be studying. These are all distractions that serve no good purpose. If you remove the distractions, for example, by disconnecting from the Internet and by locking the TV room, you'll notice that it becomes easier to get back to the work.

Find motivation

Why are you doing work? It is easy to forget the purpose of work with time. Remind yourself of how important your work is for you, for your personal satisfaction, for your life, family and so on. If you feel you are not clear about the purpose of what you are doing, it's time to recap the goals you set down when you started.

Reward yourself

Discipline and schedules are all good and well, but do we want to become robots? This the very thing we dread and that is what leads us to lose motivation. You'll be more enthusiastic to complete a task when you know you are going to reward yourself at the end.

We usually agonize over the fact that we are being lazy, yet continue to procrastinate for hours. It becomes difficult to get out of this condition unless we force ourselves to take action, which is, admittedly, the most difficult part. Though once we set about doing a task, the laziness disappears like a magician's trick.

What is it that keeps you busy and motivated?

Thursday, September 11, 2014

कृष्णाष्टमी


भादव  कृष्णाष्टमी   को  जन्माष्टमी   कहते  हैं।इसी  दिन  मथुरा  में  श्रीकृष्ण  का  जन्म  हुआ  था। इस  तिथि  की  रात्रि  में  यदि  रोहिणी  नक्षत्र  हो  तो  कृष्ण  जयन्ती  होती  है। रोहिणी  नक्षत्र  के  अभाव  में  केवल  जन्माष्टमी  व्रत  का  ही  योग  होता  है। इस  सभी  स्त्री-पुरुष  नदी  के  जल  में  तिल  मिलाकर  नहाते  हैं पंचामृत  से  भगवान  कृष्ण  की  प्रतिमा  को  स्नान  कराया  जाता  है , उन्हें  सुन्दर  वस्त्राभूषणों  से  सजाकर  सुन्दर  हिन्डोले   में  विराजमान  करते  हैं। धूप-दीप  पुष्पादि  से  पूजन  करते  हैं, आरती  उतारते  हैं तथा  माखन-मिश्री   आदि  का  भोग  लगाते  हैं। कीर्तन-हरिगुनगान  करते  हैं।१२  बजे  रात  को  खीरा चीरकर  भगवान  श्रीकृष्ण  का  जन्म  कराते  हैं।रात  में  मूर्ति   के  पास   ही   पृथ्वी  पर  शयन  करना  चाहिये। इस  दिन  गऊ दान   का  बहुत  महत्व  है।इस  अकेले  व्रत  से  करोंढ़ों  एकादशी  व्रतों  का   पुण्यफल  प्राप्त  होता  है।इस  दिन  श्रीमद् भागवत  महापुराण  के  दशम स्कंध  में  वर्णित  भगवान  श्रीकृष्ण  की  बाल-लीलाओं  के  श्रवन-मनन  का  विशेष  माहात्म्य  है।


आप  सभी    को    जन्माष्टमी   शुभ   हो।प्रत्येक   परिवार   प्रसन्नता   से   भरपूर  रहे।

 



Thursday, August 21, 2014

प्रिय माँ ,

प्रिय माँ ,
मुझे बताते हुए बड़ा संकोच हो रहा हैं की मैंने घर छोड़ दिया हैं और मैं अपने प्रेमी के साथ रहने चली गयी हूँ मुझे उसके साथ बड़ा अच्छा लगता हैं. उसके वो स्टाइलिश टैटू ,कलरफुल हेयर स्टाइल … मोटरसाइकिल की रफ़्तार, वे हैरतअंगेज करतब. वाह ! उस पर कुर्बान जाऊ. मेरे लिए ख़ुशी की एक और बात हैं. माँ , तुम नानी बनने वाली हो. मैं उसके घर चली गयी, वह एक झुग्गी बस्ती में रहता हैं. माँ उसके ढेर सारे दोस्त हैं. रोज शाम को वो सब इकठ्ठा होते हैं और फिर खूब मौज मस्ती होती हैं. माँ एक और अच्छी बात हैं अब मैं प्रार्थना भी करने लगी हूँ. मैं रोज प्रार्थना करती हूँ की AIDS का इलाज जल्दी से जल्दी हो सके ताकि मेरा प्रेमी लम्बी उम्र पाएं. माँ मेरी चिंता मत करना. अब मैं 16 साल की हो गयी हूँ और अपना ध्यान खुद रख सकती हूँ. माँ तुम अपने नाती -नातिन से मिलने आया करोगी ना ?
 -तुम्हारी बेटी

फिर कुछ नीचे लिखा था...

