Wednesday, April 14, 2010

काफ़िला



जिन दरख़्तों पर कोई पत्ता हरा मिलता नहीं
चहचहाते पंछियों का घोंसला मिलता नहीं

दर्द और ख़ुश्बू का नाता ज़िंदगी का मर्म है
जिसने कांटों को समझा, कुछ मज़ा मिलता नहीं

आदमी को दर्द से जो दूर ले जाए कहीं
आदमी को उम्रभर वो काफ़िला मिलता नहीं

 

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