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Friday, December 31, 2010

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

नये साल की शुभकामनाएँ!

खेतों की मेड़ों पर धूल-भरे पाँव को,

कुहरे में लिपटे उस छोटे-से गाँव को,

नए साल की शुभकामनाएँ!

 

जाते के गीतों को, बैलों की चाल को,

करघे को, कोल्हू को, मछुओं के जाल को,

नए साल की शुभकामनाएँ!

 

इस पकती रोटी को, बच्चों के शोर को,

चौंके की गुनगुन को, चूल्हे की भोर को,

नए साल की शुभकामनाएँ!

 

वीराने जंगल को, तारों को, रात को,

ठण्डी दो बन्दूकों में घर की बात को,

नए साल की शुभकामनाएँ!

 

इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को,

सिगरेट की लाशों पर फूलों-से ख्याल को,

नए साल की शुभकामनाएँ!

 

                                 रचना : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

 

नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ नए वर्ष की नई दिशा हो, नई कामना, नई आस हो, नई भावना, नई सोच हो,

आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!!


Friday, November 19, 2010

A person in power and responsibility

A person in power and responsibility must use his influence to enrich the lives of those who are the most deserving.
 Nepotism and favoritism should be avoided because they are antithesis to a life of morality.
 Man in power has to be sensitive enough to hear the subtle voice of conscience.
 The indication of his conscience should guide his way of life.
 He must be Idealistic and must have all conscious considerations before implementing a decision.
 Power comes with enormous responsibilities. A person who discharges his responsibilities in conformity with moral principles
becomes an invincible life force for the humanity. The life of Mahatma Gandhi is a beacon light to such high standards of human existence.
What does our political leaders and bureaucrats do? Don't their hearts bleed at the sight of the poverty and wretchedness of life?
 Why do they turn a deaf ear when the deprived mass cry with empty stomach and heart full of grievances? Is it not their moral responsibility
to endeavor honestly to sort out the problems of the common mass who have reposed their faith on the legislature and bureaucracy?
The irony is that a person in power often goes into a deep slumber in his air-conditioned cosy chamber.
And the high hopes of the deprived mass dash to the grounds.

Monday, November 15, 2010

स्वाभिमानी बालक

किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।

उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।

उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।

उस लड़के का नाम था 'लालबहादुर शास्त्री'।

 

 

Thursday, November 11, 2010

छठ पूजा आज से शुरू

 मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाके में आयोजित की जाने वाली चार दिवसीय छठ पूजा आज शुरू हो गई। पूजा के पहले दिन गुरुवार को छठव्रती 'नहा-खा' करते हैं। इसके तहत व्रतधारी स्नान करने के बाद पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। दूसरे दिन व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे 'खरना' कहा जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। 'खरना' के बाद व्रतधारी अगले दिन शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य और उसके अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य देते हैं। उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ ही पवित्र छठ पूजा संपन्न हो जाती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं और वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। छठ पर्व मूलत: सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं की सूची में सूर्य ही एक मात्र देवता है जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। बाकी सभी देवताओं को कल्पना के आधार पर आकार दिया गया है। व्रतधारियों के मुताबिक छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की सकुशलता के लिए महिलाएं सामान्य तौर पर यह व्रत रखती हैं। वैसे तो छठ का व्रत पुरुष भी पूरे मनोभाव से रखते हैं। इस बारे में राजधानी दिल्ली के मंडावली इलाके में रहने वाली एक छठ व्रतधारी सुनीता सिंह कहती हैं कि वह अपने बेटे की सकुशलता के लिए छठ का व्रत करती हैं। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की और इसके बाद से यह पर्व आज तक मनाया जा रहा है। वैसे कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा सूर्य की पूजा करने की बात भी उल्लिखित है। बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक के मुताबिक राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुई थी। अखिल भारतीय विद्वत परिषद के मगध प्रमंडल के अध्यक्ष आचार्य लालभूषण मिश्र ने बताया कि छठ व्रत के दौरान हम सूर्य की आराधना करते है। उन्होंने बताया कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। वास्तव में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।


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आस्था का महा पर्व छठ आज से .

वर्ष भर इंतजार के बाद छठ पूजा का पर्व बुधवार (आज) से शुरू हो रहा है। श्रद्धालु और व्रती छठ मैया को मनाने में जुट जाएंगे। चार दिन तक पर्व चलेगा। मुख्य रूप से यह भोजपुर क्षेत्र का त्योहार माना जाता है, लेकिन धीरे-धीरे पूरे देश के साथ विदेशों में भी यह पर्व मनाया जाने लगा है।
 
बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पूरे भक्तिमय वातावरण में सूर्य की उपासना का पर्व छठ मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत द्वापर काल से होने का उल्लेख है।

छठ पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है। प्राचीन काल में इसे बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था। लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहाँ भी रहते हैं वहाँ इस पर्व को उसी श्रद्धा और भक्ति से मनाते हैं।

छठ का पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसे छठ से दो दिन पहले चौथ के दिन शुरू करते हैं जिसमें दो दिन तक व्रत रखा जाता है। इस पर्व की विशेषता है कि इसे घर का कोई भी सदस्य रख सकता है तथा इसे किसी मन्दिर या धार्मिक स्थान में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजा-स्थल) व प्राकृतिक जल राशि के समक्ष मनाया जाता है। तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के लिए महिलाएँ कई दिनों से तैयारी करती हैं इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं जहाँ पूजा स्थल होता है वहाँ नहा धो कर ही जाते हैं यही नही तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं।

पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ावे के लिए सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर (गवद), इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ ( बिहार में इसे खजूर कहते हैं। यह बाजरे के आटे और गुड़ व तिल से बने हुए पुए जैसा होता है), नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल, इस पर चढ़ाने के लिए लाल/ पीले रंग का कपड़ा, एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि। पहले दिन महिलाएँ अपने बाल धो कर चावल, लौकी और चने की दाल का भोजन करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करती हैं।

छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत ( उपवास) रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की बखीर बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिट्टी के बर्तन) में बखीर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में प्रसाद के रूप में बखीर का ही भोजन किया जाता है व सगे संबंधियों में इसे बाँटा जाता है।

तीसरे यानी छठ के दिन 24 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है, सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है और पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी, जिसे दौरी कहते हैं,  में पूजा का सभी सामान डाल कर देवकरी में रख दिया जाता है। देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक छत्र बनाकर और उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक, तथा मिट्टी के हाथी बना कर रखे जाते हैं और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है। वहाँ पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल कपड़े में लिपटा हुआ नारियल,  पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरूष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी, समुद्र या पोखर पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो जाए इसलिए इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं। पुरूष, महिलाएँ, बच्चों की टोली एक सैलाब की तरह दिन ढलने से पहले नदी के किनारे सोहर गाते हुए जाते हैं :-
काचि ही बांस कै बहिंगी लचकत जाय
भरिहवा जै होउं कवनरम, भार घाटे पहुँचाय
बाटै जै पूछेले बटोहिया ई भार केकरै घरै जाय
आँख तोरे फूटै रे बटोहिया जंगरा लागै तोरे घूम
छठ मईया बड़ी पुण्यात्मा ई भार छठी घाटे जाय


नदी किनारे जा कर नदी से मिट्टी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं। उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव की पूजा के लिए सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्घ्य देते हैं और पाँच बार परिक्रमा करते हैं। सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुए घर आ जाते हैं और देवकरी में रख देते हैं। रात को पूजा करते हैं। कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्धालु अलस्सुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं। पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिट्टी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है।

सूर्य देव की प्रतीक्षा में महिलाएँ हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करती हैं। जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलाएँ अर्घ्य देना शुरू कर देती हैं। शाम को पानी से अर्घ देते हैं लेकिन सुबह दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुए पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं। घर पहुँच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलाएँ प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है।

छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोशी भरी जाती है इसके लिए छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जिस पर छ: दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है। कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है।
रात छठिया मईया गवनै अईली
आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली
बिलम्बली - बिलम्बली कवन राम के अंगना
जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा
उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां

छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के हर कोने में किया जाता है दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई चेन्न्ई जैसे महानगरों में भी समुद्र किनारे जन सैलाब दिखाई देता है पिछले कई वर्षों से प्रशासन को इसके आयोजन के लिए विशेष प्रबंध करने पड़ते हैं। इस पर्व की महत्ता इतनी है कि अगर घर का कोई सदस्य बाहर है तो इस दिन घर पहुँचने का पूरा प्रयास करता है। मात्र दिल्ली से इस वर्ष 6 लाख लोग छठ के अवसर पर बिहार की तरफ गए। देश के साथ-साथ अब विदेशों में रहने वाले लोग अपने -अपने स्थान पर इस पर्व को धूम धाम से मनाते हैं। पटना में इस बार कई लोगों ने नए प्रयोग किए जिसमें अपने छत पर छोटे स्वीमिंग पूल में खड़े हो कर यह पूजा की। उनका कहना था कि गंगा घाट पर इतनी भीड़ होती है कि आने जाने में कठिनाई होती है और सुचिता का पूरा ध्यान नहीं रखा जा सकता। लोगों का मानना है कि अपने घर में सफाई का ध्यान रख कर इस पर्व को बेहतर तरीके से मनाया जा सकता है। छठ माता का एक लोकप्रिय गीत है--

केरवा जे फरेला गवद से ओह पर सुगा मंडराय
उ जे खबरी जनइबो अदिक से सुगा देले जुठियाए
उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझाय
उ जे सुगनी जे रोवे ले योग से आदित होइ ना सहाय

 
 

