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Friday, May 20, 2011

स्वांग हावी होने पर अपना मूल स्वरूप भूल जाते हैं

स्वांग स्वरूप को लील जाता है। हम दोनों तरीके से जीते हैं। कभी-कभी स्वांग इतना हावी हो जाता है कि हम अपने मूल स्वरूप को ही भूल जाते हैं। इसे बोलचाल की भाषा में मुखौटा भी कहा गया है। रिश्तों के, कर्मकांड के मुखौटे ओढ़कर हमारे असली चेहरे खो गए।

औचित्य को अंगीकृत करने का विवेक गायब हो जाता है। स्वांग झूठ की तरफ जल्दी झुकता है। असली चेहरा सत्य के निकट होता है। जीवन में सत्य के दर्शन जहां से भी हो सकें, हमें उस स्थिति का चयन करना चाहिए। इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो अपना असली चेहरा पहचानने के लिए स्वांग से मुक्ति पाएं। देखिए कैसे-कैसे मुखौटे होते हैं। संसार दौड़ का नाम है, रुक जाओ तो मोक्ष मिल जाएगा। दौड़ स्वांग है मोक्ष असली चेहरा। लोभ, वासना, मन ये सब स्वांग की तरह काम करते हैं।

स्वांग हटाओ असली चेहरा सामने आएगा। जो लोग अपने ही असली स्वरूप की खोज में निकले हैं, उन्हें श्रीकृष्ण और अजरुन का गीता वाला संवाद हमेशा सुनते रहना चाहिए। अजरुन ने आरंभ में ही श्रीकृष्ण से यह प्रश्न पूछा था- क्या मैं ऐसा करूं? यदि ऐसा नहीं करूंगा तो क्या होगा? और यदि वैसा करूंगा तो ऐसा हो जाएगा। बहुत प्रकार के ‘करने’ को अजरुन ने व्यक्त किया था।

तब भगवान ने कहा था सबसे पहले तू एक काम कर और वह यह कि ‘करने’ की बात ही छोड़ दे। समझ ले करने वाला कोई और है। तू कुछ मत कर। जितना तू करेगा उतनी झंझट होगी, अकर्ता बन जा। हम भी समझ लें अकर्ता होना हमारा असली स्वरूप है और करना स्वांग है।


पं. विजयशंकर मेहता
दैनिक भास्कर में प्रकाशित 


जय श्री साईं राम 

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