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Wednesday, June 9, 2010

कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले

कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले
फानूस की न आस हो उस पर हवा चले

लेता हैं इम्तिहान अगर सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले

नफ़रत की आंधियाँ कभी बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा-ए-अमन-ओ-वफ़ा चले

चलना अगर गुनाह है अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिलसिला चले


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