कितना है दम चराग़ में तब ही पता चले
फानूस की न आस हो उस पर हवा चले
लेता हैं इम्तिहान अगर सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आंधियाँ कभी बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा-ए-अमन-ओ-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिलसिला चले
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