नोट : माँ ,परेशान होने की जरूरत नहीं हैं. यह सब झूठ हैं . मैं तो पडोसी के यहाँ बैठी हूँ. मैं सिर्फ यही दर्शाना चाहती थी की मेज़ की दराज में पड़ी मेरी मार्कशीट  ही सबसे बुरी नहीं हैं, इस दुनिया में और भी बुरी बातें हो सकती है।

बच्चों से उम्मीद तो रखे पर दबाव ना डालें.कही ऐसा ना हो की दबाव और डांट डपट के चलते वे कोई गलत कदम उठा ले और आपको भारी खामियाजा भुगतना पड़े .

Friday, July 25, 2014

किसे याद हैं बाबा अलाउद्दीन खां!

 

 
 
अलाउद्दीन खां
अलाउद्दीन खां ने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत भी सीखा था
मैहर दो बातों के लिए मशहूर है मां शारदा देवी के मंदिर और पद्म विभूषण उस्ताद बाबा अलाउद्दीन खां की कर्मभूमि के रूप मे. बाबा अलाउद्दीन खां का जन्म 1862 मे हुआ था पूर्वी बंगाल में जो आज बांग्लादेश है.

माना जाता है कि वो मियाँ तानसेन की शिष्य परंपरा के अंग थे. उनके कई मशहूर शिष्यों में पंडित रविशंकर और अली अक़बर ख़ान जैसे कलाकार शामिल हैं.

बाबा अलाउद्दीन खां की एक बड़ी उपलब्धि थी मैहर वाद्य वृंद का गठन जिसने न सिर्फ़ एक मुश्किल समय में मैहर के समाज को संगीत से रौशन किया बल्कि आज भी बाबा द्वारा निर्मित सैकड़ों राग रचनाओं का एक मात्र आईना है.

मैहर देखने में भारत के किसी भी क़स्बे से अलग नहीं है. लेकिन यहाँ माहौल में उस्ताद बाबा अलाउद्दीन खां की रूह बसती है. लोग उन्हें बाबा के नाम से ही पुकारते हैं, मानो एक निजी रिश्ता क़ायम करना चाहते हों, बाबा के साथ और मैहर की विरासत के साथ.

सवाल यह नहीं है कि ऐसा क्या था बाबा में, सवाल यह है कि ऐसा क्या नहीं था? बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ को भारतीय संगीत का पितामह कहा जाता है.

और यह राह चलता आदमी भी यहाँ बता देता है कि बाबा जिस भी वाद्य को छूते वो उनका ग़ुलाम बन जाता था.

कहते हैं बाबा 200 से ज़्यादा भारतीय और पश्चिमी वाद्य बजाते थे. मगर अधिक जाने जाते थे सरोद, सितार वादन और अपनी ध्रुपद गायकी के लिए.

यादें

मैहर के महाराज बृजनाथ सिंह बीसवीं सदी की शुरुआत में उन्हें मैहर लाए थे. लेकिन बाबा जितना दरबार में बजाते थे उससे कहीं अधिक नियमित रूप से मां शारदा देवी के मंदिर में गाते थे.

बाबा के बेटे अली अकबर ख़ान मशहूर सरोद वादक हैं

बाबा की यादें या कहें तो मैहर का संगीत इतिहास आज किस्सों में ज़िंदा है. डॉक्टर कैलाश जैन का परिवार बाबा के क़रीब था.

वे कहते हैं जब उनकी सगाई हो रही थी तो बाबा को नहीं बुलाया गया था. लेकिन जब रात को सगाई में भैरवी गायी जा रही थी जो बाबा को सुनाई दी क्यों कि उनका घर नज़दीक ही था.

