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Monday, May 30, 2011

गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है

गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |
ये तो सोच-सोच  कि बात है साहब ,हमको तो सारा जमाना  भी छोटा लगता है ||
मन करता है ऑफिस ना जाऊं, चुपचाप घर पे ही बैठा रहूं
लेकिन मन मोर, का दुविधा में रहना अच्छा लगता है   
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

जिसे मेरे जज्बातों कि क़द्र नहीं,उनके लिए क्यों अपनी जिंदगी नरक बनाऊ
बिना काम के भी मिलते है पैसे तो काम करके क्यों समय गवाऊ    
यही सोच कर मन उड़ने लगता है
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

इन्क्रीमेंट  कि हो बाते तो अच्छा लगता है ,ट्रान्सफर  के नाम से ही जी में धक्का लगता है 
यू तो करते है बड़ी- बड़ी बाते पर किसी का फेकना भी अच्छा लगता है 
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

डूबे गहराइयो  में वो भी और हम भी ,अभी शादी नहीं,ये सुनकर सभी को रूमानी लगता है 
आदर करते है है वो भी और हम भी ,पर उनका आदर करना बेमानी लगता है ,    
रोज सुबह सुबह हो जाती है कुछ बड़ी बड़ी बाते ,पर दिनभर facebook  पर अच्छा लगता है
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन,हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है !
अगर ख़िलाफ़ हैं, होने दो, जान  थोड़ी है,ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है !
ये सब DILOG भी पुराना लगता है ,
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

व्यस्त लगने की जगह व्यस्त बने और परिणाम हासिल करे
ये सब जुमला भी पुराना लगता है ,कभी छोटो के साथ भी  सिगरेट अच्छा लगता है   
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

कभी ये हो गया कभी वो हो गया 
मानों कोई भैस छोड़ ले गया , साला सब कुछ पचड़ा लगता है 
गर्मी के दिनों में कुछ अच्छा नहीं लगता है,ना जाने क्यों काम में मन नहीं लगता है |

विवेक अंजन श्रीवास्तव


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