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Friday, May 20, 2011

वो नज़रिया ना रहा



बस समंदर में समाने की सज़ा मुझको मिली
खो गया अस्तित्व मेरा, हुनर दरिया ना रहा
मैं वही; दर्पण जिसे तुमने कहा था एक दिन
अब तुम्हारे देखने का वो नज़रिया ना रहा


ज़िंदगी को अपनी शर्तों पे मैं क्या जीने चला
जी सकूंगा इस ज़माने में, भरोसा ना रहा
मैं सिकंदर-सा -यही तुमने कहा था एक दिन
अब तुम्हारे देखने का वो नज़रिया ना रहा


रोशनी कम होने न पाए तुम्हारी राह की
-बस इसी कोशिश में मेरे घर उजाला ना रहा
मैं वही; दीपक जिसे तुमने कहा था एक दिन
अब तुम्हारे देखने का वो नज़रिया ना रहा


मेरी आँखों में तुम्हारे ख़्वाब, तुम में मैं शुमार
जाने क्यों दरम्यां अपने वो सिलसिला ना रहा
मैं वही; धड़कन जिसे तुमने कहा था एक दिन
अब तुम्हारे देखने का वो नज़रिया ना रहा

साभार : कुलदीप आज़ाद

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