सब को अपना हाल सुनाना, ठीक नहीं
औरों के यूँ दर्द जगाना, ठीक नहीं
हम आँखों की भाषा भी पढ़ लेते हैं
हमको बच्चों सा फुसलाना, ठीक नहीं
ये चिंगारी दावानल बन सकती है
गर्म हवा में इसे उडाना, ठीक नहीं
बातों से जो मसले हल हो सकते हैं
उनके कारण बम बरसाना, ठीक नहीं
बच्चों को अपना बचपन तो जीने दो
यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना, ठीक नहीं
ज़िद पर अड़ने वालों को छोडो यारो
दीवारों से सर टकराना, ठीक नहीं
देने वाला घर बैठे भी देता है
दर दर हाथों को फैलाना, ठीक नहीं
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