कहते हैं कि लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं लेकिन यह ऐसा अनोखा पर्व है, जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की अराधना से होती है। इस साल हालांकि महंगाई के जोर पकड़ने के बावजूद लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। जानी मानी भोजपुरी लोक गायिका प्रो. शारदा सिन्हा छठ की महिमा एवं महंगाई को गीतों के माध्यम से व्यक्त करते हुए कहती हैं, 'नाही छोड़ब हो भइया छठिया बरतिया, लेले अइहा हो भइया छठ के मोटरिया। अबकी त बहिनी महंग भइल गेहूंआ..छोड़ी देहु ए बहिनी छठ के बरतिया।'

श्रीमती सिन्हा ने कहा कि भक्ति एवं शुद्धता को विशेष रूप से महत्व देने वाले छठ पर्व के प्रारंभ का उल्लेख द्वापर काल में मिलता है। कहा जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण सूर्य के बड़े उपासक थे और वह नदी के जल में खड़े होकर भगवान सूर्य की पूजा करते थे। पूजा के पश्चात कर्ण किसी याचक को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। उन्होंने कहा कि छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय-खाय से शुरू हो जाती है जब छठव्रती स्नान एवं पूजा पाठ के बाद शुद्ध अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं।

इस वर्ष छठ पर्व में संध्या अ‌र्घ्य 12 नवंबर को और प्रात: काल का अ‌र्ध्य 13 नवंबर को है। बीते कल यानी बुधवार को नहाय खाय के तौर पर व्रतियों के साथ-साथ आम श्रद्धालुओं व लोगों ने छठ पूजा की विधिवत शुरुआत की। बृहस्पतिवार को खरना के तौर पर पूजा की जाएगी। व्रतियों के लिए आज से ही व्रत करने की शुरुआत होगी।

पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखकर व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत। महापर्व के तीसरे दिन शाम को व्रती डूबते सूर्य की अराधना करते हैं जब व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देते हैं। पूजा के चौथे दिन व्रतधारी उदयीमान सूर्य को दूसरा अ‌र्घ्य समर्पित करते हैं। इसके पश्चात 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है और व्रती अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस अ‌र्ध्य में फल, नारियल के अतिरिक्त ठेकुआ का काफी महत्व होता है।

नहाय-खाय की तैयारी के दौरान महिलाओं के एक ओर जहां गेहूं धोने और सुखाने में व्यस्त देखा जा सकता है वहीं महिलाओं के एक हुजूम को बाजारों में चूड़ी, लहठी, अलता और अन्य सुहाग की वस्तुएं खरीदते देखा जा सकता है। बिहार के औरंगाबाद जिले के पौराणिक देव स्थल में लोकपर्व कार्तिक छठ पर्व पर चार दिवसीय छठ मेले की भी शुरुआत हो गई। यहां त्रेतायुग में स्थापित प्रचीन सूर्य मंदिर में वृदह सूर्य मेले का आयोजन किया जाता है।




Tuesday, November 9, 2010

दबंग करते है

काम सब गैर- जरुरी  है जो सब करते है
और हम कुछ नही करते है
, गजब करते है
हम पे हाकिम का कोई हुकम नही चलता है
क्यों की हम कलंदर है
हम वही करते है जो दबंग करते है 

Thursday, November 4, 2010

नवंबर महीने में जन्म

आपका जन्म किसी भी साल के नवंबर महीने में हुआ है तो एस्ट्रोलॉजी कहती है कि आप इस दुनिया में सबकी भलाई करने के लिए जन्मे हैं। आप अत्यंत दयालु और परोपकारी हैं। सहनशक्ति के हिसाब से भी आप कमाल के बंदे हैं। जब तक आपका स्वाभिमान हर्ट ना हो जाए तब तक हर छोटी-बड़ी बात आप सिर से गुजर जाने देते हैं।

आप सबके बीच सामंजस्य बैठाने का काम बखूबी निभाते हैं। अक्सर दोस्तों के पैचअप करवाने की जिम्मेदारी आपकी होती है। यूँ तो दुनिया आपको बड़े ही शांत और सौम्य रूप में जानती है लेकिन जिसने आपका गुस्सा देखा है वही जानता है कि आपके भीतर कितना तूफान भरा है। इसकी वजह से आप कम उम्र में ही ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी का शिकार हो सकते हैं।

आप दोस्तों के लिए कुछ करें या ना करें दोस्त आप पर जान लुटाने के लिए तैयार खड़े रहते हैं क्योंकि आपके भोलेपन के वे कायल होते हैं। आपकी तरक्की से जलने वालों के लिए चेतावनी है कि नवंबर वालों के दुश्मन सीधे मुँह की खाते हैं अत: सावधान। नवंबर माह में जन्में युवाओं में प्यार का अथाह सागर होता है। ‍जिसे प्यार करेंगे वह अगर ना मिल पाए तो भी उसे भूल नहीं पाएँगे। और जो अगर प्यार मिल जाए तो उसकी खुशी के लिए खुद को मिटाकर भी तृप्त नहीं होते। फिर वही बात कि अत्याधिक दयालु जो होते हैं।

कुछ युवा जो नवंबर में जन्मे हैं और जिनकी राशि वृश्चिक या मेष है उन पर कंजूस होने का आरोप लग सकता है अन्यथा सामान्यत: नवंबर के युवा दिल के इतने उदार होते हैं कि सामने वाले के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए खुद की जेब खाली करके भी खुश रहते हैं।

पैसा इनके पास जितना भी आए, सेविंग के तरीके खोज ही लेते हैं। पूरी तरह से खाली ये कभी नहीं होते। इनके किसी ना किसी पर्स या पेंट की जेब से पैसे निकल ही आएँगे। थोड़ी व्यग्रता पर कंट्रोल कर ले तो इनके जैसा करीने से रहने वाला मिलना मुश्किल है। हर काम सुव्यवस्थित और साफ-सुथरा। इनके बचपन से लेकर अबतक के छोटे से छोटे डॉक्यूमेंट भी किसी फाइल में सुरक्षित रखे मिल जाएँगे। यहाँ हम आपको थोड़ा सा सनकी कह सकते हैं। कुछ-कुछ कन्फ्यूज्ड और कुछ-कुछ क्रिएटिव।

अतीत से इन्हें गहरा लगाव होता है। अपनी हर पहली बात या पहली चीज अपनी स्मृति में संजोकर रखते है। अक्सर इस माह में जन्मे लोग संवेदनशील लेखक, पुलिस, पत्रकार, कलाकार, सर्जन या गुप्तचर विभाग में होते हैं। मन इनका बच्चों की तरह होता है इसीलिए बच्चों से इन्हें बेहद प्यार होता है।

इनका इंटि्यूशन पॉवर तो माशाअल्लाह होता है। किसी बात का पूर्वाभास होना या सूरत देखकर आदमी की फितरत पहचानना इनके लिए आसान होता है। आकर्षक मुखाकृति और मासूमियत के कारण नौकरी हो या घर, प्यार हो या दोस्ती, इनके सौ गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। अपने बालों का इन्हें विशेष ख्याल रखना चाहिए वरना गंजे हो सकते हैं। बड़ी-बड़ी हाँकने की प्रवृत्ति से भी थोड़ा बचें तो सही वक्त पर सही जीवनसाथी मिल जाएगा।

नवंबर माह की लड़कियाँ भावुक दिखतीं है पर होती प्रेक्टिकल हैं। चोट खाने पर खुद को समय पर संभाल लेती है।

यही वजह है कि अपने दुख के लिए कभी दूसरों का कंधा इस्तेमाल नहीं करती। बेमिसाल सहनशक्ति के कारण जीवन की हर जंग जीत लेती है। अभिव्यक्ति थोड़ी सी कमजोर होती है इसलिए उम्मीद करती है कि इनके आसपास के लोग इनकी बात स्वयं समझ लें। लोग जब इन्हें समझ नहीं पाते हैं तो ये झल्ला पड़ती हैं।

नवंबर माह वालों के लिए सलाह है कि वे अपनी कम्युनिकेशन स्किल सुधारें क्योंकि इसकी वजह से अक्सर लोग आपको गलत समझ लेते हैं। अपने सौम्य स्वरूप का गलत फायदा ना उठाएँ बल्कि सच्चाई और ईमानदारी आपकी ताकत है उसका इस्तेमाल करें।
कल्पना लोक से बाहर आएँ जिंदगी के कई रंग बस आप ही के लिए खिले हैं आप को उन्हें समय पर पहचानना है। हमारी शुभकामनाएँ।

लकी नंबर : 3, 1, 7
लकी कलर : ‍पिंक, सफेद और चॉकलेटी
लकी डे : गुरुवार और मंगलवार
लकी स्टोन : पर्ल और मून स्टोन
सुझाव : तेल में अपना चेहरा देखकर मंदिर में दान करें रूकावटें दूर होंगी।

तुम बिन सब अधूरा होगा

फिर वो ही चाँद होगा


वो ही सितारों का कारवां होगा

फिर वो ही बहारें होगी

वो ही फूलों का नजारा होगा

सब कुछ होगा मगर फिर भी

तुम बिन सब अधूरा होगा



फिर वो ही गाँव और चौबारा होगा

वो ही पनघट का नजारा होगा

फिर वो ही आपस में बतियाती सहेलीयां होगी

वो खिलखिलाहट और मुस्कानें होगी

सब कुछ होगा मगर फिर भी

एक चेहरा वहाँ नहीं होगा



फिर वो ही पीपल की छाँव होगी

वो ही इंतज़ार होगा

फिर वो ही दोपहर की धूप होगी

वो ही तेरी यादें होगी

सब कुछ होगा मगर फिर भी

जब तू नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा



फिर वो ही डायरी होगी

वो ही तेरा नाम होगा

मगर हाथ ना अब उठेंगे

आँखों से अश्कों का इक नया रिश्ता होगा

डूबते दिल को तेरी यादों का सहारा होगा



फिर वो ही महफिले होगी

वो ही ग़ज़लों का सफ़र होगा

फिर वो ही शमा होगी

मगर इक आवाज ना होगी , जब

अंजन  उस महफ़िल में ना होगा

सफल कौन है?

