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Saturday, April 24, 2010

साइबर आतंक

हाल ही में कनाडा के शोधकर्ताओं के एक समूह ने साइबर वार पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया था कि कैसे चीन के खुफिया साइबर नेटवर्क ने क्रमबद्ध तरीके से भारत के शीर्ष सुरक्षा और प्रतिरक्षा दस्तावेजों में सेंध लगाई। खुलासे ने भारतीय खुफिया तंत्र को हिलाकर रख दिया। यह स्वीकार कर पाना कतई संभव नहीं है कि इन हैकरों के पीछे चीन की सरकार का कोई हाथ नहीं था। यह नहीं माना जा सकता कि भारतीय खुफिया तंत्र के नेटवर्क में सेंध लगाकर खुफिया जानकारी हासिल करने वाले हैकर निजी तौर पर इस कृत्य में संलिप्त थे। खुफिया तंत्र से चुराई गई रक्षा व प्रतिरक्षा जानकारी का इस्तेमाल चीन अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी भारत के खिलाफ कर सकता है।

भारतीय रक्षा व प्रतिरक्षा नेटवर्क में सेंध लगाने वाले चीन के ये हैकर अनियमित बल जनमुक्ति सेना (पीएलए) से संबद्ध हैं। युद्ध के दौरान इसके पीछे रहते हुए या इससे मिलने वाली जानकारियों के आधार पर पारंपरिक जनमुक्ति सेना भारतीय सेना से मोर्चा लेगी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नियमित पीएलए उस वक्त मोर्चा संभालेगी जब साइबर योद्धा अपने दुश्मन की रक्षा प्रणाली को बुरी तरह नुकसान पहुंचा चुके होंगे।

साइबर वार और सीमापारीय आतंकवाद विषम युद्ध के दो प्रमुख मोर्चे हैं। दोनों ही हमलों में हर देश ऐसे हमलावरों को शत्रु देश के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करता है जो अनियमित हों या सरकार से किसी भी तरह जुड़े हुए न हों। इस तरह के हथियारों को मदद करने वाले देश किसी देश पर होने वाले हमले में उनकी मिलीभगत से अनजान बनने का नाटक करते हैं। उदाहरण के लिए पाकिस्तान हमेशा कहता रहा है कि वह लश्कर-ए-तैयबा का भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करता है और चीन ने कहा कि भारतीय खुफिया विभाग की जानकारियां चुराने वाला चेंगदू स्थित साइबर रिंग उसका स्पाइंग आर्म नहीं है। दोनों ही मामलों में दुश्मन ने आड़ में रहकर युद्ध की विषम प्रकृति का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध किया। इंटरनेट युग में राष्ट्रीय सुरक्षा और संपन्नता को बनाए रखने के लिए साइबर स्पेस को सुरक्षित करना अहम हो गया है। इसमें इंटरनेट के जरिये वित्तीय प्रवाह और भारतीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज व आंकड़ों के साथ ही दूसरे गोपनीय दस्तावेजों को इधर-उधर करते समय अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है। साइबर क्राइम से निपटने के उपायों को प्राथमिकता के तौर पर लागू किया जाना भी जरूरी है।

चीन की ओर से साइबर आतंक में तेजी से बढ़ रहा है। हाल के वर्षो में भारत के नेशनल इन्फोटिक्स सेंटर सिस्टम्स और विदेश मंत्रालय साइबर हमलों के शिकार हो चुके हैं। पिछले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने खुद खुलासा किया था कि उनके कार्यालय के कंप्यूटरों को चीन ने हैक किया था। इस तरह के हमलों का उद्देश्य पड़ताल व जासूसी में उलझाकर रखने के साथ ही भारतीय सत्ता को आतंकित करना था। भारत के विशेष कार्यालयों के कंप्यूटरों में घुसकर चीन खुफिया जानकारियों को आसानी से चुरा कर रणनीतिक फायदा उठा रहा है। समय-समय पर भारतीय साइबरस्पेस में घुसपैठ कर चीन दस्तावेजों को खंगालकर युद्ध के दौरान भारतीय नेटवर्क क्षमताओं का आकलन कर सकता है। साथ ही यह भी आकलन कर सकता है कि विषम हालात में किस तरह से भारत को कमजोर किया जाए।

भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो चीन की साइबर घुसपैठ का शिकार है। जापान, ब्रिटेन और अमेरिकी अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उनके सरकारी और सेना नेटवर्क में चीन के हैकरों ने सेंध लगाई है। ठीक उस समय जब चीन का साइबर हमला पूरे विश्व पर हो रहा है अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि किसी भी एक देश के कंप्यूटर नेटवर्क पर किया गया हमला पूरे विश्व पर हमला माना जा सकता है। क्लिंटन के बयान से शीत युद्ध की बू आती है। कहा जा सकता है कि उनके इन्फार्मेशन कर्टेन का मतलब आयरन कर्टेन से ही था। बाजार की ताकत को इस्तेमाल करने की रणनीति और राजनीतिक प्रणाली के लिए इंटरनेट के खुले मंच की नीति अब काम नहीं कर पा रही है। निश्चित तौर पर चीन जैसे-जैसे आर्थिक मोर्चे पर मजबूत हो रहा है, साइबरस्पेस सेंसरशिप पर उसका नियंत्रण और भी बढ़ता जा रहा है। चीन ने हजारों की तादाद में साइबर पुलिस कर्मियों को लगाया है जो गैरजरूरी वेबसाइटों को बंद करने, मोबाइल फोन के इस्तेमाल की निगरानी और इंटरनेट को लगातार इस्तेमाल करने वालों को ढूंढ़ने का काम करते हैं। मगर भारत जैसे देशों पर होने वाले साइबर हमले इस बात पर कतई निर्भर नहीं हैं कि चीन घरेलू स्तर पर क्या कर रहा है। ये हमले यह जानते हुए हो रहे हैं कि इनसे मिलने वाली जानकारी का विभिन्न मोर्चो पर होने वाला इस्तेमाल अनमोल होगा। इसके जरिये विभिन्न मोर्चो पर साइबर घुसपैठ के जरिये सही समय पर दुश्मन राष्ट्र को कमजोर कर चीन बड़ा फायदा उठा सकता है।

कनाडाई शोधकर्ताओं ने पहले चीन के सर्विलांस सिस्टम घोस्टनेट का खुलासा किया था। घोस्टनेट दूसरे देशों के कंप्यूटर नेटवर्क की पड़ताल करने के बाद दस्तावेजों को चीन में मौजूद डिजिटल स्टोरेज फैसिलिटी को स्थानांतरित कर सकता है। इन्हीं शोधकर्ताओं की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर होने वाले साइबर हमले चेंगदू से किए गए थे। चेंगदू मे पीएलए के सिग्नल इंटेलीजेंस ब्यूरो का मुख्यालय है।

हले ही आतंकवाद ने लंबे समय से भारत को परेशान किया हुआ है। ऐसे में चीन की ओर से होने वाले इस नए हमले को कतई बरदास्त नहीं किया जाना चाहिए। चीन तकरीबन पिछले पांच साल से भारत पर साइबर हमले कर रहा है। एक साथ दो मोर्चो पर लड़ना भारत के लिए बहुत महंगा पड़ सकता है। भारत को कनाडा से जारी हुई रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए अपनी कमजोरियों को खत्म करना चाहिए और समय रहते सही जवाबी कार्रवाई के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। साथ ही दुश्मन के खेमे में घुसकर लड़ने की अपनी क्षमता का विकास करना चाहिए। कई बार आक्रामक होना रक्षात्मक होने से बेहतर साबित होता है।

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