अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
जिन दरख़्तों पर कोई पत्ता हरा मिलता नहीं चहचहाते पंछियों का घोंसला मिलता नहीं । दर्द और ख़ुश्बू का नाता ज़िंदगी का मर्म है जिसने कांटों को न समझा, कुछ मज़ा मिलता नहीं । आदमी को दर्द से जो दूर ले जाए कहीं आदमी को उम्रभर वो काफ़िला मिलता नहीं ।
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