सफल कौन है? वह सामाजिक कार्यकर्ता जो गांव के बच्चों को शिक्षा देने का लक्ष्य पा लेता है या वह व्यक्ति जो लाखों-करोड़ों का बिजनेस और ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा हो, वह क्लर्क जो अपने लिए घर बनाकर और बच्चों की शादियां कर सारे कामों से निवृत्त हो चुका है या वह विद्यार्थी जिसने आईएएस की परीक्षा पास की है या फिर वह खिलाड़ी या बिजनेसमैन जो एक सफलता के बाद भी दूसरी सफलता के लिए बेचैन रहता है।

इस प्रश्न का उत्तर आपको अलग-अलग ही मिलेगा, जैसे कि कोई, कार्यकर्ता को, तो कोई बिजनेसमैन, तो कोई क्लर्क या विद्यार्थी को सफल मानेगा। किसी के लिए एक ही सफलता काफी है, तो दूसरे के लिए एक सफलता के बाद दूसरी सफलता और फिर तीसरी, चौथी..।

तो फिर पूर्ण सफलता क्या है? इस शब्द को मनोवैज्ञानिक, व्यवहार वैज्ञानिक, दार्शनिक, धर्म, समाज वैज्ञानिक, मानवशास्त्री, प्रेरक गुरु सभी अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हैं। समाज विज्ञान इसे सिर्फ बोध की स्थिति बताता है। समाज वैज्ञानिकों के अनुसार सफलता का सोच है, एक अवधारणा जो उसे महसूस करने वाले पर निर्भर करती है।

सफलता वह स्थिति है जहां व्यक्ति स्वयं को देखना चाहता है। किसी के लिए नई बढ़िया कार, विदेश में छुट्टियां मनाना, नया घर, नई नौकरी सफलता के दायरे में आती है। अगर उसके पास ये सारी चीजें नहीं होतीं तो वह उन्हें पाने के लिए संसाधनों और अवसरों की तलाश में जुट जाता है। कुछ लोगों को बहुत ज्यादा पैसे, कमाई, स्वतंत्रता, ऐश्वर्य जैसी चीजों की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे लोग जीवन में मिली छोटी-छोटी चीजों से सफलता का अनुभव करते हैं।

मनोवैज्ञानिक डा. निक एरिजा कहते हैं, "किसी चीज को पाना आंतरिक स्थिति है न कि बाहरी। यह सच है कि बाहरी चीजें आंतरिक स्थिति को प्रेरणा देती हैं, लेकिन अंतत: जो सफलता अंतर्मन में महसूस होती है, वही सबसे महत्वपूर्ण है।" कुछ लोग सफलता और धन को एक मान लेते हैं।

अर्थशास्त्री जॉन मार्क्‍स रुपयों के बल पर हर ख्वाहिश पूरी कर लेने की ताकत रखने वाले को सफल मानते हैं। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में कहा है कि सामान्य के बीच अपनी योग्यता को साबित करना ही सफलता है। वहीं दुनियाभर के साधु-महात्माओं ने उन व्यक्तियों को सफल माना है जो सांसारिक चीजों से ऊपर उठकर सोचते हैं। भारतीय विद्वानों के अनुसार सफल वहीं है, जिसने अपनी इच्छाओं पर काबू पा लिया है। समाज विज्ञानी इसे तुलनात्मक स्थिति मानते हैं।

समाज वैज्ञानिक केविन मेक्कैली का कहना है कि सफलता एक अमूर्त विषय हैं। इसे मापने के लिए कोई तराजू उपलब्ध नहीं है। फिर भी लोग इसे नापते हैं। सफलता को नापने का मीटर उनकी संस्कृति व आर्थिक स्थिति होती है। इन्हीं तत्वों को आधार मानकर वे अपनी तुलना दूसरे व्यक्ति से करते हैं और अपनी सफलता या असफलता का निर्धारण करते हैं।

व्यवहार विज्ञानी गेरी रेयान सफलता का अर्थ समझने के लिए सबसे पहले मनुष्य की प्रकृति को समझने की बात करते हैं। उनके अनुसार हर मनुष्य को सोचने, समझने, समीक्षा व प्रतिक्रिया करने का तरीका अलग-अलग होता है। इसमें शरीर के तीनों भाग - शरीर, आत्मा एवं प्रवृत्ति काम करते हैं। यही उन्हें सफलता का आभास भी दिलाते हैं।

सफलता का रहस्य मनुष्य की सोच और सफलता को देखने की क्षमता में छिपा है। अमेरिकी मनोविज्ञान के पिता विलियम जेम्स कहते हैं - "हम जो सोचते हैं, उसे हासिल कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर भावनाओं की ऐसी अंतहीन शक्ति है, जो उसे किसी भी समस्या से लड़ने में मदद करती है। वह अपनी सारी कमजोरियों से बाहर आ सकता है। आर्थिक निर्भरता प्राप्त कर सकता है। आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हो सकता है। हर चीज जिसका संबंध सफलता से है वह हासिल कर सकता है। यह सफलता का स्रोत हर व्यक्ति में उपलब्ध है, जिसे वे सफलता कंपास से समझाते हैं।"

जेम्स के मुताबिक यह कंपास प्राकृतिक रूप से आपके अंदर उपलब्ध होता है, और हमेशा सही दिशा दिखने का काम करता है। यह कंपास भौगोलिक दिशा दिखाने की जगह सफलता का मार्ग बताता है। कोई भी व्यक्ति इसके जरिए यह जान सकता है कि उसके पास सफल होने के लिए कितनी क्षमता है। एक तरह से यह सफलता की आधारशिला भी तैयार करता है। सफलता का मार्ग दिखाने में इसका उपयोग सबसे अधिक तब किया जा सकता है जब आप सफलता और असफलता की धुंध में खो जाएं। यह दिमाग को विकल्प खोजने में मदद करता है। अब्राहम लिंकन ने एक बार कहा था - 'सफल लोगों का प्रतिशत तब बढ़ सकता है जब वे अपने दिमाग को उस काम के लिए तैयार कर लें।'

आस्ट्रेलिया के मनोवैज्ञानिक एलन रिचर्डसन द्वारा बास्केटबॉल खिलाड़ियों पर किया गया प्रयोग भी इस बात का समर्थन करता है, जिसमें उन्होंने खिलाड़ियों को तीन समूहों अ, ब, स में बांट दिया। समूह 'अ' को उन्होंने प्रतिदिन 20 मिनट तक फ्री थो का अभ्यास करने का अवसर दिया। समूह 'ब' को उन्होंने अभ्यास न करने की सलाह दी और 'स' को रोज 20 मिनट तक मानसिक रूप से अभ्यास करने को कहा। शोध के अंद में पाया गया कि 'अ' समूह के खिलाड़ियों की फ्री थ्रो क्षमता में 25 प्रतिशत तक का सुधार आया। आशा के अनुरूप समूह 'ब' के लोगों में कोई सुधार नहीं था। लेकिन समूह 'स' के लोगों में 24 प्रतिशत तक सुधार पाया गया जो 'अ' समूह के बराबर था, जबकि वे बास्केटबॉल कोर्ट में गए ही नहीं। यह प्रयोग साबित करता है कि हमारा दिमाग कठिन से कठिन लक्ष्य को भी पूरा कर सकता है। बस आप हर दम तैयार रहें।साभार :सहारा समय

लेखक फिल कोविंगटन इस बात को और पुख्ता करते हैं। उनके अनुसार हमारे अंदर सफलता की दो अवस्थाएं होती हैं, पहली यह हमाने निर्णय पर आधारित होती है, जिसमें हम यह सोचते हैं कि सफलता हमारे लिए क्या है? और दूसरा वह बोध जिसमें हम जानते हैं कि इसके लिए हम क्या अच्छा कर सकते हैं? इसका मतलब यह हुआ कि वास्तविक सफलता का साधन आंतरिक व मानसिक स्थिति है। लेकिन तंत्रिका विज्ञान और व्यवहार विज्ञान इसे मानसिक स्थिति न कहकर भावनात्मक स्थिति कहता है।

सफलता के गुर बताने वाले ज्यादातर परामर्शदाता इस बात पर जोर देते हैं कि 'भावनात्मक समझ' सफलता व जीवन में खुशियों की बेहतर भविष्यवक्ता होती है। यह तार्किक समझ से ज्यादा सटीक होती है। विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि आकर्षण ही सफलता हासिल करने के लिए प्रेरित करता है, जिसकी वजह से आपको बा' चीजों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं रहना पड़ता।

तंत्रिका विज्ञान और व्यवहार विज्ञान ने बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है कि जब हम किसी चीज से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं - तब अपने दिमाग के तंत्रिका तंत्र को शारीरिक रूप से उस चीज के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित कर देते हैं। इस न्यूरोबायोलॉजिकल खोज को पारलौकिक लेखक सदियों से 'आकर्षण का कानून' कहते रहे हैं। इस प्राचीन कानून को यदि आधुनिक विज्ञान की भाषा में कहें तो इसका मतलब हुआ हम उसी चीज के प्रति आकर्षित होते हैं, जिस पर हम भावनाओं को जानबूझकर केंद्रित करते हैं।