बाबा समारोह में पहुंचे और कहा यह इस समय का राग नहीं है. इस समय का राग मैं गा कर सुनाता हूं. और फिर उन्होंने दो घंटे गाया.

आज मैहर में बाबा अलाउद्दीन खां का घर उनकी सादा जीवन शैली और सर्वधर्म सरोकार का परिचय देता है. घर के दो नाम हैं-मदीना भवन और शांति कुटीर.

बाबा के कमरे में उनके वाद्यों के साथ दीवारों पर मढ़ी हैं उनके प्रसिद्ध शिष्यों की तस्वीरें. उनके बेटे और प्रख्यात सरोद वादक अली अकबर ख़ान और पंडित रविशंकर.

बाबा के शिष्यों की सूची तो यहाँ बस शुरु होती है, इसमें जुडते जाते हैं नाम, बांसुरी वादक पन्नालाल घोष, उनकी बेटी अन्नपूर्णा देवी जिन्होंने पंडित रविशंकर से शादी ही नहीं की बल्कि उन्हें सिखाया भी और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया.

बाबा अलाउद्दीन खां ने केवल इन महान संगीतकारों को ही नहीं संवारा बल्कि मैहर को संगीत की ऐसी परंपरा दी जो आज भी क़ायम है.

वाद्य वृंद

मैहर वाद्य वृंद अपनी तरह का अनूठा ऑर्केस्ट्रा है. इसकी स्थापना का भी क़िस्सा है. डॉक्टर कैलाश जैन बताते हैं कि 1918-19 में मैहर में प्लेग की महामारी फैलने से कई लोग मारे गए और कई बच्चे अनाथ हो गये.

बाबा ने इन बच्चों को अपने घर में इकट्ठा किया और उनके गुणों के अनुसार उन्हें किसी ना किसी वाद्य को बजाने की शिक्षा दी और इसी तरह अस्तित्व में आया मैहर वाद्य वृंद.

बाबा अलाउद्दीन खां ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत भी सीखा था और क्लेरनेट, वायलिन और चेलो जैसे पश्चिमी वाद्यों को अपने वाद्यवृंद में शामिल भी किया.

उन्होंने बंदूकों की नाल से एक अनूठे वाद्य नलतरंग का आविष्कार किया. हमने मैहर वाद्द वृंद के एक सदस्य जीपी पांडे से भी मुलाक़ात की और जानना चाहा क्या ख़ूबी है इस ऑर्केस्ट्रा की.

जीपी पांडे कहते हैं कि यह ऑर्केस्ट्रा आज भी बाबा की सैंकड़ों रचनाओं को ऐसे ही बजाता है जैसे बाबा के समय में बजाया जाता था.

यानी हर वाद्य से एक साथ एक ही सुर निकलता है और शायद यह एक मात्र ऐसा ऑर्केस्ट्रा है जिसमें वादक बिना नोटेशन या स्वरलिपि के बजाते हैं.

Friday, July 18, 2014

सफ़र लगती है

जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है
लम्हे-लम्हे में बसी है तिरी यादों की महक
आज की रात तो खुशबू का सफ़र लगती है


क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर

मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊंगा

शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त-दुश्मन हो गए


सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊंगा

Kumar Vishwas 

Thursday, May 1, 2014

हार्दिक शुभकामनाएं।

दीपावली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को मेरी  तरफ़ से हार्दिक शुभकामनाएं।
लक्ष्मी जी सदा आपके घर पर निवास करें और आप पर सुख समृद्दि की वर्षा हो।

इस दीपावली विशेष ध्यान दें:

* पटाखों का कम से कम प्रयोग करके, पर्यावरण को वायु प्रदुषण से बचाएं।
* बच्चों को अपनी उपस्थिति मे ही आतिशबाजी जलाने दें।
* आतिशबाजी जलाते समय पानी की बाल्टी पास मे रखें।
* आतिशबाजी जलाते समय सूती कपड़े पहने।
* अपनी जरुरत के मुताबिक ही सामान खरीदें, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बहकावे मे ना आएं।

सुख औ' समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, आते रहिए, पढते रहिए ......

