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Friday, May 20, 2011

नाजुक सी लड़की


कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख्वाबों की बांहो मे पाकर, कभी नींद मे मुस्कराती तो होगी
उसी नींद मे कसमसा कसमसा कर, सिरहाने से तकिए गिराती तो होगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की….
वही ख्वाब दिन की मुंडेरो पे आके, उसे मन ही मन मे लुभाते तो होंगे
कई साज सीने की खामोशियों मे, मेरी याद से झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों मे, मेरी धुन मे कुछ गुनगुनाती तो हीगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की…..
चलो खत लिखें जी मे आता तो होगा, मगर अंगुलियां कपकपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा, उमंगे कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर, वो दाँतों मे अंगुली दबाती तो होगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की…..
जबान से कभी उफ़्फ़ निकलती तो होगी, बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कंही के कंही पाँव पड़ते तो होंगे, जमीन पर दुपट्टा लटकता होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी, कभी रात को दिन बताती तो होगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की…..
फिल्म : शंकर हुसैन (1977)
गायक : मोहम्मद रफी
संगीतकार : खैय्याम साहब

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