ऐसा करते समय हम उस चीज पर सीधे ध्यान केंद्रित करने के लिए दिमाग के तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं। इस तरह दिमाग सपनों को पूरा करने की मशीन बन जाता है। ऐसे कई लोग हैं जो कॉलेज या स्कूल की पढ़ाई के दौरान बहुत मेधावी छात्र रहे, लेकिन वे जीवन में सफल नहीं कहलाए। ऐसे व्यक्ति जीवन स्तर को उठाने वाली चीजों से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाते। उनमें किसी चीज को पाने की भावनात्मक वचनबद्धता की कमी रहती है।

वहीं कमजोर या सामान्य बुद्धि के छात्र बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं, या बड़े व्यापारी बन जाते हैं। सफल और खुशहाल जीवन जीने के लिए उन्हें जोश की भावना कुछ पाने के लिए सीधे प्रेरित करती है। हम इसे कुछ इस तरह भी समझ सकते हैं कि गरीबी से दूर भागने या आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा काम कर सकता है। अरस्तू के शब्दों में कहें तो आवेग से प्रेरित लोग कहीं ज्यादा साहसी, उत्साह और आशा से भरे हुए होते हैं। शुरुआत में आवेग उन्हें डरने से रोकता है, जबकि बाद में उन्हें आत्मविश्वास के साथ प्रेरित करता है।

मनोवैज्ञानिक जॉजन गार्टनर इसका संबंध आनुवांशिक गुण से बताते हैं। उनका कहना है कि सफलता प्राप्त करने का गुण आनुवांशिक होता है। व्यक्ति में पहले सफलता प्राप्त करने का गुण मौजूद रहता है, जो इसे माता-पिता से मिलता है। लैलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के संस्थापक शेफस्काई इस विचार को सिरे से खारिज करते हैं। वह कहते हैं, 'सफल व्यक्ति का इतिहास इस बात का गवाह है कि सफलता वंशानुगत नहीं होती व जीन, आयु, रंग इत्यादि पर निर्भर न करके व्यक्ति प्रयासों पर निर्भर करती है।'

अनगिनत अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि लोगों का उत्तराधिकार, अचानक लॉटरी या और किसी तरह से मिलने वाला पैसा कुछ सालों में खत्म हो जाता है और उन्हें अपनी शुरुआत शून्य से करनी होती है।

शेफस्काई की बात वजनदार लगती है। अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी और धीरूभाई अंबानी जैसी अनगिनत हस्तियां हैं, जहां इस वंशानुगत गुण का उनकी सफलता से कोई वास्ता नहीं है।

समाजविज्ञानी भी वंशानुगत सफलता की बात को नकारते हैं। इनके अनुसार सफलता व्यक्तिगत होती है, जो अपनी बुद्धि, प्रयास और संरचनात्मक पर निर्भर करती है। छात्र से लेकर शोधकर्ता, क्लर्क से लेकर किसी कंपनी के सीईओ तक को आगे बढ़ने के लिए बुद्धि या मस्तिष्क की शक्ति की आवश्यकता पड़ती है।

अगर तंत्रिका-तंत्र शोधकर्ताओं की बात मानें तो दिमाग मांसपेशी की तरह है, जिसकी क्षमता को जितना चाहें उतना बढ़ाया जा सकता है। यह जितना इस्तेमाल होगा, उतना शक्तिशाली बनेगा।

कदम-कदम पर मिली सफलता जहां एक ओर लोकप्रिय बनाती है, वहीं दूसरी तत्व यह भी है कि सफल व्यक्ति के अंदर अपनी लत भी डाल देती है। सफलता के आदी बन चुके लोगों के लिए सफलता की लत शब्द का प्रयोग करना गलत नहीं होगा। स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल कहते हैं कि 'एक के बाद दूसरी सफलता के पीछे दौड़ने का मतलब है, आप किसी अवसर को छोड़ना नहीं चाहते। मैं भी किसी अवसर को छोड़ना नहीं चाहता हूं।' शोधकर्ता कहते हैं कि आपके अगले कदम के आगे आपकी पिछली सफलता चलती है, जिस कारण कई काम वैसे ही आसान हो जाते हैं।

असफलता का डर मनोवैज्ञानिक डर है, जो व्यक्ति को पहले ही हार मानने के लिए उकसाता है। खेल मनोविज्ञान के अनुसार, सफलता की तरह असफलता भी आंतरिक धारणा है। यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक स्थिति का भाग है। आप अपने अंदर विजय भावना लेकर चलते हैं। खेल मनोवैज्ञानिक पीटर जेनसन बेनरीड ने ओलंपिक खिलाड़ियों पर किए अध्ययन में पाया कि खेल में जीत से मात्र एक पल पहले खिलाड़ी पर किए गए अध्ययन में पाया कि खेल में जीत से मात्र एक पल पहले खिलाड़ी इस बात को स्वीकार कर लेता है कि वह हारेगा या जीतेगा।

अंतत: परिणाम भी उसी के अनुसार आता है। यह बात आम लोगों की जिंदगी पर भी लागू होती है। एक छोटा-सा पल जो जीत से एक कदम दूर होता है, इस पल में जो भी निर्णय हम लेते हैं वह या तो असफलता का कलंक लगा जाता है या विजयमाला पहनाता है।

प्रसिद्ध लेखक गेरी सिम्पसन सफलता के गणित के आधार पर इस बात को प्रमाणित करते हैं। यदि आप सफलता के लिए मानसिक रूप से मात्र 95 प्रतिशत तैयार हैं यानी उस सफलता के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है तो यह स्थिति सफलता के प्रतिशत को शून्य कर देती है। गेरी के गणितीय सिद्धांत के अनुसार समझें तो शून्य का 95 प्रतिशत शून्य होता है।

अधिकतर लोग सफल होने से रह जाते हैं और उनका प्रयास शून्य पर आकर खत्म हो जाता है। हाथ आती है तो सिर्फ असफलता। असफलता की तरह सफलता भी एक गतिशील स्थिति है। आज अगर सफल हैं तो कल असफल भी हो सकते हैं। सफल व्यक्तियों ने अपनी सफलता के मूलमंत्र के रूप में एक बात जरूर कहीं है - 'सफलता पाना जितना कठिन है उतना ही कठिन उसे बनाए रखना भी है।' इस डर से कि आप हार जाएंगे, सफलता के लिए कोशिश न करना सबसे बड़ी हार होगी।

Wednesday, November 3, 2010

बात पिछली दीपावली की है।


बात पिछली दीपावली की है। भूल गया था,  पर इस बार दीपावली की धूमधाम शुरू होते ही याद आ गई। 
त्योहार की धूमधाम भरी तैयारियों में पिछले साल श्रीमती गुप्ता ने ढेरों पकवान बनाए सोचा मोहल्ले में गज़ब का प्रभाव जमा देंगी। बात ही बात में गुप्ता जी को ऐसा पटाया की यंत्रवत श्री गुप्ता ने हर वो सुविधा मुहैय्या कराई जो एक वैभवशाली दंपत्ति को को आत्म प्रदर्शन के लिए ज़रूरी थी। "माडल" जैसी दिखने के लिए श्रीमती गुप्ता ने साड़ी ख़रीदी और गुप्ता जी को कोई तकलीफ न हुई।

घर को सजाया सँवारा गया,  बच्चों के लिए नए कपड़े बने। कुल मिलाकर यह कि दीपावली की रात पूरी सोसायटी में गुप्ता परिवार की रात होनी तय थी। चमकेंगी तो गुप्ता मैडम, घर सजेगा तो हमारे गुप्ता जी का, सलोने लगेंगे तो गुप्ता जी के बच्चे, यानी ये दीवाली केवल गुप्ता जी की होगी ये तय था।

समय घड़ी के काँटों पे सवार दिवाली की रात तक पहुँचा,  सभी ने तयशुदा मुहूर्त पे पूजा पाठ की। उधर सारे घरों में गुप्ता जी के बच्चे प्रसाद (आत्मप्रदर्शन)  पैकेट बांटने निकल पड़े । जहाँ भी वे गए सब जगह वाह वाह के सुर सुन कर बच्चे अभिभूत थे किंतु भोले बच्चे इन परिवारों के अंतर्मन में धधकती ज्वाला को न देख सके।

ईर्ष्यावश सुनीति ने सोचा बहुत उड़ रही है प्रोतिमा गुप्ता, क्यों न मैं उसके भेजे प्रसाद-बॉक्स दूसरे बॉक्स में पैक कर उसे वापस भेज दूँ, यही सोचा बाकी महिलाओं ने और नई पैकिंग में पकवान वापस रवाना कर दिए श्रीमती गुप्ता के घर। यह कोई संगठित कोशिश न ही बदले की भावना बल्कि एक स्वाभाविक आंतरिक प्रतिक्रया थी, जो सार्व-भौमिक सी होती है। आज़कल आम है। कोई माने या न माने सच यही है जितनी नकारात्मक कुंठा इस युग में है उतनी किसी युग में न तो थी और न ही होगी । इस युग का यही सत्य है।

दूसरे दिन श्रीमती गुप्ता ने जब डब्बे खोले तो उनके आँसू निकल पड़े जी में आया कि सभी से जाकर झगड़ आऐं किंतु पति से कहने लगीं, "अजी सुनो चलो जगत देव तालाब गरीबों के साथ दिवाली मना आएँ।

इस साल- देखते हैं क्या होता है। मिसेज़ गुप्ता मुहल्लेवालों के साथ दीपावली मनाती हैं या जगत देव तालाब के गरीबों की उन्हें दुबारा याद आती है।


दीपों की बातें

एक बार की बात है, दीपावली की शाम थी, मैं दिये सजा ही रहा था कि एक ओर से दीपों के बात करने की आवाज़ सुनाई दी।