Wednesday, April 2, 2014

शराबी युवा कैसे देंगे चीन और अमेरिका को टक्कर ?

आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,

आजकल के युवा, महाकवि हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला की इन पंक्तियों को मूर्त रूप देने में जुटे हुए हैं ये बात हम नहीं बल्कि एसोचैम द्वारा किए गए के सर्वे से साफ हुई है.

यूथ कल पर कुछ नहीं छोड़ना चाहता सब कुछ आज ही कर लेना चाहता है. मेट्रो शहरों के बारहवीं में पढ़ने वाले 45 पर्सेंट बच्चे महीने में कम से कम पांच से छह बार शराब पीते हैं. और तो और रहे पिछले 10 साल में टीनेजर्स के बीच शराब की खपत दोगुनी हो गई है.

टीनेजर्स में शराब का चलन सबसे ज्यादा दिल्ली और एनसीआर में है. इसके बाद मुंबई का नंबर है. एक स्टूडेंट साढ़े तीन से चार हजार रुपए शराब पर खर्च करता है. जबकि इतनी रकम वे सॉफ्ट ड्रिंक , चाय , दूध , जूस , कॉफी , मूवी टिकट और किताबों पर नहीं खर्च करते. 70 पर्सेंट टीनेजर्स फेयरवेल , न्यू ईयर , क्रिसमस , वैलंटाइन डे , बर्थडे और दूसरे अवसरों पर शराब पीते हैं। सर्वे के मुताबिक , एक तिहाई टीनेजर्स ने कॉलेज पहुंचने से पहले शराब पी ली थी , जबकि 16 पर्सेंट टीनेजर्स ने 15 साल से पहले ही हाला यानी शराब से दोस्ती कर ली थी.

ज्यादातर टीनेजर्स ने पहली बार शराब दोस्तों के साथ पी थी. इस मामले में लड़कियां भी पीछे नहीं हैं वो भी लड़कों को पूरी टक्कर दे रही हैं. लड़कियों में 40 पर्सेंट ने 15 साल से 17 साल की उम्र में पहली बार शराब पी थी. जिन लड़कियों को अल्कोहल का स्वाद पसंद नहीं , वे फ्रूट फ्लेवर्ड शराब पीती हैं.

आपने फीचर फिल्म कुली में आशा भोसले और शब्बीर कुमार को गाते हुए सुना होगा ….मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूं गम भूलाने को.. ये फ़िल्मी गाना है लेकिन आजकल की युवा पीड़ी इसे सच साबित करने में दिन रात जुटी हुई है मजेदार बात है ज्यादातर टीनेजर शराब को टेंशन खत्म करने के लिए पीते हैं.

पर सवाल यह है कि क्या शराब हकीकत में टेंशन दूर भगाती है? आखिर युवा पीढ़ी में इतना दबाव क्यों है जो वो ऐसे रास्ते खोज रही है? इसके लिए कौन से बदलाव जिम्मेदार हैं? क्या हम युवा पीढ़ी को चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं कर पाए हैं? अगर नहीं तो उसे इसके लिए कैसे तैयार किया जाए? क्या युवा पीढ़ी सही दिशा में बढ रही है? या उन्हें सही दिशा में लाने के प्रयास होने चाहिए.

ये वो सवाल हैं जिनका जवाब समय रहते खोजना ज़रूरी है नहीं तो समाज के मूलभूत ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है. जिस यूथ के दम पर हम अमेरिका और चीन जैसे शक्तिशाली देशों से टक्कर लेने का सुंदर सपना सजा रहे हैं अगर हमारा वही यूथ नशे में डूबा होगा तो हम उनसे कैसे मुकाबला करेंगे.

Wednesday, March 26, 2014

मेरी ताकत

मेरी चुप्पी भी आवाज बनती है
आज तुम जितना चाहो बोल लो
हमें हल्का समझने भूल ना कर
चाहो तो अपनी तराजू से तौल लो

राजनीति में महारत तुमको है
कुछ मानवता के पन्ने खोल लो
जात-पात और धर्म पर कब तक
कुछ नई परिभाषाएँ भी जोड़ लो

बहुत बोलते हो एक दूसरे के खिलाफ
भाई कुछ हमारे बारे में भी बोल लो
मेरे पास तो 'वोट' ही एक ताकत है
सत्ता के लिए तो अपना मुखौटा खोल लो..

 

केजरीवाल के वाराणसी दौरे पर

वोट बैंक से इस टिप्पणी का कोई सरोकार नहीं अतः अतिवादी टिप्पणियों का स्वागत नहीं है।**

विचारधाराओं को रक्त से सींचा जाता है। चाहे वो वामपंथ हो दक्षिण पंथ हो या फिर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का झूठा श्रेय लेने वाली कोई भी पार्टी। सबने खून से सींचा है अपनी जड़ों को। ये बात केजरीवाल नहीं जानते जो भारतीय राजनीति की सतह पर बुलबुले की तरह उभरे हैं। डंडा खाने पर बुरका पहन के भागने वाले और कैंडल मार्च की हास्यास्पद और नम्र राजनीति करने वाले लोगों को भी यह समझना चाहिए।

फिर भी आल द बेस्ट।

 

Monday, January 27, 2014

पर मुझे इन्तजार था, उसका |

रोजाना कि तरह, स्टेशन में खड़ा
घडी निहारता, भीड़ को देखता,
कुछ अनमना, कुछ बेचैन होता,
कभी अपनी हाथ कि घडी देखता,
फिर आने वालो से, समय पूछता
कभी पुराना अखबार, देखता, पढता
कभी बिस्कुट खाकर, समय काटता
हालत, एक सी, हर मुसाफिर की
सभी को इन्तजार था, ट्रैन का,
पर मुझे इन्तजार था, उसका |
                                              ढेर सारे सामान, का भार लिए
दौड़ते यात्री को, कुली कोसता
दो पत्र, पढ़कर, मैं कही खो जाता
एक प्यार और दूसरा शिकवा गिला
इसी सोच में, कौन बुरा कौन भला,
पुरानी यादो का, मन में भार लिए
हथेली की लकीरों, की धार लिए
सभी को इन्तजार था, ट्रैन का,
पर मुझे इन्तजार था, उसका |
जब भी बजती, आखिरी शीटी
धड़कने बढ़ जाती, मेरी जोर से
अहसास से कि ट्रैन आएगी
फिर कही, सफ़र अकेला न हो
मझदार में बैंठ, ढूढूं साहिल
पहुचने को अपनी मंजिल
सभी को इन्तजार था, ट्रैन का,
पर मुझे इन्तजार था, उसका |


Thursday, January 2, 2014

नई कहानी क्यूँ नहीं लिखते ?

पीछे दौड़ने को है, हजार खवाहिशे, हजार सपने
कुछ सपने पूरे नहीं होते, कुछ हो नहीं पाते
सब कुछ पाकर भी क्या करोगे ?
तुम अपनी जिंदगी में अपनी तरह क्यूँ नही रहते ?

महँगे मोबाइल,कार, फ्लैट,प्रॉपर्टी इक़ठठा करना
इन्क्रीमेंट, बोनस का हिसाब लगाते रहना
शेयरों के दाम की जाँच कब तक करोगे ?
जो इन सब से दूर ले जाए, वो नौकरी क्यूँ नहीं करते ?

ऐसे तो लाखों किताबें और हजारों फिल्में हैं दुनिया में,
लेकिन तुम्हारी अपनी जिंदगी क्या किसी फिल्म से कम है,
कभी थोड़ा वक़्त निकाल कर,
तुम अपनी कोई सच्ची कहानी क्यूँ नही कहते ?

फेसबुक में पोस्ट अपलोड करते हो
जिंदगी में हमेशा लोड लेकर रहते हो
सोमवार - वीकेंड के लिए बस 5 दिन और
ऐसे ऐसे चुटकले बार-बार कहते हो
हर साल वही पुरानी बाते, कहानिया है
           बची जिंदगी में नई कहानी क्यूँ नहीं लिखते ?