मैंने ध्यान लगा कर सुना। चार दीपक आपस में बात कर रहे थे। कुछ अपनी सुना रहे थे कुछ दूसरों की सुन रहे थे। पहला दीपक बोला, 'मैं हमेशा बड़ा बनना चाहता था, सुंदर, आकर्षक और चिकना घड़ा बनना चाहता था पर क्या करूँ ज़रा-सा दिया बन गया।'

दूसरा दीपक बोला, 'मैं भी अच्छी भव्य मूर्ति बन कर किसी अमीर के घर जाना चाहता था। उनके सुंदर, सुसज्जित आलीशान घर की शोभा बढ़ाना चाहता था। पर क्या करूँ मुझे कुम्हार ने छोटा-सा दिया बना दिया।'
तीसरा दीपक बोला, 'मुझे बचपन से ही पैसों से बहुत प्यार है काश मैं गुल्लक बनता तो हर समय पैसों में रहता।'

चौथा दीपक चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। अपनी बारी आने पर मुस्करा कर अत्यंत विनम्र स्वर में कहने लगा, 'एक राज़ की बात मैं आपको बताता हूँ, कुछ उद्देश्य रख कर आगे पूर्ण मेहनत से उसे हासिल करने के लिए प्रयास करना सही है लेकिन यदि हम असफल हुए तो भाग्य को कोसने में कहीं भी समझदारी नहीं हैं। यदि हम एक जगह असफल हो भी जाते हैं तो और द्वार खुलेंगे। जीवन में अवसरों की कमी नहीं हैं, एक गया तो आगे अनेक मिलेंगे। अब यही सोचो, दीपों का पर्व - दिवाली आ रहा है, हमें सब लोग खरीद लेंगे, हमें पूजा घर में जगह मिलेगी, कितने घरों की हम शोभा बढ़ाएँगे। इसलिए दोस्तों, जहाँ भी रहो, जैसे भी रहो, हर हाल में खुश रहो, द्वेष मिटाओ। खुद जलकर भी दूसरों में प्रकाश फैलाओ, नाचो गाओ, और खुशी-खुशी दिवाली मनाओ।:--नीरज त्रिपाठी

Monday, November 1, 2010

कोई आँसू बहाता है’

कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।

बहुत से ख़्वाब लेकर के, वो आया इस शहर में था
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है।

घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला भी हो
ये मन भी खूब है, रह रह के, उम्मीदें बँधाता है।

मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।

बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से
उन्हीं रस्मों रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है।

किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है
ये देखें, प्यार में, मेरा मुकद्दर क्या दिखाता है।


Monday, September 13, 2010

हिन्दी-दिवस की आप सभी को बधाई।

हिन्दी-दिवस की आप सभी को बधाई। १४ सितम्बर १९४९ को संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा स्वीकार किया गया था।
संसार के जितने भी राष्ट्र हैं सब अपनी भाषा को प्राथमिकता देते हैं और हम अपनी भाषा बोलने और सीखने में शर्म का अनुभव करते हैं। इसका भयानक परिणाम मैं नई पीढ़ी में देख रही हूँ। जो ना हिन्दी ठीक से पढ़ सकता है ना लिख सकता। और अंग्रेजी में पारंगत है। दोषी नई पीढ़ी नहीं दोषी हम लोग हैं। हमने उनको अपनी भाषा के संस्कार ही कहाँ दिए। हमने उसे अंग्रेजी बोलने के लिए ही प्रेरित किया। उसे कभी हिन्दी की विशेषताएँ नहीं बताई।
हमारी हिन्दी भाषा संसार की सर्वोत्तम भाषा है। इसकी वैग्यानिकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। तर्क संगत है। सुमधुर और सरल है। भूमावृति के कारण नित्य नवीन शब्दों को जन्म देने वाली है। एक-एक शब्द के कितने ही पर्याय वाची हैं। हर शब्द का सटीक प्रयोग होता है। अलग-अलग संदर्भों में एक ही शब्द नहीं , अलग-अलग शब्द हैं।
समन्वय की प्रवृति के कारण दूसरी भाषाओं के शब्दों को जल्दी ही अपने में समा लेती है। माँ के समान बड़े प्यार से सबको अपने आँचल में समा लेती है। यही कारण हैकि दूसरी भाषाओं के शब्द यहाँ आकर इसीके हो जाते हैं। फिर भी हम इसका लाभ नहीं उठा पा रहे। यह हमारा दुर्भाग्य ही तो है।
आज विश्व के अनेक देश हिन्दी के महत्व को समझ रहे हैं। इसके शिक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं, गोष्ठियाँ कर रहे हैं और हम इसकी उपेक्षा कर रहे हैं।
हिन्दी-दिवस के अवसर पर मैं अपने देश वासियों को यही संदेश देना चाहूँगी कि यदि अपने स्वाभिमान और अपनी अस्मिता को बचा कर रखना है तो अपनी भाषा को महत्व देना सीखो। इसे ग्यान-विग्यान का वाहक बनाओ तथा इसमें संचित कोष का लाभ उठाओ। अपनी भाषा सीखो यही तुमको उन्नति दिलाएगी
यदि अपनी माँ भिखारिन रही तो पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी।
जय भारत।

हिन्दी दिवस

हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:

संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा ।
हिंदी की महिमा
ND
संस्कृत और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।

हिंदी भाषा को हम राष्ट्र भाषा के रूप में पहचानते हैं। हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। विश्व में 500 से 600 मिलियन लोग हिंदी भाषी हैं

देश के गुलामी के दिनों में यहाँ अँग्रेज़ी शासनकाल होने की वजह से, अँग्रेज़ी का प्रचलन बढ़ गया था। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात देश के कई हिस्सों को एकजुट करने के लिए एक ऐसी भाषा की ज़रूरत थी जो सर्वाधिक बोली जाती है, जिसे सीखना और समझना दोनों ही आसान हों

इसके साथ ही एक ऐसी भाषा की तलाश थी जो सरकारी कार्यों, धार्मिक क्रियाओं और राजनीतिक कामों में आसानी से प्रयोग में लाई जा सके। हिंदी भाषा ही तब एक ऐसी भाषा थी जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय थी।
  संस्कृत और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।      


हिंदी भाषा को एकजुटता का माध्यम बनाने के लिए सन् 1949 में एक एक्ट बनाया गया जो सरकारी कार्यों में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य करने के लिए था

धीरे-धीरे हिंदी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है।

आज कई विदेशी छात्र हमारे देश में हिंदी और संस्कृत भाषाएँ सीखने आ रहे हैं। विदेशी छात्रों के इस झुकाव की वजह से देश के कई विश्वविद्यालय इन छात्रों को हमारे देश की संस्कृति और भाषा के ज्ञानार्जन के लिए सुविधाएँ प्राप्त करवा रहे हैं। विदेशों में हिंदी भाषा की लोकप्रियता यहीं खत्म नहीं होती। विश्व की पहली हिंदी कॉन्फ्रेंस नागपुर में सन् 1975 में हुई थी। इसके बाद यह कॉन्फ्रेंस विश्व में बहुत से स्थानों पर रखी गई
दूसरी कॉन्फ्रेंस- मॉरीशस में, सन् 1976 मेंतीसरी कॉन्फ्रेंस - भारत में, सन् 1983 मेंचौथी कॉन्फ्रेंस - ट्रिनिडाड और टोबैगो में, सन् 1996 में पाँचवीं कॉन्फ्रेंस - यूके में, 1999 मेंछठी कॉन्फ्रेंस - सूरीनाम में, 2003 में और सातवी कॉन्फ्रेंस - अमेरिका में, सन् 2007 में

हिंदी भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :
* आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना भी ग्रासिन द तैसी, एक फ्रांसीसी लेखक ने की थी

* हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन (जो कि एक अँग्रेज़ हैं) ने किया

* हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य 'द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदा' को लंदनClick here to see more news from this city विश्वविद्यालय में पहली बार एक अग्रेज़ विद्वान जे.आर.कार्पेंटर ने प्रस्तुत किया था।
 
 

Sunday, September 12, 2010

सतना शहर से एक और दैनिक अखबार ‘स्टार समाचार’

सतना शहर से एक और दैनिक अखबार 'स्टार समाचार' के प्रकाशन की तैयारी पूरी हो गई है। 17 सितंबर 2010 से अखबार अपने बुंदेलखंड, बघेलखंड एवं सतना संस्करण के साथ बाजार में आ जाएगा।

यह महत्वाकांक्षी अखबार वाहन व्यवसाय में अग्रणी स्टार ऑटोमोबाइल्स के मालिक रमेश सिंह ने शुरू किया है। सतना से अभी दैनिक भास्कर, नवभारत व नव स्वदेश अखबार प्रकाशित हो रहे हैं, जबकि रीवा का दैनिक जागरण, जबलपुर का राज एक्सप्रेस और वहीं से आने वाला नई दुनिया यहां अपने बड़े ब्यूरो कार्यालय डालकर सतना संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं। मुख्य अखबार दैनिक भास्कर है जो पूरे इलाके में छाया हुआ है।

सही है एक अच्चा प्रयास !
सही बाते कहने का एक मंच !
सतना जैसे प्रगतिशील बढ़ते सहर में एक सही सुरुआत कहेगे !
रमेश सिंह  जी को
 मेरी शुभ कामनाये !
 

Tuesday, August 17, 2010

message

 If you are not well informed in your job, you might miss a great opportunity.

Friday, August 13, 2010

नागपंचमी विशेषः जीवनदाता नागदेवता

बरसात के मौसम में बिलों से निकलने वाले इन सर्पो का कोई भयवश वध न कर दे, इसलिए इनकी पूजा का विधान किया गया है क्योंकि सांप सिर्फ भक्षक ही नहीं कीट-पतंगों और चूहों से फसलों के रक्षक भी हैं।

पूजा-विधान

प्राय: सभी मानव जातियों में नाग किसी-न-किसी रूप में पूजे जाते हैं, लेकिन भारत में उनकी पूजा प्रत्यक्ष देवता के रूप में बड़ी श्रद्धा से की जाती है। कारण हम मानते हैं वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात समूची धरती के सभी वासी हमारे परिजन ही हैं। भले ही वे नाग या सर्प ही क्यों न हों।

प्राचीन मान्यता
मान्यता है कि नाग सृष्टि के जन्म के साथ ही उत्पन्न हुए। उनकी चर्चा वेदों से लेकर पुराणों तक और रामायण से लेकर महाभारत तक कई रूपों में मिलती है। पौराणिक मान्यता है कि वे कश्यप और कद्रु की संतान हैं। शतपथ ब्राम्हण में महानाग के अर्थ में नाग शब्द का उल्लेख हुआ है।

वृहदारण्यक उपनिषद और ऐतरेय ब्राrाण में भी इसके संदर्भ मिलते हैं, जो सर्प के अर्थ में प्रयोग किए गए हैं। इस अर्थ में नाग और सर्प का साम्य नजर आता है। भारतीय मान्यता में जिन तीन प्रमुख लोकों स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल की चर्चा है, उनमें पाताल इनका लोक माना गया है। रामायण की रामकथा में राम-रावण युद्ध के दौरान पाताल लोक का नागवंशी और रावण का रिश्ते का भाई अहिरावण राम, लक्ष्मण का अपहरणकर्ता निरूपित किया गया है।

नाग की महत्ता
नागों की महत्ता कई रूपों में व्यक्त हुई है। भारतीय मान्यता है कि पृथ्वी को शेषनाग ने अपने मस्तक पर मणि की भांति धारण किया हुआ है। विष्णु की शैया यही शेषनाग है। शंकर के आभूषण नाग हैं, इसीलिए उनका एक नाम नागेश या नागेश्वर भी है। कृष्ण के जीवन में कालिया दमन की कथा नाग के संदर्भो को सामने लाती है। महाभारत में भीम नागलोक में जाकर उत्पात मचाते हैं और फिर नागों से सौ हाथियों का बल ले उपकृत हो पुन: पृथ्वी पर लौट आते हैं।

देवियों के हाथों में नाग चित्रित किया गया है तो जैन र्तीथकरों के चित्रों में भी नाग दृष्टिगोचर होते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि समुद्र मंथन की जो प्राचीन कथा भारतीय साहित्य में मिलती है, उसमें भी वासुकी नाग को रस्सी बनाकर अमृत संधान का प्रयत्न नजर आता है। इससे नागों की महत्ता तो पता लगती ही है, यह भी संकेत मिलता है कि अमृत की खोज में विषधर नाग कितने उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

आकर्षण का केंद्र
नाग या सर्प अपने विष, अपनी चपलता, अपनी सर्वउपलब्धता और अपने रहस्यमय व्यक्तित्व और स्वरूप के कारण प्रारंभ से ही आकर्षण का केंद्र रहे हैं। ये अनजाने ही भय भी उत्पन्न करते हैं। नाग अकेले हैं, जो रेगिस्तान से लेकर समुद्रों तक, नदियों से लेकर वनों तक, हिमालय से लेकर पथरीले पर्वतों तक और नगरों से लेकर उपवनों तक सभी जगह उपलब्ध होते हैं। हजारों प्रजातियों के रूप में और अनगिनत रंग-रूप में। कोई विषधर है तो कोई विषरहित, लेकिन सभी अपनी ओर खींचते हैं, डराते हैं और पूजन के लिए प्रेरित करते हैं।

नागों से जुड़ी किंवदंतियां
नागों से जुड़ी किंवदंतियां भी कम नहीं हैं। यह कि नाग बदला लेते हैं, धन के रक्षक हैं, आसमान में उड़ते भी हैं, नाग कन्याएं होती हैं, जिन्हें विष कन्या भी कहते हैं। उनसे जुड़े मायाजाल हैं, उनसे जुड़े नागपाश जैसे शस्त्र हैं, जो महाबलवान हनुमानजी तक को बांधने में सक्षम होते हैं।

रावण का पुत्र इंद्रजीत अशोक वाटिका में हनुमान से हुई लड़ाई में अंत में उन्हें नागपाश से ही बांधकर रावण के समक्ष ले गया था। ये किंवदंतियां कितनी सच हैं और इनका कितना पुष्ट वैज्ञानिक आधार है, यह आज तक प्रमाणित या खंडित नहीं किया जा सका है। यही कारण है कि नाग हमारे जीवन, हमारी परंपराओं में गहरे तक जुड़ गए हैं। इतने गहरे कि पंचमहाभूतों के प्रतीकों में भी उन्होंने स्थान पा लिया है।

नाग पूजन का महत्व
नागपंचमी के रूप में नागों की पूजा प्रकृति और जीव-जंतु मात्र की पूजा का प्रतीक है। नागपंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। कारण वर्षा शुरू होते ही कृषि प्रधान भारत में कृषक खेतों की ओर जाते हैं तथा बिलों में पानी भरने के कारण सर्प बाहर आ जाते हैं।

भय में कोई इन सर्पो का वध न कर दे, इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विधान किया गया है क्योंकि सांप सिर्फ भक्षक ही नहीं कीट-पतंगों और चूहों से फसलों के रक्षक भी हैं। प्राय: समूचे भारत में नागपंचमी पर नाग की पूजा प्रत्यक्ष, मूर्ति या भित्ती चित्रों के रूप में की जाती है। उन्हें दूध का परंपरागत भोग लगाया जाता है। हालांकि नए शोध बताते हैं कि सांप कतई दूध नहीं पीते। सांप के विष का प्रयोग जीवनरक्षक औषधि बनाने में भी किया जाता है।

नागपंचमी विधान
नागपंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। समूचे भारत में नागपंचमी पर नाग की पूजा प्रत्यक्ष, मूर्ति या भित्ती चित्रों के रूप में की जाती है। उन्हें दूध का परंपरागत भोग लगाया जाता है।

Saturday, June 19, 2010

उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

जितनी दूर नयन से सपना
जितनी दूर अधर से हँसना
बिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरू
हर बादल की रिमझिम तेरी भावना
हर सावन की बूंद तुम्हारी ही व्यथा
हर कोयल की कूक तुम्हारी कल्पना

जितनी दूर ख़ुशी हर ग़म से
जितनी दूर साज सरगम से
जितनी दूर पात पतझर का छाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

हर पत्ती में तेरा हरियाला बदन
हर कलिका के मन में तेरी लालिमा
हर डाली में तेरे तन की झाइयाँ
हर मंदिर में तेरी ही आराधना

जितनी दूर प्यास पनघट से
जितनी दूर रूप घूंघट से
गागर जितनी दूर लाज की बाँह से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

कैसे हो तुम, क्या हो, कैसे मैं कहूँ
तुमसे दूर अपरिचित फिर भी प्रीत है
है इतना मालूम की तुम हर वस्तु में
रहते जैसे मानस् में संगीत है

जितनी दूर लहर हर तट से
जितनी दूर शोख़ियाँ लट से
जितनी दूर किनारा टूटी नाव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से


मैं तब से जानता हूँ

दर्पण में जब वो हर दिन, ख़ुद को नया-नया सा
अचरज से ताकती थी, मैं तब से जानता हूँ
सीधी सी बात पर भी, सीधे सहज ही उसने
मुझसे न बात की थी, मैं तब से जानता हूँ

जंगल में एक दानव, परियों को बांधता जब
करती थी प्रार्थना वो, युवराज आओ भी अब
किस्से-कहानियों में, इक चांद बैठी बुढ़िया
जब सूत कातती थी, मैं तब से जानता हूँ

चिट्ठाए बालों वाले सर को झुकाए नीचे
आँखों पे आए लट फिर, फिर फेंकती वो पीछे
आंगन में अपने घर के, लू की भरी दुपहरी
उपले वो पाथती थी, मैं तब से जानता हूँ

आँखों में मोटे-मोटे, सपनों की छोटी दुनिया
गोदी लिए वो फिरती, भाभी की नन्हीं मुनिया
मेरा ध्यान खींचने को, उसे डाँटकर रुलाती
और फिर दुलारती थी, मैं तब से जानता हूँ

प्रेम को 'परेम' लिखती, दिन को वो 'दीन' लिखती
जीना हुआ है 'मुस्किल', अब 'तूम बीन' लिखती
अशुद्धि में व्याकरण की, वो शुद्ध भाव मन के
कहते थे आपबीती, मैं तब से जानता हूँ

Friday, June 18, 2010

चार बूँद गिरी हैं ज़मीन पर

मेरे ख़ुदा इसे किसी काबिल बनाइए
कुछ ग़म इसे भी दीजिए और दिल बनाइए

कब तक मुग़ालते में रहूँ नाख़ुदा के मैं
साहिल को मौज, मौज को साहिल बनाइए

ये इम्तिहाँ भी देखिए मैंने किया है पार
कुछ और मेरी ज़ीस्त को मुश्किल बनाइए

ये बर्क़ मेरे घर को जला ही नहीं सकी
इसकी तपिश को मेरे मुक़ाबिल बनाइए

ये क्या के चार बूँद गिरी हैं ज़मीन पर
खंजर को आप देखिए क़ातिल बनाइए

कब तक मै सरे राह भटकता रहूँ ख़ुदा
कोई तो मेरी राह में मंजिल बनाइए

शामिल मेरी रुसवाई में सारा शहर यहाँ
एकाध शख़्स दिल में भी शामिल बनाइए

जब तक जिया वो कोई जश्न कर नहीं सका
मय्यत को ही 'रोहित' की अब महफ़िल बनाइए।

Wednesday, June 9, 2010

कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले

कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले
फानूस की न आस हो उस पर हवा चले

लेता हैं इम्तिहान अगर सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले

नफ़रत की आंधियाँ कभी बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा-ए-अमन-ओ-वफ़ा चले

चलना अगर गुनाह है अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिलसिला चले


हस्ती मिटती नहीं हमारी


यूनान-ओ- मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

करते हैं बात इश्क की

"वो करते हैं बात इश्क की ,
पर इश्क के दर्द का
उन्हें एहसास नहीं ,
इश्क वो चाँद है
जो दिखता है सभी को ,
पर उसे पाना
सभी के बस की बात
नहीं .."

Best Moments of Life ...






Tuesday, June 8, 2010

कदमों को चुम लेनाए खत,


ए खत,
जा कर
उनके हाथों को चुम लेना
अगर वो तुम्हें पढे तो
उनके होठों को चुम लेना,
खुदा ना करे
वो तुम्हें
फाडकर फेक दे,
तो गिरते वक्त उनके
कदमों को चुम लेनाए खत,

प्यार एहसास है रुह से महसूस करने का

रिश्तों की कोई निर्धारित परिभाषा नहीं होती। कोशिश भी की जाए तो शायद कोई ऐसी परिभाषा नहीं ग़ढ़ी जा सकती जो रिश्तों को गहराई से परिभाषित कर सके। आशय यह नहीं कि रिश्ता कोई उलझी हुई इबारत है जिसे समझाया नहीं जा सकता, बल्कि असलियत यह है कि 'रिश्ता' जीवन की सफलता का एक बड़ा मानक है, जिसे कुछ शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो पूरा जीवन बदलकर रख देते हैं, पर कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जिनके जुड़ने का अफसोस जीवन भर होता है और इस तरह के रिश्ते की कसक जीवनभर सालती रहती है।

सामाजिक जीवन में सामान्यतः रिश्तों को दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक रिश्ता वह जो खून से बंधा होता है, दूसरा रिश्ता जो हम स्वयं गढ़ते हैं। भारतीय परिवेश में खून के रिश्तों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है और माना जाता है कि खून का रिश्ता ही सही मायने में जीवन का जुड़ाव होता है, और इससे बढ़कर रिश्ता होता है वैवाहिक संबंधों का।
असल रिश्ता तो वह है, जो हम अपनी पूरी समझ-बूझ और परख के साथ तथा अपनी पसंद से बनाते हैं। फिर चाहे वह रिश्ता दो दोस्तों के बीच का हो या फिर प्रेमियों का या फिर पड़ोसियों के बीच का पारिवारिक-सा रिश्ता ही क्यों न हो। सभी में यह बात 'कॉमन' है। कोई भी रिश्ता इत्तफाक या सामाजिक दबाव में नहीं बना।

अपने पूरे जीवन में हम कई लोगों से मिलते हैं। कुछ हमें अच्छे लगते हैं तो कुछ को हम पहली नजर में खारिज कर देते हैं। संपर्क में आने वाले कुछ लोगों से बार-बार मिलने और बात करने की इच्छा होती है और यही आकर्षण दोस्ती या प्रेम की मजबूत गाँठ बन जाता है। ठीक यही बात समीप रहने वाले दो परिवारों के बीच भी होती है। बहुत सारे लोगों के बीच रहकर भी ऐसे लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही होते हैं, जिन्हें हम अपने बहुत नजदीक मानते हैं।

उन्हें अपने दिल की बात बताने का भी मन करता है और उनके दिल की बात सुनने की भी इच्छा होती है। अक्सर देखा जाता है कि स्कूल, कॉलेज या दफ्तरों में कई जोड़ी दोस्त होते हैं। सभी एक साथ रोज मिलते तो जरूर हैं पर सभी को जब भी बातचीत का अवसर मिलता है, वे गुटों में बंट जाते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यही है कि जो जिसके साथ निकटता महसूस करता है, वह उसी के साथ समय भी गुजारना चाहता है।

रिश्तों को जीवन की सफलता और असफलता के मामले में भी एक बड़ा मानक माना गया है। कब, कौन-सा रिश्ता या कौन-सी दोस्ती व्यक्ति को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा दे, कहा नहीं जा सकता लेकिन यदि परिस्थितियां अनुकूल न हों तो इसका उलट भी हो सकता है। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जब किसी साथी की मदद से व्यक्ति शिखर पर पहुंच गया, पर सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर है कि आप अपने रिश्ते के प्रति कितने गंभीर हैं।

प्‍यार टेंशन पैदा करता है!

प्यार नहीं मिला तो टेंशन और मिल गया तो भी टेंशन। एक मित्र हैं मैंने उनसे कहा तुम्हें किस बात की चिंता है। कहने लगे क्या करें यार जीवन खाली-खाली लगता है, कोई जिंदगी में होना चाहिए। दूसरे मित्र ने तपाक से जवाब दिया, अच्छा है जो अकेले हो वर्ना समझ में आ जाती कि जिंदगी में तूफान भी होते हैं।

पतनहीयह किसने कहा था कि प्‍यार टेंशन पैदा करता है और सेक्‍स उसे दूर करता है। और यह भी कि शादी विवेक पर मूर्खता की विजय हैचुटकुलि घड़और शादी में समानता यह की दोनों में ही बारह बजते हैं। धत्त तेरे की...

भारत किस ओर?
कंडोम बनाने वाली प्रमुख कंपनी कामसूत्र ने भारत में एक सर्वेक्षण कराया था जिसमें लगभग 10 बड़े शहरों में रहने वाले 3000 लोगों ने भाग लिया। सर्वेक्षण से आश्चर्यजनक तथ्य उभर कर आया कि 40 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने विवाह से पहले शारीरिक संबंध कायम किया था।

सोचें 40 प्रतिशत लोग! क्या यह अच्छी बात है? हमारा मानना है कि 10 बड़े शहरों के मात्र 3000 लोगों के आधार पर आप कोई परिणाम नहीं निकाल सकते। भारत गाँवों में बसता है बाबूजी और गाँवों के लोग आज भी सच्चे और अच्छे हैं।

गलत धारणा...
यह धारणा भी कितनी गलत है कि जोड़े स्वर्ग में तय होते हैं। 'रहस्य' और 'मनोविज्ञान' को जो जानते हैं वे तो शायद ऐसा नहीं कहेंगे। शादी के बारे में आमतौर पर कहा जाता हो कि यह एक ऐसा लड्डू है जिसे खाने वाला भी पछताता है और न खाने वाला भी। समझदार व्यक्ति ऐसी बेवकूफी भरी कहावत पर शायद ही विश्वास करें।

रॉबर्ट एप्सटेन ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति में किसी भी व्यक्ति के प्रति छह माह में प्यार जगाया जा सकता है। इसका यह मतलब हुआ कि प्यार होता नहीं किया जाता है।

प्यार एक बीमारी!
कुछ डॉ. अपने शोध के आधार पर कहते हैं कि प्यार एक बीमारी है और इस बीमारी का इलाज है सिर्फ सेक्स। यदि प्रेम के इजहार का मौका नहीं मिलता तो बीमारी और बढ़ जाती है, हो सकता है कि वे गुस्सा, अवसाद या किसी अन्य मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाएँ। इसे 'लव सिकनेस' कहते हैं।

बेवफाई का डर...
  मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया था किसी गलत वजह से नहीं। पवित्र प्रेम के बारे में सोचने वाले सही हैं। प्यार और विश्वास किसी भी दंपति के जीवन का आधार है। दांपत्य जीवन में प्यार का मतलब सिर्फ सेक्स से नहीं होता।      
खैर यह तो बात प्यार के इजहार से जुड़ी है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि इजहार कर ही दिया तो फिर नया खेल शुरू होता है जो कुछ दिन तक तो अच्छे अहसास के साथ चलता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे उसमें टेंशन पैदा होने लगता है।

बेवफाई का डर ‍भीतर ही भीतर सालता रहता है। यदि प्यार में बेवफाई का सामना करना पड़े तो फिर दिल के दौरे की संभावना बढ़ सकती है बशर्ते कि आप अपने प्रेमी या प्रेमिका से कितने जुड़े हैं यह इस पर तय होता है।

लेकिन यह भी सच है...
तमाम शोध और तमाम बेवकूफी भरे वाक्य प्यार की ताकत को झुठला नहीं सकते और ना ही उसे सेक्स से जोड़ सकते हैं। सेक्स आपके जीवन का अहम हिस्सा हो सकता है, लेकिन प्यार का स्थान उससे कहीं ऊँचा है। मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया था किसी गलत वजह से नहीं। पवित्र प्रेम के बारे में सोचने वाले सही हैं। प्यार और विश्वास किसी भी दंपति के जीवन का आधार है। दांपत्य जीवन में प्यार का मतलब सिर्फ सेक्स से नहीं होता।

suraksha week

 

1.     Police wale ne car wale ko roka - Ye "suraksha week" hai.
Aap belt pehan kar car chala rhe ho, isliye aapko Rs5000 ka inaam diya jaata hai.
Aap is inaam ka kya karoge ??

Car Driver: Main is inaam se apna Driver Licence banwaunga.

Pichli seat par uski Maa bethi thi.
Wo boli: iski baat par yakeen mat karna. ye sharaab peekar kuch bhi bolta hai.

uske papa bole: mujhe pta tha ki chori ki car mein hum jyada door tak nhi ja paaege.

tabhi dikki se aawaaz aai
"bhaai. humne boarder paar kar liya kya ??"


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कहते हैं प्रेम दिल से होता है...


कहते हैं प्रेम दिल से होता है लेकिन विज्ञान ने ये साबित कर दिखाया है कि प्रेम मस्तिष्क की एक अवस्था का नाम है। जिस प्रकार हम किसी मादक पदार्थ या किसी दवाई के आदी हो जाते हैं और उसके न मिलने पर शरीर के हार्मोनिल स्त्रावों में परिवर्तन होने लगते हैं, ठीक उसी प्रकार प्रेम की अवस्था में भी हमारे शरीर में कुछ हार्मोनिल परिवर्तन होते हैं। नीचे प्रेम से जुड़े कुछ पहलू बताए गए हैं जिन पर किसी प्रेमी का ध्यान न गया होगा लेकिन वैज्ञानिकों का जरूर गया है।

प्रेम का नशा
प्रेम एक तरह का नशा है, यह हो जाए, तो एक-दूसरे के बिना जीना दुश्वार हो जाता है। प्रेम में पड़ने पर दिमाग की क्रियाओं में कुछ बदलाव आ जाता है। मस्तिष्क में डोपामाइन का स्त्राव बढ़ जाता है, जो बहुत सुखद अहसास कराता है। यह डोपामाइन ही है, जो प्रेम को नशीला बना देता है और इंसान को उसका आदी।

प्रेम की महक
खुशबू की तरह प्रेम को छिपाया नहीं जा सकता। प्रेमिका अपने प्रेमी के बदन की खुशबू को बखूबी पहचानती हैं। हर व्यक्ति के बदन की खुशबू उसके जींस पर निर्भर करती है। खुशबू सेक्स हारमोन फेरोमोन्स का उत्पाद है। ओव्यूलेशन की क्रिया के दौरान महिलाओं के सूँघने की शक्ति गजब की हो जाती है। तब प्रेमिका को अपने प्रेमी की गंध बहुत आकर्षित करती है। विशेष देह गंध इस्ट्रोजन के स्तर को बढ़ा कर सेक्स की इच्छा में इजाफा कर देती है।

दिल तो पागल है- विज्ञान ने झुठला दिया
लोग कहते हैं कि आदमी प्रेम के पड़ने के बाद बौरा जाते है, पर वह पहले की अपेक्षा ज्यादा समझदार हो जाते हैं। एक-दूसरे के करीब रहने की यह भावना मस्तिष्क की स्थिरता और बुद्धि दोनों को बढ़ा देती है।

प्रेम दिल से ही होता है
प्रेम के पवित्र बंधन में बँधने के बाद आपके स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। प्रेम करने वाले लोग उन लोगों के मुकाबले शारीरिक रूप से ज्यादा स्वस्थ और खुश रहते हैं, जो अविवाहित और प्रेम से अनजान हैं। प्रेमपूर्ण संबंध हृदय रोग के खतरों को भी कम कर देता है।

प्रेम सुखद है
प्रेममय जीवन से मिलने वाला सुख का कोई पैमाना नहीं है। अच्छा प्रेमी पाना और 1 लाख डॉलर अतिरिक्त कमाना एक ही बात है। इसका मतलब यह है कि प्यार में आप कितने अमीर हैं।

प्रेम जनमों का नाता है
 
जब प्रेमी अपनी प्रेमिका को सीने से लगता हैं, तो उनके हारमोन का स्तर तेजी से बढ़ता है और गुस्सा दिलाने वाले हारमोन में कमी आ जाती है। इसके साथ ही इससे जुड़े हारमोन जैसे ऑक्सीटोसिन और वासएप्रिसिन का स्त्राव भी बढ़ जाता है। ये हारमोन आपको रिश्ते में निकटता की भावना बढ़ाते हैं।

प्रेम में संतुष्टि है
प्यार की कोई जुबान नही होती है, जब प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को प्यार करते हैं, अपनी परवाह दिखाते हैं, तब हारमोन में परिवर्तन के कारण अवसाद नहीं होता और उदास करने वाले कारण दूर रहते हैं। इस काम के लिए जरूरी नहीं कि आप अलग से समय निकालें। प्यार-दुलार के लिए 5 मिनट भी पर्याप्त हैं। यह 5 मिनट का प्यार सेरोटोनिन और ऑक्सीटोन हारमोन को बढ़ाता है, जो खुशी का दोस्त है।

प्रेम युवा बनाता है
प्रेम को हमेशा साथ रखेंगे, तो यह आपको जीवन के हर आनंद के लिए प्रेरित करेगा। एक अध्ययन के मुताबिक पाया गया कि सप्ताह में चार से पांच बार सेक्स करने वाले सप्ताह में दो बार सेक्स करनेवालों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। उनका मानना है कि चरम के समय स्त्रावित होनेवाले टेस्टोस्टेरॉन से पुरुष बलशाली होते हैं। इसी तरह इस्ट्रोजन महिलाओं की त्वचा और बालों की चमक को बढ़ाता है। अर्थात दोनों ही चीजें युवा होने की परिचायक है।

प्रेम दोस्ती है
संभव है आपके प्रेमी इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार ना करें, लेकिन आपका दोस्ताना साथ उनको बहुत भाता है। और साथ ही सेक्स की भावना को जगाता है और आपके साथी को उत्तेजित करने में सहायता करता है।

प्रेम संजीवनी है
प्रेम दुआ के साथ दवा भी है। प्रेम के बिलकुल निजी और अंतरंग क्षणों में शरीर 200 प्रतिशत ज्यादा एंड्रोफिंस (यह ऐसा रसायन है, जो शरीर को हल्का महसूस कराता है और व्यक्ति को आंतरिक खुशी का अहसास देता है) बनाता है। सेक्स की क्रियाओं के दौरान एड्रेलिन स्त्रावित होता है, जो सर्दियों के दिनों में जुकाम से बचाता है। कुछ स्त्राव ऐसे भी होते हैं, जिनसे सिर दर्द ठीक होता है और अवसाद से तुरंत छुटकारा मिलता है। यदि सेक्स का अनुभव आनंददायक हो, तो गुस्सैल व्यक्ति भी शांत होने लगता है।

Tuesday, June 1, 2010

tips for Heart


 

 

1. Drink eight glasses of water a day.


2. Include two vegetables and one fruit in every meal.


3. Begin each meal with a raw vegetable salad.


4. Make a light snack of assorted sprouts.


5. Start the day with a glass of warm water and a dash of lime..


6. Use only fresh vegetables.


7. Once a week have only fresh fruits until noon, make lunch the first meal of the day.


8. Eat only freshly cooked meals, not refrigerated leftovers.


9. Include one green vegetable and one yellow vegetable in every meal.


10. Go on a juice fast for a day. Start with vegetable juice, and sip fruit for lunch and dinner..


11. Kick the old coffee habit. Have a glass of fresh fruit juice instead.


12. Cut out all deep-fried foods from your diet.


13. Cut down on high sugar products like soft drinks, ice-cream, candy and cookies in your diet.


14. Never skip a meal, even if you're on a diet. Eat a fresh fruit or have vegetable juice instead.


15. Avoid beverages like soda, coffee, colas and so on.


16. Include high fiber foods and plenty of fruits, vegetables and grains in planning your diet.


17. Use salt in moderation


18. Wash vegetables thoroughly in clean water before chopping.


19. Stream or boil vegetables (rather than fry or saute).


20. Retain peels of potato, cucumber, carrot and tomato while cooking.


21. Do take a moment off to mentally list out the nutritional value of the food you're about to eat.


22. Don't rush through your meals. Set aside enough time to appreciate, enjoy and digest your food.


23. Make every meal an enjoyable experience. Set dishes out attractively and chew slowly to appreciate the full flavor of the foods you eat.


24. Choose to be radiantly healthy. Keep yourself informed about the nutritive value of every food you buy.


25. Shop for groceries yourself. Notice the look, feel and smell of fresh fruit and vegetables and enjoy their intrinsic goodness.


26. Watch out for eating habits paired with emotional states, like reaching for a chocolate when youre depressed. Resist the urge and eat fruit instead.


27. Eat popcorn (rather than chips) while watching a movie.


28. Sit at the table at meal times. Don't read the paper or review bills while eating.


29. Make it a point to have dinner with the entire family at the table, and not in front of the TV.


30. Eat just to the point of the fullness. Don't stuff yourself!


31. Stop smoking.


32. Restrict alcohol consumption.


33. Get a good night's sleep, every night.


34. Enroll today in an exercise programme.


35. Take a brisk, 20 minute invigorating walk each morning.


36. Spend 10 minutes every morning and evening doing basic stretches.


37. Do not use elevators when you can climb the stairs.


38. Enroll in a TM programme today.


39. Focus on your breathing. Take a deep breath, then exhale slowly. Repeat a couple of times a day.


40. Learn to relax. Spend 20 minutes consciously relaxing each muscle of your body. . Spend 20 minutes a day in silent meditation, prayer or contemplation.


42. Learn the healing power of laughter. Watch a crazy movie, recall a joke or read a funny book and

laugh out loud.


43. Tap the powers of your sub-conscious. Relax your body for 20 minutes and project the Perfect You're on your mind screen.


44. Balance your lifestyle. Devote equal time each week to work and fun.


45. Join kids in a sports activity and rediscover the joys of childhood.


46.. Do keep in touch with friends. Call up or visit them and be at peace with the world.

 47. Enroll in an activity (like dancing, swimming or roller skating...) you never indulged in because you were afraid of what people might say.


48. Forgive someone who you think has done you wrong and cleanse your spirit of rancor.


9. Do a nice turn to someone you don't know too well, but who could do with a friend.


50. Spend a quiet half-hour chatting with your family.


51. Listen to soothing music for 15 minutes at least each day.


52. Read a great book once a week.


 
 

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